वैदिक ज्ञान का दैनिक जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह न केवल आध्यात्मिक विकास में सहायक है, बल्कि जीवन को संतुलित, अनुशासित और उद्देश्यपूर्ण बनाने में भी मदद करता है। वैदिक ज्ञान प्राचीन भारतीय परंपरा का हिस्सा है, जिसमें जीवन के सभी पहलुओं—आध्यात्मिकता, नैतिकता, स्वास्थ्य, और समाज के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। 1. आध्यात्मिकता और मानसिक शांति वैदिक ज्ञान हमें आत्मा और ब्रह्मांड के संबंध को समझने में मदद करता है। ध्यान और योग, जो वैदिक परंपरा का हिस्सा हैं, मानसिक शांति और आत्मसंतोष प्रदान करते हैं। भगवद्गीता, उपनिषद, और अन्य वैदिक ग्रंथ जीवन के गहरे प्रश्नों का उत्तर देते हैं। 2. नैतिकता और जीवन के सिद्धांत वैदिक शिक्षाएं धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष के चार पुरुषार्थ (जीवन के उद्देश्य) पर आधारित हैं। यह हमें सत्य, अहिंसा, दया, और ईमानदारी जैसे गुणों को अपनाने की प्रेरणा देती हैं। 3. स्वास्थ्य और जीवनशैली आयुर्वेद, जो वैदिक ज्ञान का हिस्सा है, स्वस्थ जीवन के लिए दैनिक और मौसमी नियम बताता है। योग और प्राणायाम जैसे अभ्यास शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारते हैं। भोजन के संबंध में वैदिक परंपरा सात्विक आहार को प्रोत्साहित करती है, जो शरीर और मन को शुद्ध करता है। 4. प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान वैदिक ज्ञान में प्रकृति और पर्यावरण को दिव्य रूप माना गया है। "वसुधैव कुटुंबकम" (संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है) का सिद्धांत पर्यावरण संरक्षण और समाज की एकता पर जोर देता है। 5. समाज और परिवार में सामंजस्य वैदिक साहित्य में दिए गए सिद्धांत जैसे "परोपकाराय सतां विभूतयः" (दूसरों की सेवा करना सर्वोत्तम गुण है) समाज में परस्पर सहयोग और शांति का संदेश देते हैं। परिवार और समाज में सही आचरण और कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा देता है। 6. ज्ञान और शिक्षा वैदिक ज्ञान शिक्षा का महत्व बताता है और हर व्यक्ति को आत्मज्ञान और विवेक के लिए प्रेरित करता है। यह व्यक्ति को सही निर्णय लेने और जीवन में संतुलन बनाए रखने की क्षमता प्रदान करता है। निष्कर्ष वैदिक ज्ञान न केवल प्राचीन काल के लिए प्रासंगिक था, बल्कि यह आज भी आधुनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए समाधान प्रदान करता है। इसे अपने दैनिक जीवन में अपनाने से व्यक्ति न केवल व्यक्तिगत विकास कर सकता है, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है।
वैदिक ज्ञान का दैनिक जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह न केवल आध्यात्मिक विकास में सहायक है, बल्कि जीवन को संतुलित, अनुशासित और उद्देश्यपूर्ण बनाने में भी मदद करता है। वैदिक ज्ञान प्राचीन भारतीय परंपरा का हिस्सा है, जिसमें जीवन के सभी पहलुओं—आध्यात्मिकता, नैतिकता, स्वास्थ्य, और समाज के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। 1. आध्यात्मिकता और मानसिक शांति वैदिक ज्ञान हमें आत्मा और ब्रह्मांड के संबंध को समझने में मदद करता है। ध्यान और योग, जो वैदिक परंपरा का हिस्सा हैं, मानसिक शांति और आत्मसंतोष प्रदान करते हैं। भगवद्गीता, उपनिषद, और अन्य वैदिक ग्रंथ जीवन के गहरे प्रश्नों का उत्तर देते हैं। 2. नैतिकता और जीवन के सिद्धांत वैदिक शिक्षाएं धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष के चार पुरुषार्थ (जीवन के उद्देश्य) पर आधारित हैं। यह हमें सत्य, अहिंसा, दया, और ईमानदारी जैसे गुणों को अपनाने की प्रेरणा देती हैं। 3. स्वास्थ्य और जीवनशैली आयुर्वेद, जो वैदिक ज्ञान का हिस्सा है, स्वस्थ जीवन के लिए दैनिक और मौसमी नियम बताता है। योग और प्राणायाम जैसे अभ्यास शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारते हैं। भोजन के संबंध में वैदिक परंपरा सात्विक आहार को प्रोत्साहित करती है, जो शरीर और मन को शुद्ध करता है। 4. प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान वैदिक ज्ञान में प्रकृति और पर्यावरण को दिव्य रूप माना गया है। "वसुधैव कुटुंबकम" (संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है) का सिद्धांत पर्यावरण संरक्षण और समाज की एकता पर जोर देता है। 5. समाज और परिवार में सामंजस्य वैदिक साहित्य में दिए गए सिद्धांत जैसे "परोपकाराय सतां विभूतयः" (दूसरों की सेवा करना सर्वोत्तम गुण है) समाज में परस्पर सहयोग और शांति का संदेश देते हैं। परिवार और समाज में सही आचरण और कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा देता है। 6. ज्ञान और शिक्षा वैदिक ज्ञान शिक्षा का महत्व बताता है और हर व्यक्ति को आत्मज्ञान और विवेक के लिए प्रेरित करता है। यह व्यक्ति को सही निर्णय लेने और जीवन में संतुलन बनाए रखने की क्षमता प्रदान करता है। निष्कर्ष वैदिक ज्ञान न केवल प्राचीन काल के लिए प्रासंगिक था, बल्कि यह आज भी आधुनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए समाधान प्रदान करता है। इसे अपने दैनिक जीवन में अपनाने से व्यक्ति न केवल व्यक्तिगत विकास कर सकता है, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है।
Hello Everyone , भारत में कई शिव मंदिर और शिव धाम हैं लेकिन 12 ज्योतिर्लिंगों का महत्व सबसे अधिक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 12 ज्योतिर्लिंगों में ज्योति रूप में भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं। देश के अलग- अलग भागों में शिव के ये पावन ज्योतिर्लिंग स्थित हैं। ऐसा माना जाता है, 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। आइए, आज जानते हैं देश में कहां-कहां पर स्थित हैं भगवान शिव के ये 12 ज्योतिर्लिंग... 1 - गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यहां पर देवताओं द्वारा बनवाया गया एक पवित्र कुंड भी है, जिसे सोमकुण्ड या पापनाशक-तीर्थ कहते हैं। 2 - मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। 3 - मध्य प्रदेश स्थित के उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां प्रतिदिन होने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। 4 - मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में शिव का यह पावन धाम स्थित है। इंदौर शहर के पास जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ॐ का आकार बनता है। 5 - केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 6 - भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। 7 - बाबा विश्वनाथ का यह ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश की धार्मिक राजधानी माने जाने वाली वाराणसी शहर में स्थित है। 8 - त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है। 9 - वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड प्रांत के संथाल परगना में जसीडीह रेलवे स्टेशन के करीब स्थित है। धार्मिक पुराणों में शिव के इस पावन धाम को चिताभूमि कहा गया है। 10 - नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के बड़ौदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के करीब स्थित है। धार्मिक पुराणों में भगवान शिव को नागों का देवता बताया गया है और नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर। द्वारका पुरी से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। 11 - भगवान शिव का यह ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथम नामक स्थान में स्थित है। रामेश्वरतीर्थ को ही सेतुबंध तीर्थ भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान श्री राम द्वारा स्थापित किए जाने के कारण इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है। 12 - घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इस स्थान को ‘शिवालय’ भी कहा जाता है।
Hello Everyone , In this Episode I am going to explain the vivid importance of Vedas our Ritual Epics . We can improve our day to day work by taking help of Vedas . Listen to the full podcast and get help in your daily life .
Mother's Day is a special occasion dedicated to honouring and celebrating the remarkable women who have embraced the role of motherhood. It is a day to express gratitude, love, and appreciation for the selfless love, care, and support that mothers provide.
Hello Everyone , Today we all are very busy in our nowadays deeds . We have no time for others . But everyone want to life his childhood forever . Here I am going to tell you about the trick of live life long theory . How we can alive a child in ourselves . Listen the full podcast and get to know the trick .
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Hello Everyone , Listen the full story of Bhai Dooj and significance of Bhai Dooj.
यहां विस्तारपूर्वक जानें मां लक्ष्मी के साथ क्यों होती है भगवान गणेश का पूजा- बता दें कि इसके पीछे बैरागी साधु की कथा भी प्रचलित है।दरअसल एक बार एक वैरागी साधु को राजसुख भोगने की लालसा हुई उसने लक्ष्मी जी की आराधना की। उसकी आराधना से लक्ष्मी जी प्रसन्न हुईं और उसे साक्षात् दर्शन देकर वरदान दिया कि उसे उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा। दूसरे दिन वह वैरागी साधु राज दरबार में पहुंचा। वरदान मिलने के बाद उसे अभिमान हो गया। उसने राजा को धक्का मारा जिससे राजा का मुकुट नीचे गिर गया। राजा व उसके दरबारीगण उसे मारने के लिए दौड़े। लेकिन इसी बीच राजा के गिरे हुए मुकुट से एक कालानाग निकल कर भागने लगा। फिर क्या राजा ने इसे साधु की चमत्कार समझकर उसे अपना मंत्री बना लिया.. व उसे रहने के लिए अलग से महल भी दिया। इसी तरह फिर एक दिन उस साधु ने राजा ने अनजाने में राजा की जान बचा। और ऐसे साधु को वाहवाही मिल गई। इससे उसका अहंकार और भी बढ़ गया। इसके बाद अहंकारी साधु ने भगवान गणेश की प्रतिमा को बुरा बताते हुए महल से उसे हटवा दिया फिर क्या बुद्धि और विवेक के दाता भगवान गणेश उससे नाराज़ हो गए। उसी दिन से उस मंत्री बने साधु की बुद्धि बिगड़ गई वह उल्टा पुल्टा करने लगा। तभी राजा ने उस साधू से नाराज होकर उसे कारागार में डाल दिया। साधू जेल में पुनः लक्ष्मीजी की आराधना करने लगा। फिर मां लक्ष्मी ने दर्शन दे कर उससे कहा कि तुमने गणेश जी का अपमान किया है। इसलिए गणेश जी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न करो। फिर साधु ने ऐसा ही किया। जिससे भगवान गणेश का क्रोध शांत हो गया। गणेश जी ने राजा के स्वप्न में आ कर कहा कि साधु को पुनः मंत्री बनाया जाए। राजा ने गणेश जी के आदेश का पालन किया और साधु को मंत्री पद देकर सुशोभित किया। इस तरह लक्ष्मीजी और गणेश जी की पूजा साथ-साथ होने लगी। इसलिए कहते हैं कि बुद्धि के देवता गणेश जी की भी उपासना लक्ष्मी जी के साथ ज़रूर करनी चाहिए क्योंकि अगर लक्ष्मी घर में आ भी जाये तो बुद्धि के उपयोग के बिना उन्हें रोक पाना मुश्किल है। अतः इस कारण के चलते दीपावली की रात्रि में लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी की भी आराधना की जाती है।
Hello Everyone , There are many festivals . Every one celebrates different types of festival but Diwali is one and only the biggest festival of all . This is a festival of lights . Before Diwali celebration we celebrate Dhanteras . Why this festival is important and what is a story behind it's celebration ? Listen the full story and get to know about it .
Hello Everyone , Listen the devotional song of Yashomati Maiya se bole nand Lala .
Hello Everyone , This Is A Nice Story Of A Great Lady . She Was Very Talented And Kind Hearted . She Always Helped Others . Once There Was A Quarrel For The Mai . Everyone Wanted That Mai Would Attend His Family Program , But The Decision Taken By Mai Was Very Strange . Listen The Full Story And Get To Know About The Moral.
Hello Everyone , This is a mythological Story of Lord Ganesha . Ganapati is one of the most important gods in Hindu mythology and he is also worshipped in Jainism and Buddhism. For the Ganapatya Hindu sect, Ganesha is the most important deity. Ganesha is highly recognisable with his elephant head and human body, representing the soul (atman) and the physical (maya) respectively. He is also the patron of writers, travellers, students, commerce, and new projects (for which he removes obstacles from one's path) and is rather fond of sweets, to the slight detriment of his figure. Early Life Ganesha is the son of Shiva and Parvati and he is the brother of Karthikeya (or Subrahmanya), the god of war. He was created by his mother using earth which she moulded into the shape of a boy. As Shiva was away on his meditative wanderings, Parvati set her new son as guard while she bathed. Unexpectedly, Shiva returned home and, on finding the boy, and outraged at his impudence in claiming he was Parvati’s son, Shiva called for his gang of demons, the bhutaganas, who fought ferociously with the boy. However, the youngster easily held his own against such fearsome adversaries and Vishnu was forced to intervene in the form of Maya and, whilst the boy was distracted by her beauty, the demons, or Shiva himself, lopped off his head. At the commotion, Parvati ran from her bath and remonstrated with Shiva for so summarily killing their son. Repentant, Shiva ordered a new head to be found for the boy and, as the first animal available was an elephant, so Ganesha gained a new head and became the most distinctive of the Hindu gods. As a reward for his great courage in fighting the demons, Shiva made Ganesha the leader of the bhutaganas, hence his name.
School prayer for kids . Hindi prayer for school .
योग एव जीवनस्य आधार ः स्वास्थ्य प्रबोधा वि श्वमनोज्ञा ललि ता हृद्या रमणीया अतं ःकरण शद्ुधि कर्ता नवै क्रि स्टा न च कठि नाई । तत्वज्ञान रहस्यायैपरि पर्णाू र्णा आत्मसाक्षात्कारस्य सरल मार्गा अतीव सरला सर्व प्रि या नवै क्लिष्टा न च कठिना । महर्षि पतंजलि प्रति पादि ता अष्टांगयोग सरल वि वेचना अनेक रोगाणांएकमेव औषधि नवै क्लि ष्टा न च कठि नाई । तन मन हृदय मस्ति ष्क प्रबोधि ता अमतृ मधरुता कर्म प्रज्वलि ता वाह्य आतं रि क च शक्ति प्रदायि का नवै क्लिष्टा न च कठिना ।
Hello Everyone , Om Chanting | Meditation Music | Sleep Music Yoga Music Meditation Music Relax Mind Body Om Meditation@prernakepankh Om (Aum) when chanted properly is attributed with peace, tranquility, meditation, bliss, nirvana, eternal realization, soul, purity, mental stability, concentration, sound health, longevity, leverages the current phase of goodness, brings holiness and all those virtues that every human being yearns for.
Hello Everyone , Music is great for practicing yoga and meditation. Deep sounds and beautiful bamboo flute melody will help you relax with relieve stress . Us often write positive feedback from people who teach or practicing yoga and meditation. We are really glad that our music brings joy and pacification. Every such comment gives us positive energy and a firm understanding that we are working for good reason. Thank you for staying with us and sharing links to our music videos with your friends through social networks. This means a lot for us and for the development of our music which in quality is one of the best music.
Mahishasurmadini Stotram - अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदी न्नुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१॥ सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिष मोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२॥ अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते। मधुमधुरे मधुकैटभ गञ्जिनि कैटभ भञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥३॥ अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुंड गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते। निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥४॥ अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते। दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥५॥ अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे। दुमिदुमितामर धुन्दुभिनाद महोमुखरीकृत दिङ्मकरे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥६॥ अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते समरविशोषित शोणितबीज समुद्भव शोणित बीजलते। शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥७॥ धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके। कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥८॥ सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते। धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥९॥ जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुर शिञ्जितमोहित भूतपते। नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१०॥ अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते। सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥११॥ सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते। शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१२॥ अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते। अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१३॥ कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले। अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१४॥ करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते। निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१५॥ कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे। जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१६॥ विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते। सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१७॥ पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्। तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१८॥ कनकलसत्कल सिन्धुजलैरनु षिञ्चतितेगुण रङ्गभुवम् भजति स किं न शचीकुचकुम्भ तटीपरिरम्भ सुखानुभवम्। तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम् जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१९ तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते। मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२०॥ अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते। यदुचितमत्र भवत्युररी कुरुतादुरुता पमपाकुरुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२१॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् । नवकंज लोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कन्जारुणम ॥1॥ कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम । पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरम् ॥2॥ भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम् । रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथ नन्दनम ॥3॥ सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं । आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धुषणं ॥4॥ इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम् । मम् हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम् ॥5॥