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हिन्दी कहानियाँ Hindi Story
हिन्दी कहानियाँ Hindi Story
Author: Rajesh Kumar
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© Rajesh Kumar
Description
If you want to improve your Hindi language, then you must listen Hindi stories. Our podcasts have funny stories which include general Hindi story, moral stories and children's stories. Sometimes we also conduct Hindi interviews on our shows. You can learn a lot by listening to them. You can listen to our podcast on different platforms to improve your Hindi language
यहाँ पर आपको हिन्दी कहानियाँ मिलेंगी।
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For business inquiries rajasikar11@gmail.com
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नमस्कार श्रोताओ ! आज की पॉडकास्ट में आपको जयपुर के 10 प्रमुख पर्यटक स्थलों की जानकारी दे रहे हैं। अगर आपको हमारी पॉडकास्ट पसंद आती है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अगर आपका पॉडकास्ट से संबंधित कोई भी सवाल है या जयपुर के पर्यटक स्थलों के बारे में कुछ और जानकारी जानना चाहते हैं तो भी आप कमेंट करके हमें पूछ सकते हैं हम आपके हर कमेंट का जवाब देंगे।
Hello listeners! In today's podcast, we are giving you information about 10 major tourist places of Jaipur. If you like our podcast, then do tell us by commenting and if you have any question related to the podcast or want to know some more information about the tourist places of Jaipur, then also you can ask us by commenting, we will answer your every comment. Will answer.
“मैं उसके बिना जिन्दा नहीं रह सकती!” उन्होंने फैसला किया।
“तो मर जाओ!” जी चाहा कह दूँ। पर नहीं कह सकती। बहुत से रिश्ते हैं, जिनका लिहाज करना ही पड़ता है। एक तो दुर्भाग्य से हम दोनों औरत जात हैं। न जाने क्यों लोगों ने मुझे नारी जाति की समर्थक और सहायक समझ लिया है। शायद इसलिए कि मैं अपने भतीजों को भतीजियों से ज्यादा ठोका करती हूँ।
खुदा कसम, मैं किसी विशेष जाति की तरफदार नहीं। मेरी भतीजियाँ अपेक्षाकृत सीधी और भतीजे बड़े ही बदमाश हैं। ऐसी हालत में हर समझदार उन्हें सुधारने के लिए डाँटते-फटकारते रहना इन्सानी फर्ज समझता है।
पर उन्हें यह कैसे समझाऊँ। वे मुझे अपनी शुभचिन्तक मान चुकी हैं। और वह लड़की, जो किसी के बिना जिन्दा न रह सकने की स्थिति को पहुँच चुकी हो, कुछ हठीली होती है, इसलिए मैं कुछ भी करूँ, उसके प्रति अपनी सहानुभूति से इनकार नहीं कर सकती। अनचाहे या अनमने रूप से सही, मुझे उनके हितैषियों और शुभचिन्तकों की पंक्ति में खड़ा होना पड़ता है।
दुर्भाग्य से मेरा स्वास्थ्य हमेशा ही अच्छा रहा और बीमार होकर मुर्गी के शोरबे और अंगूर खाने के मौके बहुत ही कम मिल पाये। यही कारण था कि शायद कभी प्राण-घातक किस्म का इश्क न हो सका। हमारे अब्बा जरूरत से ज्यादा सावधानी बरतने वालों में से थे। हर बीमारी की समय से पहले ही रोक-थाम कर दिया करते थे। बरसात आयी और पानी उबाल कर मिलने लगा। आस-पास के सारे कुँओं में दवाइयाँ पड़ गयीं। खोंचे वालों के चालान करवाने शुरू कर दिये। हर चीज ढँकी रहे। बेचारी मक्खियाँ गुस्से से भनभनाया करतीं, क्या मजाल जो एक जर्रा मिल जाये। मलेरिया फैलने से पहले कुनेन हलक से उतार दी जाती और फोड़े-फुंसियों से बचने के लिए चिरायता पिलाया जाता।
बहुत दिनों के बाद बाज़ारों में तुर्रेदार पगड़ियाँ और लाल तुर्की टोपियाँ दिखाई दे रही थीं। लाहौर से आए हुए मुसलमानों में काफ़ी संख्या ऐसे लोगों की थी, जिन्हें विभाजन के समय मजबूर होकर अमृतसर छोड़कर जाना पड़ा था। साढ़े सात साल में आए अनिवार्य परिवर्तनों को देखकर कहीं उनकी आँखों में हैरानी भर जाती और कहीं अफ़सोस घिर आता-- वल्लाह, कटड़ा जयमलसिंह इतना चौड़ा कैसे हो गया? क्या इस तरफ़ के सबके सब मकान जल गए? यहाँ हकीम आसिफ़ अली की दुकान थी न ? अब यहाँ एक मोची ने कब्जा कर रखा है।
और कहीं-कहीं ऐसे भी वाक्य सुनाई दे जाते -- वली, यह मस्जिद ज्यों की त्यों खड़ी है ? इन लोगों ने इसका गुरूद्वारा नहीं बना दिया ?
जिस रास्ते से भी पाकिस्तानियों की टोली गुजरती, शहर के लोग उत्सुकतापूर्वक उसकी ओर देखते रहते। कुछ लोग अब भी मुसलमानों को आते देखकर शंकित-से रास्ते हट जाते थे, जबकि दूसरे आगे बढ़कर उनसे बगलगीर होने लगते थे। ज्यादातर वे आगन्तुकों से ऐसे-ऐसे सवाल पूछते थे कि आजकल लाहौर का क्या हाल है? अनारकली में अब पहले जितनी रौनक होती है या नहीं? सुना है, शाहालमी गेट का बाज़ार पूरा नया बना है? कृष्ण नगर में तो कोई खास तब्दीली नहीं आई? वहाँ का रिश्वतपुरा क्या वाकई रिश्वत के पैसे से बना है? कहते हैं पाकिस्तान में अब बुर्का बिल्कुल उड़ गया है, यह ठीक है? इन सवालों में इतनी आत्मीयता झलकती थी कि लगता था कि लाहौर एक शहर नहीं, हज़ारों लोगों का सगा-सम्बन्धी है, जिसके हालात जानने के लिए वे उत्सुक हैं। लाहौर से आए हुए लोग उस दिन शहर-भर के मेहमान थे, जिनसे मिलकर और बातें करके लोगों को खामखाह ख़ुशी का अनुभव होता था।
बड़ा बाग़
भारत में राजस्थान राज्य में रामगढ़ के रास्ते पर जैसलमेर से लगभग ६ किलोमीटर उत्तर में एक उद्यान परिसर है। यह जैसलमेर के महाराजाओं के शाही समाधि स्थल या छत्रियों का एक सेट जैसा है, जिसकी शुरुआत जय सिंह द्वितीय के साथ १७४३ ईस्वी में की थी।
इतिहास
राज्य के संस्थापक और जैसलमेर राज्य के महाराजा, जैत सिंह द्वितीय (१४९७-१५३०), महारावल जैसल सिंह के वंशज, १६वीं शताब्दी में उनके शासनकाल के दौरान एक पानी की टंकी बनाने के लिए एक बांध बनाया था। इससे इस क्षेत्र में रेगिस्तान हरा हो गया।
उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटे लूणकरण ने झील के बगल में एक सुंदर बगीचा और झील के बगल में एक पहाड़ी पर अपने पिता के लिए छतरी का निर्माण करवाया। बाद में, लूणकरण और अन्य भाटियों के लिए यहां कई और स्मारकों का निर्माण किया गया। अंतिम छतरी, महाराजा जवाहर सिंह'महाराज रघुनाथ सिंह और पृथ्वीराज सिंह की है, जो २०वीं सदी की तारीखों और भारतीय स्वतंत्रता के बाद पूरी नहीं हो पायी।
विवरण
बड़ा बाग़ एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। बड़ा बाग में प्रवेश पहाड़ी के नीचे से होता है। पहली पंक्ति में कुछ स्मारक हैं और भी कई स्मारक हैं, जो पहाड़ियों पर चढ़ने में सुलभ हैं। स्मारक विभिन्न आकारों के हैं और बलुआ पत्थर के नक्काशीदार हैं। शासकों, रानियों, राजकुमारों और अन्य शाही परिवार के सदस्यों के स्मारक बनाये गए हैं।ये छतरी बनाने का अधिकार शाही परिवार के देहवासी राजा के पोते का होता है।।जवाहर सिंह और गिरधर सिंह महाराज की छतरियां अभी पूर्ण नही हो पाई।। प्रत्येक शासक के स्मारक में एक संगमरमर का स्लैब है, जिसमें शासक के बारे में शिलालेख और घोड़े पर एक व्यक्ति की छवि है।स्थानीय भाषा मे इस घुड़सवार शिलालेख को जुंझार बोलते है जो देवतुल्य होता है।।
वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें।
https://youtu.be/tpQmFrs1_Kg
Patwon Ki Haveli In Hindi : पटवों की हवेली राजस्थान के जैसलमेर में स्थित एक प्राचीन आवास संरचना है जिसको अक्सर ‘हवेली’ कहा जाता है। यह हवेली राजस्थान का एक प्रमुख पर्यटन और ऐतिहासिक स्थल है। पीले करामाती शेड में रंगीन, पटवों की हवेली इस शहर की यात्रा करने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ बेहद अकर्षित करती है। यह मनमोहक हवेली जैसलमेर का एक प्रभावशाली स्मारक है क्योंकि यह शहर के प्राचीन निर्माणों में से एक है। पटवों की हवेली पांच हवेलियों का समूह है जिसका निर्माण एक अमीर व्यापारी ‘पटवा’ द्वारा किया गया है, जिसकें अपने पांच बेटों में से प्रत्येक के लिए एक का निर्माण किया था।
इस हवेली के पाँचों सदन 19 वीं शताब्दी में 60 वर्षों के अंदर पूरे हुए थे। अगर आप राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों या जैसलमेर शहर की सैर करने जा रहे हैं तो इस आर्टिकल को जरुर पढ़ें, यहां हम आपको पटवों की हवेली के इतिहास, रोचक तथ्य, एंट्री फीस, टाइमिंग और कैसे पहुंचे के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं।
1. पटवों की हवेली का इतिहास और रोचक तथ्य- Patwon Ki Haveli History And Interesting Facts In Hindi
पटवों की हवेली पाँच हवेलियों से मिलकर बनी है जो इसके परिसर के भीतर है और यह जैसलमेर शहर में अपनी तरह की सबसे बड़ी हवेली है।
पहली हवेली, जिसे कोठारी की पटवा हवेली के नाम से जाना जाता है, यह इन हवेलियों में से एक है।
वर्ष 1805 में पहली हवेली का निर्माण गुमान चंद पटवा द्वारा किया गया था, जो एक प्रसिद्ध आभूषण और ब्रोकेस व्यापारी थे।
यहां पर ब्रोकेड व्यापारिक प्रतिष्ठा के कारण पटवों की हवेली को अपने उत्कट व्यापारिक विशेषताओं की वजह से ‘हवेली ऑफ़ ब्रोकेड मर्चेंट्स’ भी कहा जाता था।
स्थानीय लोग पटवों की हवेली के चांदी और सुनहरे धागे व्यापारियों के बार में बताते हैं, जिन्होंने उस जमाने में अफीम तस्करी करके बहुत पैसा कमाया था।
इन हवेलियों के भीतर मेहराब और प्रवेश द्वार की अपनी अलग खासियत है जो उन्हें एक-दूसरे से अलग करती हैं, प्रत्येक में एक अलग शैली का मिरर वर्क और चित्रों का चित्रण है।
हवेलियों के खंडों में से एक में मूरल वर्क बहुत ही अद्भुद तरीके से डिज़ाइन किया गया है, और इसके झरोखे, मेहराब, बालकनियों, प्रवेश द्वार और दीवारों पर भी जटिल नक्काशी और पेंटिंग हैं।
पटवों के पांच भाइयों और उनके परिवारों के लिए एक अलग हवेली थी, जिनमे से सभी को एक अलग सुविधा मिलती थी।
हवाली के परिसर में संग्रहालय है, जिसमें बीते युग की कलाकृतियों, चित्रों, कला और शिल्प का शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है, जो समृद्ध जीवन शैली को प्रदर्शित करने के लिए हवेलियों के निवासियों का चित्रण करते हैं।
यहां की सभी हवेलियों को 50 वर्षों के अंतराल में डिजाइन किया गया था जिसमें से पहली हवेली सबसे भव्य है जिसको बनाने में सबसे ज्यादा समय लगा था।
पटवों की हवेली राजस्थान में निर्मित दूसरी सबसे लोकप्रिय हवेली और जैसलमेर शहर की सबसे लोकप्रिय हवेली है।
पटवों की हवेली के खंभे और छत पर उस समय के विशेषज्ञों द्वारा की गई आकर्षक और जटिल नक्काशी है। इसके दरवाजे बारीक डिजाइनों से भरे हुए हैं जो वास्तुकला के शौकीनों को बेहद पसंद आते हैं।
2. पटवों की हवेली वास्तुकला- Patwon Ki Haveli Architecture In Hindi
पटवों की हवेली की वास्तुकला की गहनता इस संरचना की उत्कृष्ट दीवार चित्रों, बालकनियों में है जो एक मनोरम दृश्य द्वार, मेहराब के लिए खुली हुई है। सबसे खास बात यह है कि इसकी दीवार पर दर्पण से वर्क किया गया है। अपने पिछले मालिकों के बाद इस हवेली को ‘ब्रोकेड मर्चेंट की हवेली’ के रूप में भी जाना जाता है, जो सोने के धागे के व्यापारी थे और एक अफीम व्यापारी थी, जो तस्करी के जरिये पैसा कमाते थे। इस हवेली के एक खंड को मुरल वर्क से डिजाइन किया गया है और प्रत्येक भाग दूसरे भाग से एक विशिष्ट शैली का चित्रण करते हुए अलग होता है। इसके अलावा यह हवेली बीते युग की समृद्ध संस्कृति का प्रतिनिधित्व भी करती है। यहां की पेंटिंग और कलाकृतियाँ इसके निवासियों की जीवन शैली का प्रदर्शन करती है। 60 से अधिक बालकनियों के साथ खंभे और छत को इस स्वर्ण वास्तुकला के जटिल डिजाइन और लघु कार्यों से उकेरा गया है।
वीडियो के लिए क्लिक करें
https://youtu.be/0muqWUgy_pU
जैसलमेर दुर्ग स्थापत्य कला की दृष्टि से उच्चकोटि की विशुद्ध स्थानीय दुर्ग रचना है। ये दुर्ग २५० फीट तिकोनाकार पहाडी पर स्थित है। इस पहाडी की लंबाई १५० फीट व चौडाई ७५० फीट है।
रावल जैसल ने अपनी स्वतंत्र राजधानी स्थापित की थी। स्थानीय स्रोतों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण ११५६ ई. में प्रारंभ हुआ था। परंतु समकालीन साक्ष्यों के अध्ययन से पता चलता है कि इसका निर्माण कार्य ११७८ ई. के लगभग प्रारंभ हुआ था। ५ वर्ष के अल्प निर्माण कार्य के उपरांत रावल जैसल की मृत्यु हो गयी, इसके द्वारा प्रारंभ कराए गए निमार्ण कार्य को उसके उत्तराधिकारी शालीवाहन द्वारा जारी रखकर दुर्ग को मूर्त रूप दिया गया। रावल जैसल व शालीवाहन द्वारा कराए गए कार्यो का कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं मिलता है। मात्र ख्यातों व तवारीखों से वर्णन मिलता है।
जैसलमेर दुर्ग मुस्लिम शैली विशेषतः मुगल स्थापत्य से पृथक है। यहाँ मुगलकालीन किलों की तंक-भंक, बाग-बगीचे, नहरें-फव्वारें आदि का पूर्ण अभाव है, चित्तौड़ के दुर्ग की भांति यहां महल, मंदिर, प्रशासकों व जन-साधारण हेतु मकान बने हुए हैं, जो आज भी जन-साधारण के निवास स्थल है। कहा जाता है कि विश्व में इस दुर्ग के अतिरिक्त अन्य किसी भी दुर्ग पर जीवन यापन हेतु लोग नहीं रहते हैं !
जैसलमेर दुर्ग पीले पत्थरों के विशाल खण्डों से निर्मित है। पूरे दुर्ग में कहीं भी चूना या गारे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। मात्र पत्थर पर पत्थर जमाकर फंसाकर या खांचा देकर रखा हुआ है। दुर्ग की पहांी की तलहटी में चारों ओर १५ से २० फीट ऊँचा घाघरानुमा परकोट खिचा हुआ है, इसके बाद २०० फीट की ऊँचाई पर एक परकोट है, जो १० से १५६ फीट ऊँचा है। इस परकोट में गोल बुर्ज व तोप व बंदूक चलाने हेतु कंगूरों के मध्य बेलनाकार विशाल पत्थर रखा है। गोल व बेलनाकार पत्थरों का प्रयोग निचली दीवार से चढ़कर ऊपर आने वाले शत्रुओं के ऊपर लुढ़का कर उन्हें हताहत करने में बडें ही कारीगर होते थे, युद्ध उपरांत उन्हें पुनः अपने स्थान पर लाकर रख दिया जाता था। इस कोट के ५ से १० फीट ऊँची पूर्व दीवार के अनुरुप ही अन्य दीवार है। इस दीवार में ९९ बुर्ज बने है। इन बुर्जो को काफी बाद में महारावल भीम और मोहनदास ने बनवाया था। बुर्ज के खुले ऊपरी भाग में तोप तथा बंदुक चलाने हेतु विशाल कंगूरे बने हैं। बुर्ज के नीचे कमरे बने हैं, जो युद्ध के समय में सैनिकों का अस्थाई आवास तथा अस्र-शस्रों के भंडारण के काम आते थे।
इन कमरों के बाहर की ओर झूलते हुए छज्जे बने हैं, इनका उपयोग युद्ध-काल में शत्रु की गतिविधियों को छिपकर देखने तथा निगरानी रखने के काम आते थे। इन ९९ बुर्जो का निर्माण कार्य रावल जैसल के समय में आरंभ किया गया था, इसके उत्तराधिकारियों द्वारा सतत् रुपेण जारी रखते हुए शालीवाहन (११९० से १२०० ई.) जैत सिंह (१५०० से १५२७ ई.) भीम (१५७७ से १६१३ ई.) मनोहर दास (१६२७ से १६५० ई.) के समय पूरा किया गया। इस प्रकार हमें दुर्ग के निर्माण में कई शताब्दियों के निर्माण कार्य की शैली दृष्टिगोचर होती है।
वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें
https://youtu.be/doZB1atGWWc
https://youtu.be/VCbEd6gsX1g
कहानी बहुत छोटी सी है मुझे ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट की सातवीं मंज़िल पर जाना था। अाई०सी०यू० में गाड़ी पार्क करके चला तो मन बहुत ही दार्शनिक हो उठा था। क़ितना दु:ख और कष्ट है इस दुनिया में...लगातार एक लड़ाई मृत्यु से चल रही है...अौर उसके दु:ख और कष्ट को सहते हुए लोग -- सब एक से हैं। दर्द और यातना तो दर्द और यातना ही है -- इसमें इंसान और इंसान के बीच भेद नहीं किया जा सकता। दुनिया में हर माँ के दूध का रंग एक है। ख़ून और आंसुओं का रंग भी एक है। दूध, खून और आँसुओं का रंग नहीं बदला जा सकता...शायद उसी तरह दु:ख़, कष्ट और यातना के रंगों का भी बँटवारा नहीं किया जा सकता। इस विराट मानवीय दर्शन से मुझे राहत मिली थी.... मेरे भीतर से सदियाँ बोलने लगी थीं। एक पुरानी सभ्यता का वारिस होने के नाते यह मानसिक सुविधा ज़रूर है कि तुम हर बात, घटना या दुर्घटना का कोई दार्शनिक उत्तर खोज सकते हो। समाधान चाहे न मिले, पर एक अमूर्त दार्शनिक उत्तर ज़रूर मिल जाता है।
और फिर पुरानी सभ्यताओं की यह खूबी भी है कि उनकी परम्परा से चली आती संतानों को एक आत्मा नाम की अमूर्त शक्ति भी मिल गई है -- और सदियों पुरानी सभ्यता मनुष्य के क्षुद्र विकारों का शमन करती रहती है...एक दार्शनिक दृष्टि से जीवन की क्षण-भंगुरता का एहसास कराते हुए सारी विषमताओं को समतल करती रहती है...
मुझे अपने उस मित्र की बातें याद आईं जिसने मुझे संध्या के संगीन ऑपरेशन की बात बताई थी ओर उसे देख आने की सलाह दी थी। उसी ने मुझे आई०सी०यू० में संध्या के केबिन का पता बताया था -- आठवें फ्लोर पर ऑपरेशन थिएटर्स हैं और सातवें पर संध्या का आ०सी०यू०। मेजर ऑपेरशन में संध्या की बड़ी आँत काटकर निकाल दी गई थी और अगले अड़तालीस घण्टे क्रिटिकल थे...
रास्ता इमरजेंसी वार्ड से जाता था। एक बेहद दर्द भरी चीख़ इमरजेंसी वार्ड से आ रही थी... वह दर्द-भरी चीख़ तो दर्द-भरी चीख़ ही थी-- कोई घायल मरीज असह्य तकलीफ़ से चीख़ रहा था। उस चीख़ से आत्मा दहल रही थी... दर्द की चीख़ और दर्द की चीख़ में क्या अन्तर था! दूध, ख़ून और आँसुओं के रंगों की तरह चीख़ की तकलीफ़ भी तो एक-सी थी। उसमें विषमता कहाँ थी?...
मेरा वह मित्र जिसने मुझे संध्या को देख आने की फ़र्ज अदायगी के लिए भेजा था,वह भी इलाहाबाद का ही था। वह भी उसी सदियों पुरानी सभ्यता का वारिस था। ठेठ इलाहाबादी मौज में वह भी दार्शनिक की तरह बोला था-- अपना क्या है ? रिटायर हाने के बाद गंगा किनारे एक झोपड़ी डाल लेंगे। आठ-दस ताड़ के पेड़ लगा लेंगे... मछली मारने की एक बंसी...दो चार मछलियाँ तो दोपहर तक हाथ आएँगी ही... रात भर जो ताड़ी टपकेगी उसे फ्रिज में रख लेंगे...
--फ्रिज में ?
-- और क्या... माडर्न साधू की तरह रहेंगे ! मछलियां तलेंगे, खाएँगे और ताड़ी पीएँगे...और क्या चाहिए... पेंशन मिलती रहेगी। और माया-मोह क्यों पालें? पालेंगे तो प्राण अटके रहेंगे... ताड़ी और मछली... बस, आत्मा ताड़ी पीकर, मछली खाके आराम से महाप्रस्थान करे... न कोई दु:ख, न कोई कष्ट... लेकिन तुम जाके संध्या को देख ज़रूर आना...वो क्रिटिकल है...
कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को हुआ था. उपन्यास और कहानी विधा में उन्होंने जमकर लेखन किया. उनकी प्रमुख कृतियों में डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, सूरजमुखी अंधेरे के, सोबती एक सोहबत, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, जैनी मेहरबान सिंह जैसे उपन्यास शामिल हैं.
हिंदी साहित्य की महान साहित्यकारा और लेखिका के रूप में जानी जाने वाली कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात और पंजाब के उस हिस्से में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। साहित्य में इनके योगदान के लिए इ.न्हें कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजा गया है, वहीं अपनी कुछ रचनाओं के लिए ये विवादों में रही। सोबती को प्रसिद्धि उनके उपन्यास मित्रो मरजानी ने दिलाई थी। यह एक ऐसा उपन्यास था जिसमें उन्होंने एक विवाहित महिला की कामुकता का एक नायाब चित्रण किया था। इन्होंने हशमत नाम से भी लेखन का कार्य किया हुआ है और हशमत नाम से उसको प्रकाशित भी करवाया, जो कि लेखकों और दोस्तों की कलम के चित्रों का संकलन है। कृष्णा सोबती का जीवन परिचय (Biography of Krishna Sobti) इनका जन्म पंजाब प्रांत के गुजरात शहर में 18 फरवरी 1925 को हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इनकी शिक्षा दिल्ली और शिमला में हुई। इन्होंने अपने तीन भाई बहनों के साथ स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा की पढ़ाई शुरू की। इनका परिवार औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया करता था। उन्होंने शुरुआत में लाहौर के फतेहचंद कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा की शुरुआत की थी, परंतु जब भारत का विभाजन हुआ तो इनका परिवार भारत लौट आया। विभाजन के तुरंत बाद इन्होंने 2 साल तक महाराजा तेज सिंह के शासन में कार्य किया जो कि सिरोही, राजस्थान के महाराजा थे। कृष्णा सोबती की मृत्यु दिल्ली में उनके घर पर लंबी बीमारी की वजह से 25 जनवरी 2019 को हुई।
कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को हुआ था. उपन्यास और कहानी विधा में उन्होंने जमकर लेखन किया. उनकी प्रमुख कृतियों में डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, सूरजमुखी अंधेरे के, सोबती एक सोहबत, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, जैनी मेहरबान सिंह जैसे उपन्यास शामिल हैं.
हिंदी साहित्य की महान साहित्यकारा और लेखिका के रूप में जानी जाने वाली कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात और पंजाब के उस हिस्से में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। साहित्य में इनके योगदान के लिए इ.न्हें कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजा गया है, वहीं अपनी कुछ रचनाओं के लिए ये विवादों में रही। सोबती को प्रसिद्धि उनके उपन्यास मित्रो मरजानी ने दिलाई थी। यह एक ऐसा उपन्यास था जिसमें उन्होंने एक विवाहित महिला की कामुकता का एक नायाब चित्रण किया था। इन्होंने हशमत नाम से भी लेखन का कार्य किया हुआ है और हशमत नाम से उसको प्रकाशित भी करवाया, जो कि लेखकों और दोस्तों की कलम के चित्रों का संकलन है। कृष्णा सोबती का जीवन परिचय (Biography of Krishna Sobti) इनका जन्म पंजाब प्रांत के गुजरात शहर में 18 फरवरी 1925 को हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इनकी शिक्षा दिल्ली और शिमला में हुई। इन्होंने अपने तीन भाई बहनों के साथ स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा की पढ़ाई शुरू की। इनका परिवार औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया करता था। उन्होंने शुरुआत में लाहौर के फतेहचंद कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा की शुरुआत की थी, परंतु जब भारत का विभाजन हुआ तो इनका परिवार भारत लौट आया। विभाजन के तुरंत बाद इन्होंने 2 साल तक महाराजा तेज सिंह के शासन में कार्य किया जो कि सिरोही, राजस्थान के महाराजा थे। कृष्णा सोबती की मृत्यु दिल्ली में उनके घर पर लंबी बीमारी की वजह से 25 जनवरी 2019 को हुई।
कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को हुआ था. उपन्यास और कहानी विधा में उन्होंने जमकर लेखन किया. उनकी प्रमुख कृतियों में डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, सूरजमुखी अंधेरे के, सोबती एक सोहबत, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, जैनी मेहरबान सिंह जैसे उपन्यास शामिल हैं.
हिंदी साहित्य की महान साहित्यकारा और लेखिका के रूप में जानी जाने वाली कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात और पंजाब के उस हिस्से में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। साहित्य में इनके योगदान के लिए इ.न्हें कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजा गया है, वहीं अपनी कुछ रचनाओं के लिए ये विवादों में रही। सोबती को प्रसिद्धि उनके उपन्यास मित्रो मरजानी ने दिलाई थी। यह एक ऐसा उपन्यास था जिसमें उन्होंने एक विवाहित महिला की कामुकता का एक नायाब चित्रण किया था। इन्होंने हशमत नाम से भी लेखन का कार्य किया हुआ है और हशमत नाम से उसको प्रकाशित भी करवाया, जो कि लेखकों और दोस्तों की कलम के चित्रों का संकलन है।
कृष्णा सोबती का जीवन परिचय (Biography of Krishna Sobti)
इनका जन्म पंजाब प्रांत के गुजरात शहर में 18 फरवरी 1925 को हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इनकी शिक्षा दिल्ली और शिमला में हुई। इन्होंने अपने तीन भाई बहनों के साथ स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा की पढ़ाई शुरू की। इनका परिवार औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया करता था। उन्होंने शुरुआत में लाहौर के फतेहचंद कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा की शुरुआत की थी, परंतु जब भारत का विभाजन हुआ तो इनका परिवार भारत लौट आया। विभाजन के तुरंत बाद इन्होंने 2 साल तक महाराजा तेज सिंह के शासन में कार्य किया जो कि सिरोही, राजस्थान के महाराजा थे। कृष्णा सोबती की मृत्यु दिल्ली में उनके घर पर लंबी बीमारी की वजह से 25 जनवरी 2019 को हुई।
कितनी डरावनी थी वह चांदनी रात नीचे आंगन में तुम्हीं पड़ी थीं बन्नो...चांदनी में दूध-नहायी और पिछवाड़े पीपल खड़खड़ा रहा था और बदरू मियां की आवांज जैसे पाताल से आ रही थी ''कादिर मियां!...बन गया साला पाकिस्तान... ''
दोस्त! इस लम्बे सफर के तीन पड़ाव हैंपहला, जब मुझे बन्नो के मेहंदी के फूलों की हवा लग गयी थी, दूसराजब इस चांदनी रात में मैंने पहली बार बन्नो को नंगा देखा था और तीसरा तब, जब उस कमरे की चौखट पर बन्नो हाथ रखे खड़ी थी और पूछ रही थी ''और है कोई? ''
हां था। कोई और भी था।...कोई।
नमस्कार श्रोताओं !
आज के इस एपिसोड में हम सिर्फ अनौपचारिक बात करेंगे हम यह जानना चाहते हैं हमने एपिसोड में पूरी जानकारी दी है कि हमारी पॉडकास्ट कहां-कहां कौन-कौन से प्लेटफार्म पर सुनी जाती है और हम हमारा कांटेक्ट इनफार्मेशन भी आपको प्रोवाइड करवा रहे हैं ताकि आप हमसे कांटेक्ट कर सके जब आपका और हमारा कांटेक्ट बनेगा तो आपके लिए और इंटरेस्टिंग एपिसोड्स हम लेकर के आने वाले हैं जब हमें आपकी रूचि यों का पता चलेगा तो हम उसी अनुसार आपके लिए एपिसोड कास्ट करेंगे।
Hello listeners!
In today's episode, we will only talk informally, we want to know that we have given complete information in the episode that where our podcast is listened on which platforms and we are also providing our contact information to you so that you Can contact us when you and our contact will be made, then we will bring more interesting episodes for you, when we come to know about your interests, we will cast episodes accordingly.
Hello Listeners !
Today i gonna introduce you The subjunctive mood verb in Hindi.
Introduction
The subjunctive mood is very common in Hindi.
The titles of many popular movies contain the subjunctive mood, such as:
“जाने तू या जाने न” – “Whether you know it or not”
“कल हो न हो” – “Tomorrow may or may not be”, i.e. there might not be any tomorrow
“रंग दे बसंती” – “Color (me) basanti” (a color signifying a patriotic sacrifice)
If you visit India, you will probably encounter signs that use the subjunctive mood, such as:
“कृपया मंदिर के बहार अपने जूते उतार दें” – “Please remove your shoes outside the temple”
“कृपया रेलिंग से दुरी बनाये रखें” – “Please keep a distance from the railing”
If you fly on an airplane in India, you will hear announcements that use the subjunctive mood, such as:
सभी यात्रियों से निवेदन है कि वे अपनी कुर्सी की पेटी बांध लें – “We request that all passengers fasten their seat belt”
सभी यात्रियों से अनुरोध है कि वे अपना सामान अकेला न छोड़ें – “We request that all passengers not leave their baggage unattended”
You will probably hear some common expressions that involve the subjunctive mood, such as:
जो हो सो हो – “Whatever will be will be”
The subjunctive mood is one of the four verb moods in Hindi.
The subjunctive mood is used to express an action or state that is somehow unreal, such as a possibility, condition, hypothetical statement, opinion, contingency, analogy, desire, contrafactual statement, duty, or obligation, etc., rather than an actual action or state.
For instance, consider an example:
मैंने उसे सुझाव दिया कि वह वकील से बात करे – I suggested that he talk to a lawyer In the previous example, the verb बात करे is in the subjunctive mood and is in the subordinate clause कि वह वकील से बात करे. It is “unreal” because it is a suggestion, not an actual event.
उसने मुझे बताया कि उसने वकील से बात की In the previous example, the indicative verb बात की was used because the speaker is describing an actual event.
The term “subjunctive” derives from the Latin word 'subjunctivus', meaning “joined at the end”. This name alludes to the fact that subjunctive verbs are often used in subordinate clauses (which are typically joined at the end of the main clause). However, the subjunctive mood is also frequently used in relative clauses and conditional clauses, and there are several independent uses of the subjunctive mood, i.e., uses that aren’t necessarily inside a particular type of clause.
Hope you enjoying this episode. I will try to cover maximum possibilities of subjunctive mood in coming episodes. Thank you.
नमस्ते श्रोताओं आज के इस एपिसोड में हम परिवार की एक सामान्य बातचीत को रिकॉर्ड करके आपको सुना रहे हैं उम्मीद है आपको हमारी यह पॉडकास्ट पसंद आएगी अगर हमारी पॉडकास्ट पसंद आती है तो आप हमें ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं और इसी तरह के एपिसोड के लिए हमें लिख सकते हैं हमारा ईमेल एड्रेस है rajasikar11@gmail.com
Hello listeners, in today's episode, we are recording a normal family conversation and broadcasting for you, hope will you like our podcast, if you like our podcast, you can contact us on email for similar episodes You can write to us our email address is - rajasikar11@gmail.com
Hi ! In this podcast we will learn about some Hindi verbs. This podcast is for non Hindi speakers. Intimate Imperative and Formal Imperative
Hello listeners! In today's podcast we discussed on health. For this, we talked to a nursing officer who is working in Women's Hospital, Jaipur. He threw light on many things related to the hospital and the patients. Hope you enjoy this podcast of ours. You must let us know by commenting. Thank you
नमस्कार श्रोताओं! आज के पॉडकास्ट में हमने स्वास्थ्य पर चर्चा की। इसके लिए हमने जयपुर के महिला अस्पताल में कार्यरत एक नर्सिंग अधिकारी से बात की। उन्होंने अस्पताल और मरीजों से जुड़ी कई बातों पर प्रकाश डाला। आशा है आपको हमारा यह पॉडकास्ट अच्छा लगा होगा। आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं। आपको धन्यवाद
जयपुर शहर भारत संघ के सबसे बड़े राज्य राजस्थान की राजधानी है। जयपुर राजस्थान का सबसे बडा शहर है। जयपुर को पिंक सिटी अथवा गुलाबी नगरी भी कहते है, इसको सबसे पहले स्टैनली रीड ने पिंक सिटी बोला था । जयपुर की स्थापना आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह ने की थी। यूनेस्को द्वारा जुलाई 2019 में जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया गया है जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से सजा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली, आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। संघीय राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है।
आज के एपिसोड के हमारे तीन सवाल
1 जयपुर को सर्वप्रथम पिंक सिटी किसने कहा ?
2 पूरे जयपुर को गुलाबी रंग में कब रंगवाया गया ?
3 गोल्डन ट्रायंगल में भारत के कौन से तीन शहर हैं?
Jaipur is the capital of India’s Rajasthan state. It evokes the royal family that once ruled the region and that, in 1727, founded what is now called the Old City, or “Pink City” for its trademark building color. At the center of its stately street grid (notable in India) stands the opulent, colonnaded City Palace complex. With gardens, courtyards and museums, part of it is still a royal residence.
Our three questions for today's episode
1 Who first called Jaipur as the Pink City?
2 When was the whole of Jaipur painted pink?
3 Which three Indian cities are in the Golden Triangle?
नमस्कार श्रोताओं। आज के इस एपिसोड में हम दसवीं बोर्ड एग्जाम को लेकर के चर्चा करेंगे। हमारे साथ स्टूडियो में हमारी मेहमान मीनाक्षी चौधरी हैं। जिनसे हम जानेंगे कि हमें बोर्ड एग्जाम को लेकर के किन किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
1. हमारे कोर्स में कितना पाठ्यक्रम है ?
2. कौन-कौन सी किताबें हमें पढ़नी चाहिए ?
3. किन बातों का हमें ध्यान रखना चाहिए ?
4. मॉडल पेपर हमें कहां से मिलने वाले हैं ?
5. हमारी रूटीन लाइफ इस दौरान क्या होनी चाहिए ?
6. कितना समय अभी तक बचा है ?
7. प्री बोर्ड क्या होने वाले हैं ?
8. उनका मैन बोर्ड एग्जाम में कोई महत्व है या नहीं ?
इन सारी बातों पर हम चर्चा करेंगे। तो आइए सुनते हैं मीनाक्षी से। अगर आपको यह एपिसोड अच्छा लगे, तो हमें कमेंट करके जरूर बताइए ताकि हम इसी तरह के और एपिसोड आपके लिए लेकर आएं। धन्यवाद।
Hello listeners. In today's episode we will discuss about 10th board exam. We have Minakshi Choudhary as our guest in the studio. From which we will know what things we should keep in mind regarding the board exam.
1. How many courses are there in our course?
2. Which books should we read?
3. What should we keep in mind?
4. Where are we going to get the model papers?
5. What should be our routine life during this time?
6. How much time is left till now?
7. What are the Pre Boards going to be?
8. Whether they have any importance in the main board exam or not?
We will discuss all these things. So let's hear from Minakshi. If you like this episode, then do let us know by commenting so that we can bring more such episodes for you. Thank you.
नमस्ते मेरा नाम राजेश है। मैं भारत के जयपुर शहर में रहता हूं। मैंने मेरा पोस्ट ग्रेजुएशन 2001 में कंप्लीट करने के बाद एजुकेशन में बैचलर डिग्री प्राप्त की है। 11 साल इंश्योरेंस इंडस्ट्री में सर्व करने के बाद मैंने टीचिंग के प्रोफेशन में कदम रखा। 2016 से मैं ऑनलाइन हिंदी को एक सेकंड लैंग्वेज के रूप में स्टूडेंट्स को पढ़ा रहा हूं। मेरे स्टूडेंट्स दुनिया के हर कोने से है जिसमें मुख्यतः ब्रिटेन, अमेरिका ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, जापान, न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से हैं। मैं यहां पर आपके लिए एक निश्चित समय अंतराल पर हिंदी पॉडकास्ट एपिसोड टेलीकास्ट करूँगा। जहां पर हिंदी सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। अगर आप मेरे साथ वन to वन लेसन करना चाहते हैं तो मुझे मैसेज करिए या मेरे साथ ट्रायल बुक कर सकते हैं।
Hello my name is Rajesh. I live in Jaipur city of India. I have completed my post graduation in 2001 and got bachelor degree in education. After serving in the insurance industry for 11 years, I entered the teaching profession. Since 2016 I am teaching online Hindi as a second language to students. My students are from every corner of the world, mainly from countries like UK, America, Australia, Hong Kong, Japan, New Zealand and Australia etc. I will telecast Hindi podcast episodes here for you at a fixed time interval. Where you will get a lot to learn Hindi. If you want to do one to one lesson with me then message me or you can book trial with me
नमस्कार श्रोताओं आज की पॉडकास्ट हम उन बच्चों के लिए लेकर आए हैं जो 11th पास करके 12th में आ चुके हैं, और साइंस स्ट्रीम से है। तो उनके लिए आगे कैरियर के क्या क्या ऑप्शन है ? किस तरह से उनको तैयारी करनी चाहिए ताकि वह अपने लक्ष्य में सफल हो सके। तो आइए सुनते हैं आज की पॉडकास्ट में इन सारी बातों को। आप श्रोताओं से पॉडकास्ट का फीडबैक भी जानना चाहेंगे तो आप अपना फीडबैक हमें जरूर भेजें धन्यवाद।
Hello listeners, we have brought today's podcast for those children who have passed 11th and have come to 12th, and are from science stream. So what are the career options ahead for them? How should he prepare so that he can succeed in his goal? So let's listen to all these things in today's podcast. If you would also like to know the feedback of the podcast from the listeners, then you must send your feedback to us. Thank you

















