51 शक्तिपीठों की ये यात्रा आप सबके साथ बहुत ही सुंदर रही, इस पॉडकास्ट के अंतिम एपिसोड में हम चल रहे हैं माता के अंतिम धाम क्योंकि इस स्थान का न कोई आदि है न अंत है. वो अनंता यहां अनंत तक के अपने पूर्ण वास में है. उत्तर प्रदेश की राजधानी से 286 km और लगभग 6 घंटे की दूरी पर और प्रयागराज से 83 km लगभग 1:45 की दूरी में स्थित है मां विंध्यवासिनी शक्तिपीठ. विंध्यवासिनी धाम के द्वारपाल हनुमान बाबा और भैरवनाथ है उनकी आज्ञा के बिना इस क्षेत्र में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता. विंध्य क्षेत्र का वर्णन हमारे कई पौराणिक ग्रंथों में आया है. मार्कंडेय पुराण, मत्स्य पुराण, देवी भागवत, स्कंद पुराण, महाभारत, वामन पुराण, हरिवंश पुराण, राज तरंगिणी, बृहत कथा, कादंबरी और कई तंत्र ग्रंथ में इस स्थान की महिमा का गुणगान किया गया है. पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है. इस जागृत शक्तिपीठ की पूरी कहानी सुनिए. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
माता सती का यशोरेश्वरी शक्तिपीठ का अर्थ है जैसोर की देवी, पहले ये पूरा स्थान जैसोर के नाम से ही जाना जाता था, किंतु अब एक जिले तक सिमट कर रह गया है. यहां के स्थानीय हिंदू लोगों की ये कुल देवी है. यहां की शक्ति है मां यशोरेश्वरि और भैरव को चंद्र के नाम से पूजा जाता है. मान्यता है की इस स्थान पर माता की पैरो के तलवे का निपात हुआ था. यशोरेश्वरी शक्तिपीठ में मां की उपासना महाकाली रूप में की जाती है पूरी कहानी के लिए सुनिए हमारा ये एपिसोड. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
देव भूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 55 km और लगभग 1 घंटा 15 min की दूरी पर एक पहाड़ की चोटी पर 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है मां कुंजापुरी देवी शक्तिपीठ जहां माता के (वक्ष) कुंजभाग का निपात हुआ था. यहां की शक्ति है मां कुंजा और शिव यानी भैरव को भैरवनाथ कहते है. यह स्थल अपनी अनुपम सिद्ध शक्तियों के लिए तो जाना ही जाता है. गुलाबी लाल और सफेद रंग का यह मंदिर बहुत ही सुंदर, पहाड़ी घरों जैसा है, इसका शिखर सफेद और लाल रंग का है, जिस पर माता का ध्वज लहरा रहा है. गर्भगृह के प्रवेश पर लिखा है "ओम ह्रीम क्लीम चामुंडाय नमः," मंदिर के गर्भगृह में माता की कोई प्रतिमा नहीं है - वहां एक गड्ढा है - कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां मां का कुंज भाग गिरा था. यहीं पर मुख्य पूजा की जाती है. यहां पूरा एपिसोड सुनिए. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
सभी शक्तिपीठों में वैष्णों देवी शक्तिपीठ की सबसे अधिक महिमा है क्यूंकि यहाँ माँ महालक्ष्मी, माँ महाकाली, माँ महासरस्वती के तीनों रूप तीन पिण्डियों के रूप में साक्षात् विराजमान है. इनकी सम्मलित शक्ति को ही वैष्णों देवी कहा गया है. जम्मू से कुछ दूर कटरा की त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित है वैष्णों देवी शक्तिपीठ. यहां की शक्ति है माँ वैष्णवी और यहाँ के रक्षक और प्रहरी स्वयं शिव रूप हनुमान है जो चिरंजीवी है. कुछ लोगों का मानना है कि इस स्थान पर सती माता का कपाल/खोपड़ी निपात हुआ और कुछ कहते है कि यहाँ दाहिने हाथ का निपात हुआ कहते है कि गर्भजून की गुफा में आज भी मानव आकृति है इस एपिसोड में सुनिए और पाइये इस पवित्र पावन तीर्थ की मानसिक यात्रा का अनुभव. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
पश्चिम बंगाल में शांतिनिकेतन के पास ही बोलपुर में कोपाई नदी के किनारे स्थित है माता का कांची देवगर्भा कंकालिता शक्तिपीठ, माना जाता है कि भगवान शिव के तांडव के समय माता सती के शरीर का कंकाल यहां आकर गिरा, इतने शक्तिशाली प्रभाव के कारण यहां की धरती दब गई, पानी भर गया और एक कुंड का निर्माण हुआ. ये कुंड आज भी यहां स्थित है. माना जाता है कि कुंड के नीचे आज भी मां की अस्थियां स्थित है. कुंड के साथ ही माता का शक्तिपीठ मंदिर स्थापित है. यहां की शक्ति हैं मां देवगर्भा और भैरव को यहां रूरू के नाम से पूजा जाता है. स्थानीय लोग इस पवित्र मंदिर को 'कंकाल बाड़ी' रक्त टोला कंकालेश्वरी मंदिर और कंकाली ताला के नाम से भी पुकारते हैं. इस एपिसोड में सुनिए पुरानी कहानी. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
गरुड़ पुराण में इस सृष्टि की 7 मोक्षदायीनी पवित्र नगरियां यानी पुरियां हैं. अयोध्या, मथुरा, माया यानी हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, अवंतिका यानी उज्जैन, द्वारिकापुरी है. इस एपिसोड में चलेंगें प्रजापति दक्ष की राजधानी मायापुरी जो आज का हरिद्वार है. माया देवी शक्तिपीठ जहां देवी सती के हृदय का एक भाग आकर गिरा .कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहां मां की नाभी गिरी थी इसीलिए ये स्थान ब्रह्मांड का केंद्र है. यहां की शक्ति है माया देवी और भैरव को आनंद भैरव कहा जाता है. माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी है. पुरातन काल से ही यहाँ तीन सिद्धपीठ त्रिकोण के रूप में स्थित हैं. त्रिकोण के उत्तरी कोण में मनसा देवी, दक्षिण में शीतला देवी और पूर्वी कोण में चंडी देवी स्थित है. इस त्रिकोण के मध्य में क्षेत्र की अधिष्ठात्री भगवती माया देवी और दक्षिण पार्श्व में माया के अधिष्ठाता भगवान शिव श्री दक्षेश्वर महादेव के रूप में स्थित हैं. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
मेघालय की राजधानी शिलांग से लगभग 2 घंटे या 62 km ki दूरी पर जयंतियां हिल्स में स्थित है माता का अत्यंत सुंदर धार्मिक आभा से प्रकाशित जयतेश्वरी शक्तिपीठ जिसे जयंती शक्तिपीठ और नर्तियांग दुर्गा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. शक्तिपीठ मंदिर के पास तीन गुफाएं है जिनमें क्रमशः ब्रह्मा विष्णु और भैरव शिव के मंदिर है यहां महादेव के इस मंदिर में जयंतिया राज के पुराने आयुध और शस्त्र भी संरक्षित करके रखे गए हैं। मुख्य मंदिर मेघालय की पारंपरिक खासी शैली में बना हुआ है. नर्तियांग के इस मंदिर में नवरात्र के दौरान केले के पेड़ को गेंदा के फूल से सजाया जाता है और इसी की पूजा मां दुर्गा के रूप में की जाती है। नवरात्रि की षष्ठी तिथि से नवमी तिथि तक चलने वाले इस त्योहार के अंत में देवी स्वरूप केले के पेड़ को पास की मयतांग नदी में विसर्जित दिया जाता है। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
10 महाविद्याओं में चौथी महाविद्या है मां त्रिपुरसुंदरी, जिन्हें ललिता देवी भी कहा जाता है, इनका स्वरूप 16 वर्ष की कन्या का है जो 16 कलाओं से युक्त है, इसलिए इन्हें षोडशी भी कहते है माँ के अनेकों नाम है ललिता, माहेश्वरी, शक्ति, राजराजेश्वरी। महाविद्याओं में से सबसे मनोहर रूप में पूजी जाने वाली सिद्ध देवी यही हैं। भारत के छोटे से राज्य, त्रिपुरा, में उदयपुर शहर के राधाकिशोरपुर जनपद में स्थित है मां त्रपुरेश्वरी शक्तिपीठ। इस स्थान का नाम इनके नाम पर हुआ है। यहां के भैरव त्रिपुरेश हैं। माना जाता है कि यह मां अपने भक्तों को सुंदरता का वरदान देती है। आइए, इस एपिसोड को पूरा सुनते हैं, जानते हैं कब, किस मौसम में, और कैसे इस पवित्र स्थान को पहुंचा जा सकता है। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
उड़ीसा के पूरी मंदिर में जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की स्थापना से भी युगों पहले सतयुग से स्थित है माता सती का विमला शक्तिपीठ. जहां देवी मां के उत्कल क्षेत्र यानी नाभी का निपात हुआ था. यहां की शक्ति है महादेवी और भैरव को जगन्नाथ कहते हैं. क्या आप जानते है की भगवान विष्णु मां आदिशक्ति को अपनी बहन मानते हैं। उनका प्रेम इतना है की पुरी के श्रीजगन्नाथजी के मंदिर में अभी भी यह व्यवस्था है कि पुरुषोत्तम जगन्नाथ के प्रत्येक भोग, उनको तरह-तरह के 56 प्रकार के नैवेद्यों का भोग लगाया जाता है. इसी भोग को महाप्रसाद कहते हैं. यह भोग सबसे पहले उनकी बहन विमला देवी चखती है फिर वो भोग जगन्नाथ जी को खिलाया जाता है। ये शक्तिपीठ तांत्रिको में अत्यंत लोकप्रिय है. बहुत से सिद्ध मुनियों ने यहां सिद्धियां प्राप्त की हैं. विमला मंदिर में ब्राह्मी, माहेश्वरी, आंद्री, कौमारी, वैष्णवी, वराही और माँ चामुंडा आदि मां के अनेकों रूपों की प्रतिमाएं भी स्थापित है. यहां का प्रमुख उत्सव दुर्गा पूजा और काली पूजा है. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
कालीका शक्तिपीठ में देवी आदिशक्ति काली रूप में साक्षात विराजती है। मां काली दस महाविद्याओं में से एक है। कहते हैं की इस स्थान पर देवी सती के दाहिने पैरो की उंगलियां स्थापित हैं। यहां की शक्ति है मां कालिका और शिव यानी भैरव यहां नकुलीश के नाम से रहते है। तांत्रिक विद्या साधना में काली मां को विशेष प्रधानता प्राप्त है भाव बंधन मोचन में मां काली की उपासना सर्वोच्च कही जाती है। देवी काली की मूर्ति श्याम रंग की है ,उनके सोने से बने बड़े बड़े त्रिनेत्र है, मां की जिव्हा स्वर्ण से बनी बहुत लंबी है। आंखें और सिर सिंदुरिया रंग में हैं। यहां तक की मां काली के तिलक भी सिंदुरिया रंग में लगा हुआ है। उनके चार हाथ है उन्होंने एक हाथ में खड़क धारण किया है, दूसरे हाथ में दानव शुंभ का कटा हुआ शीर्ष है। तीसरे हाथ में अभय मुद्रा से वे भक्तो को वरदान दे रही है और चौथे हाथ में ज्ञान मुद्रा धारण किए हुए हैं. उनका एक चरण महादेव की छाती पर रखा है. महादेव ने ही मां पार्वती को काली रूप से बाहर निकाला था। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
हर साल नवरात्रि में गुह्येश्वरी शक्तिपीठ में मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भारत, भूटान सहित कई देशों से श्रद्धालु दर्शन करने आते है।यहां नवरात्र के साथ 10 दिवसीय दशैन उत्सव भी मनाया जाता है। इसमें माता की भव्य सवारी पालकी पर निकलती है. इस जगह पर भगवती सती के शरीर के दोनों घुटनों का निपात हुआ। इसलिए यहां की शक्ति गुह्यश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है यहीं पर चंद्रघंटा योगिनी तथा सिद्धेश्वर महादेव का प्रादुर्भाव हुआ यहां शिव शक्ति एकरूप में विराजमान है। गुह्येश्वरी देवी शक्तिपीठ नेपाल के काठमांडू में श्री पशुपतिनाथ मन्दिर से लगभग 1 किमी पूर्व में बागमती नदी के तट के पास स्थित है नेपाल के प्रसिद्ध श्री पशुपतिनाथ मन्दिर के दर्शनो से पहले माता गुह्येश्वरी के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है। इस दिव्य स्थान के बगल में एक तालाब है जिसे भैरव कुंड। यहां एक सुंदर प्रथा है की भक्त अपने हाथ को तालाब के अंदर डालते हैं और जो कुछ भी उन्हें जो कुछ भी मिलता है उसे पवित्र मानकर परमात्मा के आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करते हैं। पूरी कहानी सुनिए इस एपिसोड में। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
इस एपिसोड में होस्ट निष्ठा सारस्वत आपको लेकर चल रही हैं, उस पावन धरती पर जहां माता सीता माता धरती की गोद में समा गई थी। ये स्थान माता सती का ही शक्तिपीठ है जिसे माता सती के बाए कंधे और वस्त्र का निपात होने से देवी पाटन और देवी सीता के पताल लोक सामने से पातालेश्वरी कहा जाता है। जानिए माता सीता और मां सती के अद्भुद संबंध की अनसुनी पावन कहानी, देवी पाटन पातालेश्वरी शक्तिपीठ की महत्ता, इतिहास, मंदिर विवरण और कैसे पहुंचे कहां रहे विस्तार से। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
भारत से बाहर होकर भी अपनी भव्यता इतिहास महत्ता के लिए प्रसिद्ध है इंद्राक्षी मंदिर। देवी आदिशक्ति जो स्वयं प्रकृति है, जो सुंदरता की परिभाषा है, जिनसे सोलह श्रृंगार की कला समस्त स्त्रियों ने सीखी, उन्ही मां आदिशक्ति सती के नुपुर अर्थात घुंघरू श्रीलंका के जाफना में आकर गिरे और इसी स्थान पर इन्द्राक्षी या शंकरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई थी। यहां की शक्ति को मां इंद्राक्षी, शंकरी और नागापुष्णी अम्मा के नाम से जाना जाता है तथा शिव या भैरव को रक्ष वंश यानी राक्षसों के ईश्वर राक्षसेश्वर या नायंनार कहा जाता है। इस एपिसोड में सुनिए त्रेतायुग में घटित श्रीराम, सीता और रावण से जुड़ी रोचक कहानी। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
अंबिका देवी विराट शक्तिपीठ सतयुग में देवी सती के बाए पैरो की उंगलियों का निपात हुआ था। यहां की शक्ति है मां अंबिका और भगवान शिव यहां भैरव अमृत के रूप में रहते है. इस मंदिर की मान्यता है की, महाभारत काल में जुए के खेल में कौरवों ने पांडवों को छल से हरा दिया। इसके चलते उन्हें 12 साल के वनवास और एक साल का अज्ञातवास मिला। तब पांडवो ने विराटनगर में ही अपना अज्ञातवास बिताया था उसी दौरान राजा युधिष्ठिर ने विराटनगर पहुंचकर इस शक्तिपीठ पर अपनी कुलदेवी का मानस पूजन किया था। कहते हैं की अज्ञातवास के समय देवी ने ही उन्हें विराटनगर रहने का आश्रय दिया था. इसके बाद से इसे मानस माता के रूप में भी जाना जाने लगा. पूरी कहानी सुनिए इस एपिसोड में। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
इस एपिसोड में हम जानेंगे कि नारायण ने किस जगह पर भस्मासुर का वध किया था और श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण ने कैसे विद्या प्राप्त की और ताड़का का वध किया। हम आपको ले जाएंगे बिहार राज्य के रोहतास जिले के शहर सासाराम में, जहां ताराचण्डी शक्तिपीठ स्थित है। यह स्थान अपने प्राचीनतम और चमत्कारी इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। हम आपको मंदिर और शक्तिपीठ की महिमा के बारे में भी बताएंगे। यह सुनिश्चित करेगा कि आप अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए इस पवित्र स्थान का दर्शन करें। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
भगवान श्रीकृष्ण ने अपना शरीर प्रभास चंद्रभागा शक्तिपीठ में त्यागा था। यह एक बहुत ही पवित्र और महिमामयी जगह है जहां श्रद्धालुओं को अपने पिछले पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मंदिर में मां काली की विग्रह और शिवलिंग के दर्शन होते हैं और इस मंदिर की ओर जाने वाला रास्ता श्री राम मंदिर के प्रवेश द्वार के बाईं ओर से जाता है। यह मंदिर भगवान शिव और मां चंद्रभागा की उपासना करने वालों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। तो चलिए इस एपिसोड में हम चलते है गुजरात के प्रभासपाटन क्षेत्र में स्थित प्रभास चंद्रभागा शक्तिपीठ के में। इस शक्तिपीठ में देवी सती के उदर (पेट) का निपात हुआ था और यहां देवी चंद्रभागा और भगवान भैरव की पूजा होती है। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
गुजरात के राजधानी गांधीनगर से 147 किलोमीटर और 3 घंटे की दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है अंबाजी शक्तिपीठ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां माता के हृदय के एक भाग का निपात हुआ था। इस मंदिर में शक्ति को ‘कुमारी’ के रूप पूजा जाता है और शिव को ‘कालभैरव’ के रूप में पूजा जाता है। गुजरात में माता के तीन शक्तिपीठ स्थापित हैं - अम्बिका, कालिका तथा चंद्र भंगा प्रभास। अंबाजी मंदिर हर सुबह अंबे मां यंत्र के दर्शन के लिए खुलता है। गर्मियों एवं बारिश के दिनों में सुबह 7:00 से 9:00 तक मंदिर के दर्शन होते हैं जबकि सर्दियों में मंदिर में सुबह 7:00 बजे से 8:00 बजे तक ही दर्शन हो पाते हैं Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
कालमाधव शक्तिपीठ में माता सती के बाया नितंब का निपात हुआ और यहां से सोन नदी प्रकट हुई । यहां की शक्ति है मां काली और भैरव को अतिसांग के नाम से जाना जाता है। यहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है सोनदेश शक्तिपीठ जहां माता का दायां नितंब गिरा था। और यहां से ही नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है। यहां को शक्ति है मां नर्मदा और भैरव को भद्रसेन के नाम से पुकारा जाता है। नर्मदा नदी का उद्गम सोनदेश शक्तिपीठ के एक कुंड से होता है। नर्मदा नदी में बसने वाले सभी कंकर को शंकर कहा जाता है, और सोन नदी का उद्गम कालमाधव शोणाकक्षी शक्तिपीठ के कुंड में से होता है। इनका उद्गम स्थल देखने वाले लोग आश्चर्य से भर जाते है की एक कुंड से इतनी वृहद नदिया कैसे निकल सकती है? ये पानी आखिर आ कहा से रहा है? जानने के लिए सुनिए पुरे एपिसोड को। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
कामाक्षी अर्थात सबसे सुंदर आँखों वाली। जिनकी नेत्रों के दर्शन मात्र से ही भक्तों के भाग्य बदल जाते हैं। कहते है देवी कामाक्षी अम्मा की एक आंख में लक्ष्मी और दूसरी में सरस्वती मां का वास है। यहां की शक्ति है मां 'देवगर्भा' तथा भैरव यानी शिव को 'रुरु' कहते हैं।यहां पर देवी सती के अंगों के निपात को लेकर तीन विभिन्न मान्यताएं है। कुछ लोगों का मानना है कि यहां देवी देह का कंकाल गिरा था जबकि अन्य मतों के अनुसार यहां देवी देह पर पहना हुआ आभूषण 'उत्तियाना' जो की पेट पर धारण किया जाता है वह गिरा था लेकिन यहां के पुरोहितों का कहना है की ये नाभि पीठ है यहां मां की नाभी का निपात हुआ था। आइये इस एपिसोड में सुनिए कांची कामाक्षी शक्तिपीठ की महिमा। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
चित्रकूट की पावन धरती पर ही रामचरितमानस जैसे अमर कृति लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने यहां कई वर्ष व्यतीत किए। उन्होंने ही भगवान श्री राम की भक्ति के कारण चित्रकूट को रामगिरी रूप में वर्णित किया है। और इसी स्थान पर तुलसीदास ने हनुमान बाबा की सहायता से भगवान श्री राम के साक्षात दर्शन भी किए। पौराणिक ग्रंथों में विवरण आता है की राम के आगमन से पूर्व ही सतयुग के प्रारम्भ से चित्रकूट एक बहुत सुन्दर देवी पीठ था। इस जगह पर माता सती का दाया वक्ष का निपात हुआ था। यहां की शक्ति है मां 'शिवानी' और भैरव यानी शिव को 'चंद' या "चंदा"के रूप में पूजा जाता है। आख़िर क्या है प्रभु श्री राम और सीता से जुड़ा इस शक्तिपीठ से रहस्य सुनिए इस एपिसोड में। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices