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Film Ki Baat 2.0

Film Ki Baat 2.0
Author: Film Ki Baat 2.0
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© 2024 Film Ki Baat 2.0
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Let's discuss films, This is an unscripted impromptu discussion If you too are film enthusistic and wants to join our gang, click below link. https://chat.whatsapp.com/DruFc6GEJov0cAIzFdSJNI
115 Episodes
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कल्कि शुरू होती है महाभारत के युद्ध से जहां से श्रपित होकर निकले अविनाशी आश्वथामा अपनी मुक्ति का रास्ता ढूंढते पहुंच चुके है आज से 6000 साल आगे धरती पर आखिरी बचे शहर काशी में। उनका लक्ष्य है कल्कि अवतार और उनकी मां सुमति की रक्षा करना, लेकिन 6000 साल बाद के काशी में एक बाउन्टी हंटर भैरव भी है जो सुमिति और उसके अजन्मे बच्चे को यस्किन को सौंपना चाहता है ताकि कॉम्प्लेक्स में उसकी एंट्री संभव हो सके। कौन सफल होता है अपने लक्ष्य में यही है कल्कि के पहले भाग की कहानी। निश्चित ही प्रभास ने इस फिल्म से बढ़िया वापसी की है उनकी कॉमिक टाइमिंग शानदार है।
लेकिन कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म के असली हीरो हैं एंग्री ओल्ड मैन यानी आश्वथामा बने अमिताभ बच्चन। दीपिका ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। कमल हसन यस्कीन के गेटअप में गजब दिखे हैं। फिल्म की तारीफ बनती है कि यहां निर्देशक ने भारतीय मूल की कहानी को एक डिस्टोपियन वर्ल्ड में सेट करने की नवीनता दिखाई है। वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट्स ऐसे हैं जो कम से कम भारतीय सिनेमा में अब तक देखे नहीं गए है।
मगर सब कुछ सही होते हुए भी फिल्म देश के एक बड़े समूह को आकर्षित नहीं कर पाएगी ऐसा मुझे लगता है जिसके कुछ कारण बताना चाहूंगा। फिल्म के प्रमुख विलेन यस्किन के बस कुछ ही संवाद है जिसमें उनकी एक फिलोसिपी सामने आती है लेकिन उस किरदार का रहस्य लोगों तक खुल नहीं पाता। दूसरा फिल्म दो अनदेखे युगों की बात करती है लेकिन इन दोनों युगों को मिलाने वाली कोई कड़ी नहीं मिल पाती। यस्किन की दुनिया दिखाई जाती है मगर कुछ समझ नहीं आता कि वहां रहने वाले कौन लोग है, यस्किन कैसा शासक है आदि। शंभाला के लोगों का भी कुछ खास आइडिया नहीं मिलता। हालांकि शोभना और अन्ना बेन बढ़िया काम कर जाते हैं।
कल्कि चाहे जैसी भी हो इस बड़े स्तर पर इस तरह के प्रोजेक्ट को इतनी डिटेलिंग के साथ परदे पर उतारने के लिए इसकी टीम बधाई की पात्र है। उम्मीद है फिल्म के आने वाले सीक्वल इससे भी उन्नत स्तर के होंगें।
#kalki2898 #kalki2898adonjune27th #kalkireview #kalki #KalkiMovie #AmitabhBachchan #Prabhash #deepikapadukone #shobhna #AnnaBen #NagAshwin #sajeevsarathie
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Maharaj | Short Review | Sajeev Sarathie
आहत भावनाओं का एक दुखद समय चल रहा है हमारे यहां फिल्मों का। अब चाहे ये जान बूझ कर पब्लिसिटी के लिए आहत की जा रही हो हमारे बारह की तरह या फिर फिल्म के प्रति दुर्भावना से लेकिन नुकसान दोनों ही स्थितियों में अच्छी सामाजिक रूप से सार्थक फिल्मों का ही होता है। महाराज जो कि किसी दौर में फैली देवदासी जैसी कुप्रथा पर एक करारी चोट करती है, समाज सुधारक कर्सनदास मुलजी की कहानी कहती है, जिन्हें इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने के लिए बहुत कुछ झेलना पड़ा, लेकिन hai अंततः वह इस प्रथा के कानून उन्मूलन के बड़े कारक साबित हुए।
आमिर खान के सुपुत्र जुनैद खान ने डेब्यू किया है इस फिल्म से, और उन्होंने ये रोल अपने पिता की सिफारिश से नहीं बल्कि अपनी काबिलियत से हासिल किया है। कहना गलत नहीं होगा कि अपनी पहली फिल्म के लिहाज से उनका काम बहुत शानदार है। हालांकि जयदीप अहलावत जैसे दिग्गज के साथ डायरेक्ट कन्फ्रेंटेशन वाले दृश्यों में वो थोड़ा कमजोर पड़ते हैं जो कि स्वाभाविक भी है। जयदीप कमाल के एक्टर हैं कम से कम संवादों में भी उनका अभिनय निखर के आता है। बाकी भी सभी कलाकार बढ़िया काम करते दिखते हैं।
टेक्निकली भी फिल्म ब्रिलियंट है। कला संयोजन, और सिनेमेटोग्राफी अव्वल दर्जे की है तो अंकित संचित का पार्श्व संगीत फिल्म को ब्यूटुफुल्ली एलीवेट करता है। संवाद बहुत बढ़िया हैं। उड़ती बेफिक्र लटें घूंघट में सिमट जाती है, जरिए के मोह में पड़ जाओगे तो मंजिल तक कैसे पहुंच पाओगे या फिर घाव का दिखना जरूरी नहीं निशान जरूरी है जैसे संवाद दिल तक उतर जाते है। महाराज मेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है। थोड़ी लंबी अवश्य है पर ये एक जरूरी फिल्म है जो हमारे बारह की तरह किसी भी धर्म के प्रति अंध विश्वास को डिस्करेज करती है और दर्शकों को तार्किक होने के लिए प्रेरित करती है।
#maharaj #JunaidKhan #Netflix #JaideepAhlawat #ShaliniPandey
https://www.instagram.com/reel/C86wTlJvca5/?igsh=MW9tOGlrMmVpenlkeQ==
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इश्क विश्क रिबाउक्ड, यहां रिबाउंड शब्द इंटरेस्टिंग है। बहुत कम ही इस रिबाउंड इश्क पर कभी फिल्म बनी हो। मुझे उम्मीद थी कि ये मॉडर्न लव ट्राइएंगल कुछ दिलचस्प होगी। पर मुझे लीड रोल्स में दिखे एक्टर्स की परफॉर्मेंस को छोड़ कुछ भी अच्छा नहीं लगा फिल्म में।
एक तो फिल्म की राइटिंग, विशेषकर संवाद असरदार नहीं हैं कई सीन्स जो अच्छे यादगार हो सकते थे साधारण से बनकर रह गए हैं। दूसरा रोमांटिक फिल्म होने के बावजूद एक्टर्स के बीच किसी भी तरह की केमिस्ट्री पूरी तरह से नदारद दिखती है। आप दोनों ही लव स्टोरीज के साथ कभी कनेक्ट ही नहीं हो पाते। गाने ठीक ठाक हैं खासकर पुरानी इश्क विश्क का चोट दिल में लगी, जो मेरे खयाल से अलीशा की आवाज में रिटेन किया गया है।
रोहित सराफ जैसे एक तरह के रोल में टाइपकास्ट से होने लगे हैं। पश्मीना रोशन से कैपबल नजर आती है अगर उन्हें कोई अच्छा निर्देशक मिले तो। जिब्रान खान इंप्रेसिव हैं और नैला ग्रेवल भी, लेकिन इनके रोल्स सीमित हैं फिल्म में। फिल्म अपने आखिरी मोमेंट्स से पिक करती है जब राघव महसूस करता है कि उसके पेरेंट्स हमेशा गेम्स क्यों खेलते रहते है। और साहिर के पिता का जब एक अलग साइड हमें दिखाया जाता है पर तब तक आप फिल्म से पक चुके होते हैं। छोटी लेंथ के बावजूद इश्क विश्क अपनी फ्रेंचाइजी की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती।
#IshqVishkRebound #rohitsaraf #PashminaRoshan #JibraanKhan #NailaGrewal #sajeevsarathie
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Hamare Barah | Short Review | Sajeev Sarathie
हम दो हमारे बारह एक महत्वपूर्ण विषय पर बनी एक संजीदा सी फिल्म है, पर फिल्म के मेकर्स ने सोचा कि इसे थोड़ा विवादित बना कर पेश किया जाए। एक बहुत ही खराब और विवादों से भरा ट्रेलर बनाकर फिल्म को इंट्रोड्यूस किया गया और जिस समुदाय के लिए इसे बनाया गया था, उसे ही इस फिल्म से दूर कर दिया गया।
फिल्म मुस्लिम समुदाय में कुछ विषयों को लेकर, देखी जाती, एक तरह के धार्मिक कट्टरपन को आधार बनाती है जिसके कारण वो बदलते सामाजिक परिवेश में भी खुद को बदलने से इंकार कर देते हैं। कहानी एक मुस्लिम लड़की की है जो अपने अब्बू के खिलाफ केस कर देती है। अब्बू जो कि पेशे से कव्वाल हैं बच्चों को अल्लाह की मेहरबानी समझ 60 साल की उम्र में भी अपनी जवान बीबी से बच्चे की उम्मीद कर रहे है ये जानते हुए भी कि इस डिलीवरी से उनकी पत्नी की जान तक जा सकती है। केस में पक्ष, प्रतिपक्ष दोनों के वकील भी मुस्लिम हैं, तो लड़ाई मुस्लिम धर्म ग्रंथ की बातों को नए जमाने के संदर्भ में न अपनाकर रूढ़िवादिता में जकड़े रहने के खिलाफ है जो ढेरों मुस्लिम औरतों का दर्द बयां करती है। मगर सस्ती लोकप्रियता के लालच ने इस फिल्म को डूबो दिया।
फिल्म अच्छी लिखी गई है। अन्नू कपूर, मनोज जोशी, राहुल बग्गा, अदिति बटपहरी और इशलीन प्रसाद का काम तो अच्छा है ही, अल्फिया की वकील बनी अश्विनी कलसेकर और बड़े बेटे बने परितोष त्रिपाठी सबसे ज्यादा इंप्रेसिव लगे हैं। अश्वनी तो खैर एक परिपक्व अभिनेत्री हैं ही, पर परितोष पिता और पत्नी, कट्टरपन और उदारवादिता के बीच फंसे निसहाय से पुरुष की भूमिका में बेहद प्रभावी लगे हैं। अन्नू कपूर अभिनेता के रूप में ही नहीं बतौर गायक संगीतकार भी जलवे बिखेर रहे हैं। हमारे बारह बुरी फिल्म नहीं है। यकीनन देखी जा सकती है।
#hamarebaarah #patriarch #KamalChandra #AnnuKapoor #AshwiniKalsekar #ManojJoshi #rahulbagga #ParitoshTripathi #aditibhatpahri #sajeevsarathie
https://www.instagram.com/reel/C8t51qOvEPv/?igsh=MXJuZjU4ZWQwMXE5cQ==
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जे एन यू यानी जहांगीर नेशनल यूनिवर्सिटी अपने नाम से ही साबित कर देती है कि किस उद्देश्य के साथ इसे बनाया गया है। अब क्रिंज होगी ये तो पता था, पर सिर्फ देखने के लिए देखी कि आखिर किस हद तक क्रींज हो सकती है, मैने किसी तरह इसे झेल ही ली। यूनिवर्सिटी में एक बड़ा स्टेच्यू लगा है जिन्ना और नेहरू जैसे दिखने वाले दो लोगों का जो विश्व विद्यालय की गतिविधियों पर नजर रखते है। यूनिवर्सिटी में सब लाल सलाम बोलते है मगर हीरो सिद्धार्थ बोडके आकार जय श्री राम बोलना शुरू करता है। उर्वशी रौतेला बस एटिट्यूड लेकर चलती नजर आती है। एक लिबरल लड़की है जो किसी भी लड़के के साथ हुक अप कर लेती है। कालेज की प्रबंधन कमेटी से लेकर स्टूडेंट्स तक सब या तो वाम पंथी हैं या मुसलमान है जो सिर्फ और सिर्फ देश विरोधी काम करते हैं। एक हिंदू नेता भी है जो कन्हैया कुमार को इंगित करता है और उन्हें बहुत ही बुरे फ्रेम में प्रोजेक्ट करता है।
और इन सब के बीच मोदी जी का उदय हो रहा है नेशनल पॉलिटिक्स में जिसके बाद हवा बदलने लगती है। एक जगह कॉलेज की एक वामपंथी प्रोफेसर कहती है कि अब सेंटर में हमारी सरकार नहीं रही। एक न्यूज एंकर कविश कुमार भी हैं जो इस यूनिवर्सिटी के फेवर में रिपोर्टिंग करता है। पियूष मिश्रा गेस्ट रोल में आते हैं जो कभी वामपंथी यानी फिल्म के हिसाब से देश द्रोही थे मगर अब घर वापसी कर चुके हैं और मुंह खोलते ही गलियां बकते हैं। रवि किशन और विजय राज़ कथित देश द्रोहियों को हवालात में पीटने का चरम सुख उठते हुए दिखते हैं।
मतलब कि कुछ भी, जी हां कुछ भी अंट शंट दिखाने से निर्देशक ने परहेज नहीं किया है। हो सकता है एक खास तरह की सोच रखने वाले जाकर इस कचरे को देखें पर मैं तो यही कहूंगा कि इस कूड़ेदान जैसी फिल्म से दूर ही रहें।
#jnumovie #JNU #RaviKishan #VijayRaaz #PiyushMishra #cringe #sajeevsarathie
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Kota Factory | Short Review | Sajeev Sarathie
कोटा फैक्ट्री की कलर स्कीम ब्लैक एंड वाइट सही, यहाँ के विद्यार्थियों की ज़िन्दगी इसी कलर पैलेट जैसी बेरंग, नीरस और तनाव से भरी सही पर कोटा फैक्ट्री हर बार आपको बहुत कुछ सीखा जाती है, हाँ थोड़ा उदास तो कर जाती है मगर एक उम्मीद फिर भी बची रह जाती है, तो तीन बातें जो इस सीजन से मेरी लर्निंग रही वो बताता हूँ आपको.
पहली सीख खुद जीतू भैया देते हैं कि जब वो कहते हैं कि राह अगर खुद से चुनी हो तो मुश्किलों से न तो घबराना चाहिए न दूसरों की कामियाबी से इंसेक्यूर होना चाहिए. खासकर मीकूभैया बने सात्विक भाटिया से, जो बहुत क्यूट दिखे हैं। दूसरी सीख कि अगर कभी जिंदगी उलझ जाए और कोई ऐसा साथी नज़र में न हो जिससे परेशानी बांटी जा सके तो प्रोफेशनल मनोवैज्ञानिक को मदद ले लेनी चहिए ठीक वैसे ही जैसे जीतू भैया लेते हैं, और ईश्वर सोहैला कपूर जैसी ग्रेसफुल साइकोलॉजिस्ट सबको दे। तीसरी सीख कि आत्मसम्मान का पत्थर दिल से हटाकर पास खड़े सच्चे दोस्तों की मदद लेने में कभी हिचकना नहीं चाहिए क्योंकि एक बार आपने मदद ली तो दूसरों को मदद देने से भी आप भविष्य में पीछे नहीं हटेगें।
इस सीजन में जीतू भैया सारा बोझ अकेले नहीं उठा रहे हैं राजेश कुमार और तिल्लोथमा शोम ने सीरीज को बढ़िया डेप्थ दी है। बाकी तो खैर रेगुलर कास्ट हमेशा की तरह ब्रिलियंट है ही। तो मेरे भाई अब और क्या सुनना चाहते हो? कोटा फैक्ट्री सिर्फ एक सीरीज थोड़े है ये तो एक इमोशन है, जाओ जाओ देख डालो फटाफट।
#kotafactoryseason3 #kotafactory #kotafactoryseries #KotaFactoryS3OnNetflix #KotaFactoryS3 #tvf #Netflix #iitjee #iitjeepreparation #kota #mayurmore #jitendrakumar #TillotamaShome #sajeevsarathie
https://www.instagram.com/reel/C8os2v9vmK-/?igsh=Y3YxZTloaWMwazV2
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जब छोटा था तो घर में टी वी का होना एक बड़ी बात हुआ करता थी, मोहल्ले में जिसके भी घर नया टी वी आता था पूरा मोहल्ला इस हफ्ते संडे की फिल्म उस घर पे देखता था, जब मेरे घर वेस्टर्न कंपनी का पहला ब्लैक एन्ड वाइट टीवी आया तो उस हफ्ते मेरे घर पर पैक्ड हाउस में देखी गयी थी पंडित और पठान. जब मैंने बजरंग और अली सुना तो जेहन में पंडित और पठान की यादें घूम गयी. उस दौर में ऐसी साम्प्रदायिक एकता को बढ़ावा देने वाली बहुत सी फ़िल्में बना करती थी, और लोग बड़े चाव से देखा भी करते थे, आज मैं बहुत लोगों को सुनता हूँ कहते हुए कि हिन्दू मुस्लिम एकता जैसी कोई चीज़ कभी एक्सिस्ट ही नहीं करती थी, पर मैं इसे नहीं मान सकता क्योंकि ऐसी दोस्तियों की ढेरों कहानियां मेरे व्यक्तिगत अनुभव में सलंग्न है.
तो क्या बजरंग और अली एक कल्ट फिल्म है, नहीं क्योंकि ये फिल्म बहुत ही ड्रामेटिक है अपने ट्रीटमेंट में. आपको लगेगा जैसे कोई थिएटर देख रहे हैं आप. कहानी इंदौर में सेट है और इंदौर शहर भी यहाँ एक किरदार की तरह आता है. लीड रोल्स में दिखे जयवीर और सचिन पारीख दोनों का ही काम बहुत बढ़िया है. विशेषकर जयवीर अपने संवाद अदायगी में ड्रामेटिक होते हुए भी कंवेंसिंग लगते हैं. दोस्ती के आलावा एक लव स्टोरी को भी स्थान दिया गया है पर ये वाला ट्रेक बेअसरदार है. जयवीर अभिनेता अच्छे हैं पर उनके निर्देशन का अंदाज़ पुराने ढर्रे का है. लेकिन इस फिल्म की चर्चा इसलिए भी बेहद ज़रूरी है क्योंकि आजकल जहाँ हर कोई सिर्फ नफ़रत को बेच कर जेबें भर रहा है इस फिल्म के मेकर्स ने सांप्रदायिक सद्भावना और दोस्ती के कोमल भावों को एक बढ़िया और मार्मिक कहानी में पिरो कर पेश करने की हिम्मत दिखाई है.
बजरंग और अली आप जरूर देखें खासकर अगर आपने एक राम रहीम दोस्ती जैसी घटनाएं अपने जीवन में देखी हों तो आप इससे रेलेट करेगें और अपने बच्चों को भी दिखाएं ताकि वो भी खुले दिमाग से अपने दोस्त चुन सकें, ये फिल्म टेक्निकली बहुत अच्छी न होने के बावजूद सोलफुल है, और दिल से बनायीं गयी है अच्छी नीयत के साथ.
#sajeevsarathie #BajrangAurAli #jaiveer #sachinparikh #ujjain #bollywood #communaltension #CommunalHarmony #HinduMuslimFriendship
https://www.instagram.com/reel/C8jvczLP1Rf/?igsh=MW9wNGdoMGFzbHM2YQ==
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क्या आप जानते हैं कि प्रतीक पचौरी को जब मुंबई में मन माफिक काम नहीं मिला तो वो जबलपुर वापस आ गए और वहां के थियेटर साथियों के साथ मिलकर एक फिल्म बना डाली ? क्या था इस फिल्म का नाम ?
क्या आप जानते हैं किन परिस्थितियों में बीच जंगल शूट हुई थी विद्या बालन की शेरनी ?
क्या आप जानते हैं कि प्रतीक ने पंचायत के लिए पहले किस किरदार के लिए ऑडिशन दिया था ?
जानिए ये सब आज की इस एक्सक्लूसिव मुलाकात में पंचायत के बबलू यानी प्रतीक पचौरी के साथ।
#sajeevsarathie #podcast #panchayatwebseries #panchayatseason3 #bollywood #jabalpur #prateekpachauri #actor #actorslife #acting #panchayat #primevideo
https://www.instagram.com/reel/C8efCJFPSX_/?igsh=MWZpeHM1ejQ3eXlnOQ==
https://youtu.be/NE6ZHEm-kEk?si=wfEKzq1aTSEQ7_k7
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Barah x Barah | Short Review | Sajeev Sarathie
गंगा की अविरल बहती धारा और वो घाट जहां से कहते हैं दिवंगतों को मोक्ष का द्वार मिलता है। जाहिर है इस घाट के आस पास रहने वाले परिवारों का रोजगार इसी घाट के क्रिया कलापों से चलता है। सूरज इसी मणिकर्णिका घाट का फोटोग्राफर है जो दिवंगतों की अंतिम तस्वीर खींचता है उनके परिजनों के लिए। मगर मोबाइल के आने के बाद उसका ये काम आउटडेटेड हो चला है पर वो इस काम के प्रति अपना मोह नहीं छोड़ पा रहा। वहीं विकास की गति इस आदि शहर तक भी पहुंच चुकी है, उसका बनारस भी अब बदल रहा है और पुराने शहर के मोह में फंसे लोग इस परिवर्तन से भी असहज हैं।
बारह बई बारह में गौरव मदान बनारस के मणिकर्णिका घाट के आखिरी डेथ फोटोग्राफर की कहानी को बेहद तसल्ली से आपके सामने रखते हैं। फिल्म शुरू होने के कुछ ही मिनटों बाद आप खुद को सूरज का परिवार का हिस्सा सा समझने लगते हैं। फिल्म सांकेतिक रूप से भी बहुत कुछ बयां करते हुए चलती है। सूरज के पिता एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं पर अंतिम सांस गंगा किनारे ही लेना चाहते हैं। कभी पेशे से नाई रहे पिता दाढ़ी बनाकर अंतिम दिन से पहले घाट पर पहरों बिताते है। होली पर सबको साथ रहने को कहते हैं। वो शॉट जिसमें उनका पार्थिव शरीर कंधे पर लेकर सूरज निकलता है दुनिया रंग खेल रही होती है। ये दृश्य प्रतीक है कि जब दुनिया विकास का जश्न मना रही होती है तो विकास के पैरों तले दबे चंद लोग का मातम किसी को सुनाई नहीं देता।
ज्ञानेद्र त्रिपाठी और भूमिका दुबे का मैक्सिमम स्क्रीन स्पेस है ये दोनों किरदार आपके जेहन में छप से जाते हैं। गीतिका ओहलियान इन दिनों खूब नजर आ रही हैं। 12th फेल में दिखे हरीश खन्ना ने भी अपने अभिनय का दम दिखाया है। अगर कुछ अलग, रियलिस्टिक, और मीनिंगफुल देखना चाहते हैं तो बारह बई बारह को अवश्य देखें।
#barahbybarah #gyanendratripathi #GeetikaVidyaOhlyan #gauravmadan #manikarnikaghat #banaras #deathphotographer #harishkhanna #bhumikadube
https://www.instagram.com/reel/C8b5vGIPZLq/?igsh=MXJyZXlpdTB1eWhhOQ==
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चंदू चैंपियन कहानी है मुरलीकांत पेटकर की और इस फिल्म का ट्रेलर आने से पहले मैंने इनका नाम भी नहीं सुना था। Thank you कबीर खान इस हीरो से परिचय करने के लिए। जैसे एक फौजी का लक्ष्य देश के मार मिटना रहता है वैसे ही एक खिलाड़ी को सिर्फ देश के लिए मेडल लाने पर फोकस करना चाहिए, खेल कोई भी हो। मुरली कांत जी का बस यही एक लक्ष्य था। तभी तो पहलवानी से बॉक्सिंग और फिर स्विमिंग उन्हें किसी भी खेल से परहेज नहीं रहा। फिल्म में दिखाए गए खेलों से अलग भी उन्होंने कई खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया।
तो सबसे पहले तो ये बायोपिक है ही इतनी दमदार कि इसमें हर कदम इंस्पिरेशन कूट कूट के मिलती है। कबीर खान का एक खास स्टाइल है जिसमें वो फिल्म में सभी जरूरी कमर्शियल एलिमेंट्स को रखते हुए भी फिल्म का स्टैंडर्ड बरकरार रखते हैं और ये फिल्म भी लंबी होने के बावजूद आपको हंसाएगी, रुलाएगी और कुछ जरूरी सीख भी दे जायेगी। कार्तिक आर्यन ने इस फिल्म के साथ अपना बार ऊंचा कर लिया है। ये पहली बार है जब उनके हिस्से ऐसा चैलेंजिंग रोल आया है और उनकी मेहनत साफ नजर आती है। यकीनन अब बॉलीवुड उन्हें और बेहतर रोल्स में आजमाएगा ऐसा उम्मीद कर सकते हैं।
कार्तिक का अलावा भी टाइगर अली बने विजय राज़ दिल जीत लेते हैं और राजपाल यादव बढ़िया कॉमिक रिलीफ देते है। हवाई जहाज वाला दृश्य खूब हंसाता है तो सिंगल शॉट में शूट हुआ वार सीन सिहरन पैदा करता है। इंटरवल का बाद फिल्म और बेहतर होती जाती है। चंदू चैंपियन आप खुद देखें और अपने बच्चों को भी दिखाएं, कौन जाने कौन सा बच्चा मुरली कांत जी की तरह देश के लिए खेलने को प्रेरित हो जाए इस फिल्म को देखकर।
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https://www.instagram.com/reel/C8W1fCwPgmE/?igsh=MTF6MWoweWVmZzU2MA==
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LSD 2 | Short Review | Sajeev Sarathie
करीब 14 साल पहले दिबाकर बनर्जी ने बहुत ही कम बजट में एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म बनाई थी लव सेक्स और धोखा। ये स्पाई कैमरा और उसके परिणामों पर एक व्यंगात्मक टिप्पणी थी। ये फिल्म एक कल्ट साबित हुई थी। सालों बाद दिबाकर थोडे अच्छे बजट पर इसका नया संस्करण लेकर आए हैं, एक बार फिर तीन कहानियां है मगर इस बार का थीम है इंटरनेट की दुनिया और आभासी लाइक शेयर के मकड़जाल में फंसे आज के युवा। तीनों कहानियों में LGBTQ एंगल एक और कॉमन फैक्टर है, हो सकता है दिबाकर इस थ्रेड के माध्यम से इंटरनेट का पॉजिटिव साइड दिखाना चाह रहे हों कि ये आभासी दुनिया हाशिए पर खड़े समाज के इस अल्पसंख्यक समुदाय को एक अभिव्यक्ति का माध्यम तो देता ही है।
तो इस बार लव बन गया है लाइक, सेक्स अब शेयर है और धोखा की जगह ले ली है डाउनलोड ने। दिबाकर ने जिस महीन अंदाज में इन तीनों कहानियों को जोड़ा है वो उनका और उनकी लेखकीय टीम का ब्रिलिएंस दिखाता है। हर कहानी या कहूं हर सीन, हर संवाद, हर फ्रेम इतनी डिटेलिंग के साथ प्रेजेंट किया गया है कि आप समझ नहीं पाएंगे कि हंसे या उस व्यंग की चोट को महसूस करें। टेक्निकली भी फिर वो कैमरा वर्क हो या सुपर ब्रिलियंट एडिटिंग आप को लगेगा ही नहीं कि आप एक फिल्म देख रहें हैं। सब कुछ इतना रिलेटेबल है कि आप फील करेंगे कि ये सब तो रोज ही आपके आस पास घटित हो रहा है।
परफॉर्मेंस की बात करूं तो फिर वो परितोष हो, बोनिता राजपुरोहित हो,या फिर अभिनय सिंह तीनों ही मैन लीड ने एक्सीलेंट काम किया है। सपोर्टिंग रोल्स में स्वरूपा घोष, स्वातिका मुखर्जी, पियूष कुमार आदि सभी, यहां तक कि गेस्ट रोल्स में दिखे मौनी रॉय, अनु मलिक, सोफी चौधरी, तुषार कपूर और उर्फी जावेद भी कमाल करते दिखे हैं। कमियों की बात करूं तो डाउनलोड वाला चेप्टर फ्यूचरिस्टिक लगा मतलब बहुत रिलेटेबल नहीं लगा, खासकर जो ए आई वाला सीक्वेंस है। और भी कुछ सीन्स हैं यहां वहां जो अनवांटेड से हैं, बाकी फिल्म का थॉट बहुत ही कमाल का है। हां लेकिन ये फिल्म सबके लिए बिल्कुल नहीं है, और फैमिली के साथ देखने लायक़ तो हरगिज़ नहीं। LSD2 अब नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है।
#LSD2 #lsdtrip #lsd2incinemas19april #LSDrun #DibakarBanerjee #UrfiJaved #sajeevsarathie #AnuMalik #ParitoshTripathi #Swastika_Mukherjee #tusharkapoor #balajitelefilms
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scam 1992, Cubicles, और scoop जैसी ढेरों वेबसरीज में दिखे मंझे हुए रंगमंचीय अभिनेता हैं जैमिनी पाठक। मुझे लगता है उनके साथ हुई इस सार्थक बातचीत को युवा अभिनेताओं को अवश्य ही सुननी चाहिए। ध्यान से सुनेंगे तो बहुत कुछ आप सीख पाएंगे आप जैमिनी के अनुभवों से।
#sajeevsarathie #jaiminipathak #interview #actor #scoop #scam1992 #tvf #hansalmehta #mumbaidiaries #cubicles
Full interview is live now on our YouTube channel
https://youtu.be/de-NFCloU6E?si=-Tt3GgI-0KUF-58i
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Gullak S4 | Short Review | Sajeev Sarathie
मिडल क्लास कभी भी अति संतुष्ट नहीं होता, बस अपनी छोटी छोटी खुशियों का जश्न मनाता है और गमों को भी दिल से सहेज कर रखता है। इस कोशिश में कि मिडल क्लास से निकल कर अपर क्लास में पहुंच जाए, पीढ़ियां गंवा देता है पर अपने मिडल क्लास मूल्यों और संस्कारों को भी कभी छोड़ नहीं पाता। जब भी ये मिडिल क्लास खुद को परदे पर देखता है खुद को उन किरदारों में पाता है। हम लोग, बुनियाद से लेकर गुल्लक तक हम इन घर परिवारों में अपनी ही छवि देखते हैं।
अब मिश्रा परिवार को ही लिजिए जहां पिता संतोष मिश्रा और मां शांति बखूबी समझते हैं कि उनका छोटा बेटा क्यों गुसलखाने में समय ज्यादा लेता है मगर उसके एडल्टहुड को मैनेज करने का उनका अपना ही तरीका है। हर छोटी बड़ी चीज संभाल के रख दी जाती है कि कभी काम आएगा, और जब इस कबाड़े को निकालने के बात आती है तो पूरी संसदीय बैठक बैठती है और कोई चुपके से कुछ ऐसा निकाल कर छुपा लेता है जिससे उसकी कोई खट्टी मीठी याद जुड़ी होती है। वक्त बेवक्त घर आ धमकने वाली पड़ोसन बुरी तो लगती है पर कभी जब घर का माहौल गर्म हो जाए तो आकर गर्म चाय में अपनेपन की ठंडक भी छिड़क देती है। पिता गुस्से में आकर कभी बेटे पर हाथ भी उठा देता है मगर जब तक बेटा घर न पहुंचे खाना भी हलक से नहीं उतार पात। गुल्लक का चौथा सीज़न भी वही सब किस्से कहानियां लेकर आया है जो इसके पुराने season में हम सबने खूब पसंद की थी।
रेगुलर कास्ट जमील भाई, गीतांजली, आनंद, वैभव और सुनीता राजभर हर बार की तरह शानदार हैं, इनके अलावा जय ठक्कर, मनुज शर्मा, हेली शाह, और साद बिलग्रामी और भी खूब जमे हैं। गुल्लक मात्र एक सीरीज नहीं है एक ब्रांड है और इसके सभी पात्र हमारे अपने। एक दो बार नहीं बार बार देखने लायक।
#GullakOnSonyLIV #gullakseason4 #Gullak #GullakS4 #JameelKhan #SonyLIV #GeetanjaliKulkarni #SunitaRajwar #sajeevsarathie
https://www.instagram.com/reel/C8J2fXmPs_j/?igsh=MWl5c2lqZW92eTEwcQ==
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सबसे पहले तो तारीफ करना चाहूंगा मडडोक फिल्म्स की जो देश में हॉरर कॉमेडी के जोनर पर काम करते हुए एनिमेटेड किरदारों और स्पेशल इफेक्ट्स के साथ बेहतरीन प्रयोग कर रहे हैं और अच्छी बात ये है कि उनके इन प्रयासों को दर्शकों का भरपूर प्यार भी मिल रहा है। इस कड़ी में एक नया नाम जुड़ा है मुंजिया का। मुंजिया का ये किरदार पौराणिक और लोक कथाओं से निकला है। देखने में ये बहुत क्यूट लगता है मगर दिल से एकदम रोमांटिक या कहूं तो बड़ा ठरकी है और अपनी पे आ जाए तो बेहद खतरनाक भी।
यहां प्रोडक्शन हाउस एक कदम आगे बढ़कर एकदम नए चेहरों के साथ सामने आया है। अगर प्रोडक्ट पर पूरा भरोसा हो फिर स्टार का एहसान क्यों ही लेना। मुंजिया को डिजाइन करने से लेकर उस किरदार को जिस तरह इंट्रोड्यूस किया गया है और फिर जिस तरह का खौफ रचा गया है, दर्शकों को बांध कर रखता है। फिल्म की लंबाई भी कम है तो कभी भी फिल्म का नरेटीव बोझिल नहीं लगता।
निर्देशक आदित्य सर्पोतदार ने कहानी के साथ साथ अपने कलाकारों से भी अच्छा काम निकलवाया है। शरवरी और अभय वर्मा बढ़िया लगे हैं। मोना सिंह अपने चिर परिचित रूप में है मगर एल्विस करीम प्रभाकर के अनूठे किरदार में सत्यराज महफिल लूट लेते हैं। हालांकि फिल्म कॉमेडी के स्तर पर कमज़ोर है, यहीं आप अभिषेक बनर्जी जैसे एक्टरों को मिस करते हैं पर हॉरर स्तर पर यकीनन कहीं बेहतर है। अकसर मड़डोक की फिल्मों में सचिन जिगर के हिट गाने होते ही हैं पर यहां बस एक ही गाना है जो ध्यान खींचता है। ओवरऑल मुंजया एक अच्छी वन टाइम वॉच है जो बच्चों बड़ों सबको पसंद आयेगी। फिल्म का पोस्ट क्रेडिट सीन देखना मत भूलिएगा। मड़ोक सुपरनैचुरल यूनिवर्स में धमाका होने वाला है।
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क्या आप जानते हैं कि अमित मौर्य ने पहले नए सचिव के रोल के लिए ऑडिशन दिया था पर चुनाव नहीं हुआ, निराश अमित को बम बहादुर का रोल मिला जिसका आरंभ में मात्र दो सीन का रोल था, लेकिन किस्मत ने पलटी मारी और बम बहादुर एक महत्वपूर्ण भूमिका में तब्दील हो गए और UP के एक छोटे से गांव से निकलकर अमित देश भर के चहेते बन गये।
क्या आप जानते हैं कि जगमोहन की पत्नी का रोल निभाने वाली कल्याणी खत्री झारखंड से है, इससे पहले वो दूरदर्शन की रविवारीय रंगोली में भी दिखी थी, उन्होंने बतौर एअर होस्टेस भी नौकरी की है।
क्या आप जानते हैं कि आरा बिहार के विशाल यादव को उनके पिता ने सलाह दी थी कि अगर ऊंचा जाना चाहते हो तो एकदम जमीन से शुरुआत करो। जमीन से जुड़ने के लिए उन्होंने क्षेत्रीय संस्कृति को समझने में खुद को झोंक दिया। उनका बहुत समय बिहार के जनप्रिय कवि भिखारी ठाकुर के घर आंगन में बीता है। बचपन से मनोज बाजपेई के दीवाने विशाल उनके साथ काम करने के इच्छुक हैं।
जानिए और भी बहुत कुछ पंचायत सीरीज के इन दमदार एक्टरों से, और सेट पर घटे कुछ खट्टे मीठे पलों के बारे में जानिए आज की इस मुलाकात में।
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https://youtu.be/dmYkUmad-zc?si=D_GQQzf67oWNsVxq
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The brokan mews का पहला सीजन मुझे बहुत पसंद आया था, सो दूसरा जब से आया देखने का मन था। लेकिन समय नहीं मिल पा रहा था, खैर इस सन्डे फाइनली इसे निपटा दिया। कहने को तो ये सीरीज एक अंग्रेजी सीरीज प्रेस का हिंदी संस्करण है पर इसे देखते हुए आपको अपने आस पास मीडिया की दुनिया में घटी ढेरों घटनाएं याद आ जायेगें। यहां आपको पैगेसिस मिलेगा, एल्ट्रोल बॉन्ड मिलेगा, आई टी ट्रॉल्स मिलेंगे, कहीं आपको सुशांत सिंह राजपूत याद आए तो कहीं अर्नब, कहीं रवीश कुमार तो कहीं रुबिका लियाकत। तारीफ करनी पड़ेगी विनय वैकल की जिन्होंने इसे शुरू से लेकर अंत तक पूरी तरह एंगेज कर के रखा है। राइटिंग टॉप नोच है और एक एक संवाद मारक।
सीरीज में एक तरफ सरकारी या कहें "गोदी" मीडिया है जिसके संचालक जयदीप अहलावत हैं तो दूसरी तरफ लिबरल या कहें "देशद्रोही" मीडिया है जहां कमान संभाली है श्रिया पिलगांवकर ने और दोनों ही एक दूसरे से विपरीत एक्सट्रीम नैरेटिव सेट करते हैं जो टीआरपी की बिसात पर खेले जाने वाला एक गंदा खेल बनके रह जाता है। पत्रकारिता से कोसों दूर ये लोग अपनी सहूलियत अनुसार अपने अपने पक्ष को चमकाने में लगे रहते हैं, इन्हें वास्तविक समस्याओं से कोई मतलब नहीं, फिर चाहे इसके लिए किसी के दुख को उधेड़ना पड़े, किसी का कैरेक्टर असासिनेशन कर उसे नंगा करना पड़े, या फिर झूठे बयानों से सत्ता पक्ष या विपक्ष को नुकसान पहुंचना पड़े। और इन सबके बीच एक निडर, गैर पक्षपाती पत्रकारिता का परचम बुलंदी से थामे नजर आती है सोनाली बेंद्रे। आखिरी एपिसोड में श्रिया का मोनिलॉग आज के हर पत्रकार को सुनना चाहिए और केवल पत्रकार ही नहीं बल्कि हम दर्शकों को भी।
प्रमुख कास्ट तो खैर है ही शानदार पर उनके अलावा भी फैसल रशीद, तारक रैना और गीता ओहल्यान का काम विशेष उल्लेखनीय है। क्यों अच्छे पत्रकार एंकर बन जाने के बाद अपना असली धर्म भूल जाते हैं ? क्यों किसी कम जानकर को भी एक नरेटिव सेट करने के लिए मेलोड्रामेटिक एंकर बना दिया जाता है ? क्यों व्यवस्था के ये चौथा खंभा आज खोखलाता जा रहा है ? ये सीरीज बहुत से सवाल छोड़ जाती है।
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हर इंसान के भीतर होते हैं कुछ अंधेरे बंद कमरे, जिन पर अकल मोटे मोटे ताले लटका कर दबा छुपा कर रखती हैं क्योंकि इंसान की अकल नहीं जानती कि इन अधेरों कमरों से कौन सा शैतान और कौन सा देवता निकल आए जिसे नियंत्रित करना इंसान की सामान्य अकल के लिए मुश्किल हो जाए। पर प्रेम और नफरत दो ऐसे एक्सट्रीम भाव होते हैं जो हदें पार कर जाए तो इनकी शिद्दत से इन बंद कमरों का कोई न कोई ताला टूट भी जाता है।
आज मैं जिस फिल्म का जिक्र कर रहा हूं वो करीब 5 साल पुरानी है पर मुझे लगता है इस विषय पर बनी शायद देश की पहली और अब तक तो आखिरी फिल्म होगी ये। आमिस का विषय क्या है वो बता दूंगा तो आपका सस्पेंस खत्म हो जाएगा, पर जो भी है, बहुत विचलित करने वाला, और घिनौना है, और ऐसे विषयों को छूने की हिम्मत कम ही निर्देशक कर पाते हैं।
मूल रूप से असमी भाषा में बनी इस फिल्म में दिखे हैं लिमा दास और अर्घदीप बरुआ और दोनों ही कलाकारों ने कमाल का काम किया है विशेषकर लीमा ने। एक दृश्य में जब नायक विभिन्न पशुओं का जिक्र करता है तो एक घरेलू पार्टी में बैठी नायिका के एक्सप्रेशन देखने लायक हैं शायद यही वो पल रहा होगा जब नायिका के भीतर का अंधेरा कमरा खुला होगा और वो दैत्य बाहर निकला होगा।
फिल्म सोनी लिव पर हिंदी में भी उपलब्ध है हालांकि मैंने मूल असमी में देखी और ये मेरी लाइफ की पहली असमी फिल्म है। पर मैं ये फिल्म आपको रिकमेंड नहीं करूंगा। क्योंकि ऐसी फिल्में देखने के लिए बहुत ही मजबूत दिल जरूरी है। ये मनुष्य के अंदर के जानवर का एक ऐसा डरावना चेहरा आपके सामने रखेगा जो 100 हॉरर फिल्म से भी ज्यादा खौफ आपके अंदर जगा देगा। अपने रिस्क पर देखना चाहें तो देख सकते हैं।
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https://www.instagram.com/reel/C7rHihVPJ5F/?igsh=cDl3cWt5aDBydDll
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इंडियन ott की शायद सबसे लोकप्रिय फ्रेंचाइज है पंचायत जिसके 4 साल में 3 सीजन आ चुके हैं। ताजा सीजन का इंतजार तो साल के पहले महीने से हो रहा है लेकिन मई के आखिरी सप्ताह में आखिरकार प्राइम विडियो पर आए नए सीजन ने साबित कर दिया कि इंतजार का फल मीठा ही है।
इस सिरीज़ की सबसे बड़ी खासियत है इसका एकदम वास्तविक सा सेटअप। कुछ भी यहां फेब्रिकेटेड नहीं लगता। दूसरा है इसकी कास्टिंग फिर वो सचिव जी जितेंद्र कुमार हों, प्रधान जी रघुबीर यादव और उनकी पत्नी नीना गुप्ता हो, उप प्रधान फैसल मालिक या फिर सहायक चंदन रॉय, और सभी साथी किरदारों के लिए भी जिन्हें चुना गया है उन सबका काम कमाल का है। फैजल मालिक रेगुलर कास्ट में यकीनन हाइलाइट हैं। इन सबसे ऊपर जिस तरह की परिस्थितियां यहां जन्म लेती है वो नए होने के साथ साथ जम कर हंसाते भी हैं, और इसमें संवादों का अहम रोल रहता है। सीधे सरल संवाद और उनकी अदायगी उन्हें स्वता ही लोकप्रिय बना देते हैं। जैसे कि इस सीजन में घोडे की खरीद को किसी के सम्मान से जोड़ कर देखना या फिर सरकारी योजनाओं को लेकर की जाने वाली पॉलिटिक्स आदि सबप्लॉट्स अधिकतर दर्शकों के लिए काफी नए और अनूठे ही हैं।
जितने भी नए किरदार जोड़े गए हैं सब के सब कहानी के फ्लो में रमे से लगते हैं। बनराकस दुर्गेश कुमार, क्रांतिदेवी सुनीता राजभर, बिनोद अशोक पाठक और रिंकी संविका के किरदार को इस बार खासा एक्सटेंशन मिला है। अनुराग सैकिया ने दमदार पार्श्व संगीत के साथ साथ कुछ बढ़िया गाने सजाए हैं थाली में। कुल मिलाकर ये 56 भोग वाली ये देसी दावत यकीनन भरपूर एंजॉय करने लायक है। ऐसा कॉन्टेंट मिस करने लायक तो हरगिज़ नहीं है।
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https://www.instagram.com/reel/C7mAWl_Pkdt/?igsh=eDE1bWpkbWphZmNi
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आज से करीब 30 साल पहले एक फिल्म आई थी खलनायक, जिसके गाने खूब चर्चित हुए थे विशेषकर चोली के पीछे जो अपने लिरिक्स के चलते विवादों में घिर गया था। पर विवादों से ऊपर उठाकर अगर आप इस 7 मिनट लंबे गीत को ध्यान से सुनोगे तो पाओगे कि इस गाने की धुन उसका शानदार अरेंजमेंट, पार्श्व में बजाए गए वाद्य आदि अपने दौर से काफी आगे थे। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी के इस गीत का लोहा तो ए आर रहमान ने भी माना जब उन्होंने इस गीत को एक ट्रिब्यूट दिया स्लमडॉग मिलेनियर में। और अब देखिए फिल्म क्रू का पूरा का पूरा पार्श्व संगीत इसी गीत से प्रेरित है। फिल्म में इस गीत का एक रीमिक्स संस्करण भी है जो दमदार है।
क्रू टिप्स वालों की फिल्म है और वो भी टी सिरीज़ और सारेगामा की तरह अपने ही 90s के गीतों को उलट पलट कर पेश की कोशिश में लग गए हैं। लेकिन क्रू के मामले में ये कोशिश रंग ही लाई है। इला अरुण का घाघरा और गोविंदा करिश्मा का सोना कितना सोना है भी फिल्म में शामिल हैं और उन्हें परफेक्टली ब्लेंड किया गया है। बात करें फिल्म की तो जिस फिल्म में तब्बू, करीना और कृति सनन जैसी खूबसूरत बालाएं एक साथ हो, तो पैसा वसूल मनोरंजन लाज़मी है। दिलजीत और कपिल शर्मा भी दिखते हैं सपोर्ट में पर फिल्म पूरी तरह वूमेन पावर से लबरेज है।
कहानी में अच्छे खासे ट्विस्ट एंड टर्न हैं, थ्रिल है, कॉमेडी भी है यानी एक फूल पैकेज है मनोरंजन का। फिल्म अब नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है, देख डालिए एंजॉय करेगें।
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https://www.instagram.com/reel/C7hAnkKPQhk/?igsh=MXRsaGU5aWV0Z2l4OA==
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कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिन्हें छोड़ने का बिलकुल मन नहीं होता पर इन्हें निभाया भी नहीं जा सकता। एक औरत और मर्द के बीच क्या कोई ऐसा भी रिश्ता हो सकता है जिसे किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता ? 8 AM Metro कोई टिपिकल लव स्टोरी नहीं है। यहां दो अजनबी मिलते हैं, बौद्धिक और भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं मगर दोनों ही पहले ही किसी रिश्ते में कमिटेड भी है और उन रिश्तों से संतुष्ट भी।
8 AM Metro बहुत ही सेंसेबल फिल्म है जहां दो प्रमुख किरदारों के आपसी संवाद दिलचस्प होने के साथ बहुत सोच समझ कर लिखे गए हैं। फिल्म का अंत दिल तोड़ देता है। फिल्म किताबों की बात करती है, कविताओं कहानियों की बात करती है फिल्म के कम से कम तीन किरदार लेखक हैं, एक बुक सेलर और एक जबरदस्त पाठक भी। तो साहित्य में रुचि रखने वालों को ये खासी पसंद आयेगी। फिल्म का पार्श्व संगीत गहरा है और गीत बेहद मधुर।
गुलशन देवैया कमाल के एक्टर हैं, और सैयामी खेर कितनी खूबसूरत दिखी है जो अपनी आंखों से कितना कुछ कह देती है। बाकी भी सभी कलाकारों का काम बेहद सराहनीय है विशेषकर मृदुला के रोल में कल्पिका गणेश का। 8 AM Metro एक बेहरतीन फिल्म है जो सिनेमा घरों में कब आई कब गई किसी को पता नहीं चला। कितने अफसोस की बात है, बहरहाल अब आप इसे zee 5 पर देख सकते हैं।
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