एक शाम बालकॉनी पर खड़े हुए, क्षितिज को देखते हुए पुरानी स्मृतियों का शब्दरेख 😊
एक बेहद उम्दा और पसंदीदा नज़्म, आप सभी के बीच 😊😊
मेरी लिखी हुई नज़्मों, कविताओं, गज़लों का संग्रह 😊😊
कविताएँ बेहद ख़ास होती हैं, कभी कभी आप से वो इस प्रकार जुड़ जाती हैं कि आप चाहकर भी उसे खुद से अलग नहीं कर सकते । एक ऐसी ही कविता प्रस्तुत है 😊
कहानियाँ प्रायः सबने सुनी होती हैं मगर कुछ एक कहानियाँ, कुछ एक चरित्र ही आपके साथ रहते हैं, भगवतीचरण वर्मा जी द्वारा लिखित एक ऐसी ही कहानी "नाज़िर मुंशी" जो कहीं न कहीं मेरे साथ पिछले बारह साल से है । आज इस कड़ी में उसी की एक विवेचना के साथ हम मौजूद हैं। आशा करता हूँ आप लोगों को ये प्रयास पसंद आएगा 😊😊
मैं "प्रसिद्ध कविताएँ " प्रोग्राम के हर एपिसोड में पढ़ता हूँ हिंदी साहित्य के नामचीन कवियों की कविताएँ । नई बेहतरीन कविताओं को सुनते रहने के लिए हमारे podcast से जुड़े रहिए 😊 धन्यवाद 🙏
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आज इस श्रृंखला "चाय वार्ता 1.0" की प्रथम कड़ी में हमारे ख़ास मेहमान दीपक मिश्रा जी साझा कर रहे हैं अपने अनुभव जो उन्होंने "स्मृति की रेखाएं" पढ़ते हुए महसूस किए । आशा करता हूँ आपको ये पहल पसन्द आएगी 😊😊