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परंपरा पर आधारित अशाश्त्रीय सिद्धान्त, उत्पीड़न, भ्रस्टाचार और कई पादरियों की आध्यात्मिक गिरावट सुधार के लिए पुकार के प्रमुख कारण थे।
अंत के दिनों में, व्यापक धर्म-त्याग के समय में, परमेश्वर की शेष कलिसिया होगी जो उसके आज्ञाओं को मानते और यीशु के विश्वास को रखते।
आज़ ख्रीस्त कलिसिया के माध्यम से सभी को अपने परिवार के सदस्य बनने के लिए निमंत्रण करता है। कलिसिया में सभी निर्णयें मसीह के आत्मा के अनुसार, उसके वचन से निर्देशित होकर लिए जाना चाहिए।
चूँकि परमेश्वर चाहता है कि “सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएँ” वह सुसमाचार की घोषणा, लोगों का पोषण, और उनके वरदानों का उपयोग के लिए कलिसिया का संगठन चाहता है।
कलिसिया का विवरण एक शरीर, मंदिर, दुल्हन, “ऊपर के यरूसलेम”, परिवार, सत्य का खंभा और नींव, और सेना के रूप में किया गया है।
कलिसिया विश्वासियों का समुदाय है जो यीशु मसीह को प्रभु और उद्धारकर्त्ता के रूप में स्वीकार करते हैं।
आत्मा से भरा जीवन, मेल-मिलाप का जीवन, बाइबल-अध्ययन, प्रार्थना और फलदायक जीवन, और आराधना का जीवन मसीह में बढ़ने के प्रमाण चिन्ह हैं।
मसीह का क्रूस पर मृत्यु पाप और बुरे शक्तियों पर विजय था और उसके लहू से हमारा विजय का आश्वासन देता है और हमें परिपकता की जीवन की ओर ले जाता है।
पवित्र आत्मा हमारे लिए मसीह की सिद्धता लता है। विश्वास द्वारा मसीह का उत्तम चरित्र हमारा हो जाता है।
बच्चपन से लेकर युवा अवश्था तक और फिर पूर्ण पुरुसत्व तक यीशु अकेला शुद्धता और विश्वास में जीया।
यीशु अपने बच्चपन और युवा के जीवन में हमारा उदाहरण है।
जैसा परमेश्वर ने छोटा यीशु को हेरोदेस से अपने स्वर्गदूतों और युसुफ और मरियम के द्वारा रक्षा किया, उसी प्रकार वह अपने बिश्वासी बच्चों का रक्षा करता है।
पूरब के ज्ञानी लोग यीशु के तारे देखे क्योंकि वे सच में ज्ञानी थे, इसमें कि वे परमेश्वर के शास्त्त्रों में ढूढ़ें, और उसके निर्देश का पालन किया।
यीशु ख्रीस्त के अर्पण के साथ बलिदान और भेंट का प्रतीक लगभग वास्तविक में बदलने वाला था।
यीशु जन्मा कि वह मनुष्य की दरिद्रता में अपना धन लाये, मनुष्य के पाप के जगह अपना धार्मिकता दे, और अपना जीवन मरते मनुष्य के लिए दे।
यहूना का परमेश्वर का कार्य में नम्रता ने उसे महान बनाया।
यीशु का दिव्य शक्ति जन्म से अंधा व्यक्ति को दोनों शारीरिक और आत्मिक दृष्टि प्रदान किया।
यीशु उस व्यक्ति को जो 38 साल से लंगड़ा था सब्बत के दिन चंगा किया जो जीने की आखरी आशा खो रहा था।
यीशु के अनुग्रह और क्षमा ने एक पापिन को परिवर्तित कर उसके जीवन में नई शुरुआत दी।
यहूदा के पास सुअवसर था की वह यीशु के साथ रहे और उसके जीवन और सेवा को नजदीकी से देखे; फिर भी वह उद्धार को अस्वीकार किया।




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