भारत सिर्फ देश नहीं बल्कि भावनाओं का एक ज्वार है। भारत को केवल एक भूखंड में नहीं परिभाषित किया जा सकता, बल्कि यह तो एक भावना है जो पूरे विश्व के कल्याण की कामना करता है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने कुछ यही भाव लेकर एक अमर कविता लिखी थी 'वृथा मत लो भारत का नाम'। इस कविता के वाचन का मैंने छोटा सा प्रयास किया है। आशा है आपको पसंद आएगा।