Karm pradhan jivan कर्म प्रधान जीवन
Update: 2023-02-21
Description
कर्म-प्रधान विश्व रचि राखा’ यह उक्ति श्रीमदभगवद गीता के इस सिद्धांत या कर्मवाद सिद्धांत पर आधारित है कि ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:’ अर्थात इस संसार में बिना फल या परिणाम की चिंता किए निरंतर कर्म करते रहना ही मानव का अधिकार अथवा मानव के वश की बात है। दूसरे रूप में इस कथन की व्याख्या इस तरह भी की जा सकती है-फल की चिंता किए बिना जो व्यकित अपने उचित कर्तव्य-कर्म करता रहता है, उसे अपने कर्म के अनुसार उचित फल अवश्य मिलता है। अच्छे कर्मों का अच्छा और बुरे कर्मों का अवश्यंभावी बुरा फल या परिणाम, यही मानव-नियति का अकाटय विधान है। इस कर्मवाद के सिद्धांत के विवेचन से जो संकेतार्थ या ध्वन्यार्थ प्राप्त होता है, वह यह कि विधाता ने संसार को बनाया ही कर्म-क्षेत्र और कर्म-प्रधान है। जो व्यक्ति मन लगाकर अपना निश्चित कर्तव्य कर्म करता जाता है, अंत में सफल, सुखी और समृद्ध वही हुआ करता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति भाज्य के सहारे बैठे रहते हैं, तनिक-सी असफलता पर भाज्य का अर्थात भाज्य खराब होने का रोना रोने लगते हैं, जिनमें अपने मन पर काबू नहीं, कर्म के प्रति निष्ठा और समर्पण -भाव नहीं, आत्मविश्वास नहीं हुआ करता, वे निरंतर असफलता का ही सामना किया करते हैं। उन्हें भूल जाना चाहिए कि कभी वे लोग सुख-शांति और स्वाभाविक समृद्धि के पास तक भी फटक सकेंगे। और ऐसी ही अनेक बातें.. जानने के लिए सुनते रहिए.. दिल की बातें….टाटा..Bby ..take care.. See you..Save trees🌲🌳🌴Save life..Stay tune.. Stay Safe.. 👍
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