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अपनी विशिष्टता का आनंद लें और दूसरों के काम आएं
हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में अलग है, विशिष्ट है। मैं जो भी हूं सिर्फ अपने जीवन की परिस्थितियों और अपने उन प्रयासों के कारण हूं जो मैंने ऐसा बनने की प्रक्रिया में किए हैं। आपको अपनी इस विशिष्टता का आनन्द लेना चाहिए, उसके लिए खुशी मनानी चाहिए। आपको कभी भी वैसा दिखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जो आप नहीं हैं या आपको किसी अन्य व्यक्ति की तरह होने का दिखावा नहीं करना चाहिए। आप औरों से भिन्न होने के लिए ही पैदा हुए हैं। आप केवल 'आप' बनने के लिए ही हैं। समूची दुनिया में कहीं भी और कभी भी ही विचार नहीं आ रहे होंगे, जैसे अभी आपको आ रहे हैं और न ही किसी व्यक्ति की स्थितियां वैसी होंगी, जैसी आपके जीवन की हैं। कोई भी व्यक्ति वैसा हंसमुख, प्रसन्नचित्त और खुशी नहीं हो सकता, जैसे कि आप हैं। इसलिए अपनी विशिष्टताएं दूसरों के साथ साझा करें। यदि आपका अस्तित्व समाप्त हो जाता है, तो इस सृष्टि में एक छिद्र रह जाएगा, इतिहास में एक खालीपन रह जाएगा, मानव जाति की उत्पत्ति के लिए बनाई गई योजना में किसी चीज का अभाव रह जाएगा। इसलिए, अपनी विशिष्टता को संजो कर रखें। यह एक ऐसा उपहार है जो प्रकृति ने केवल आपको दिया है। दूसरों के काम आएं। अपने जीवन को जितना विस्तार दे सकें, दे डालें।
खुद को प्रेरित करने के लिए अपनी शारीरिक मुद्रा पर ध्यान दें
समुद्री जीव वाकई गौर करने लायक होते हैं। इनका नर्वस सिस्टम अपेक्षाकृत सरल होता है और इनके मस्तिष्क की जादुई कोशिकाएं यानी न्यूरॉन्स बड़े आकार के होते हैं, जिनका निरीक्षण करना काफी आसान होता है। यही कारण सर्किट का सही- सही नक्शा बनाने में सफलता हासिल की है। इंसान और केकड़ों में हमारी उम्मीद से अधिक समानताएं होती हैं (खासकर तब, जब आप केकड़ों की तरह चिड़चिड़ा महसूस करते हैं।)
जॉर्डन यी पीटरसन है कि वैज्ञानिकों ने मनोविशेषज्ञ व लेखक केकड़ों के न्यूरल
अगर दो केकड़े एक ही समय में समुद्र तल के एक ही क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लें और दोनों ही उस अधिकार क्षेत्र में रहना चाहते हों, तब क्या ? दोनों में युद्ध होगा। एक पराजित केकड़े के मस्तिष्क की रासायनिक गतिविधियां निश्चित ही एक विजयी केकड़े से बिलकुल अलग होगी। इसकी झलक उसकी शारीरिक मुद्रा में साफ देखी जा सकती है। आत्मविश्वास या डर उसके शरीर में मौजूद सेरोटोनिन व ऑक्टोपमाइन नामक दो रसायनों पर निर्भर होता है। जब कोई केकड़ा जीत हासिल करता
है तो उसके शरीर में सेरोटोनिन की मात्रा ऑक्टोपमाइन की मात्रा से ज्यादा हो जाती है।
परिस्थितियां कैसी भी हों, आप कंधे ताने रखें। कंधे तानकर सीधे खड़े होने का अर्थ है, जीवन की कठिन जिम्मेदारी को रोमांच के साथ स्वीकार करना। इसका अर्थ है, अपनी अव्यवस्थित क्षमताओं को एक जीवन जीने योग्य संसार की वास्तविकताओं में रूपांतरित करना। इसका अर्थ है आत्म चेतन अतिसंवेदनशीलता और कमजोरी के बोझ को स्वेच्छा से स्वीकार करना और बचपन के अचेतन स्वर्ग के अंत को स्वीकार करना।
स्वयं को प्रेरित करने के लिए आप विजेता केकड़ों पर विचार कर सकते हैं, जिनका अस्तित्व और व्यावहारिक प्रज्ञा 35 करोड़ साल पुरानी है। तो आगे से आप अपने कंधे तान कर सीधे खड़े होंगे। अपनी शारीरिक मुद्रा पर ध्यान दें। कंधे झुककर चलना और पराजित दिखना बंद करें। अपने मन की बात स्पष्ट शब्दों में कहें। अपनी इच्छाओं को महत्व दें, मानों उन्हें पूरा करना आपका हक हो, कम से कम उतना हक, जितना हर किसी को होता है। गरदन सीधी करके चलें और अपनी नजरों को बिलकुल स्पष्ट रखें। अपने शरीर के तंत्रिका पथों में सेरोटोनिन के मुक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करें, जो अपना शांतिपूर्ण प्रभाव दिखाने के लिए बेताय है।
मन में दुख की स्क्रिप्ट न लिखें, अभिव्यक्त कर दें दें
जब भी कोई आपदा या विपत्ति आ पड़े या कुछ बहुत बुरा हो जाए, जैसे बीमारी, आदि तब आश्वस्त रहिए कि इसका दूसरा पहलू भी है, कि आप एक अविश्वसनीय एकहार्ट टॉल्ल चीज से बस विख्यात लेखक एक कदम दूर हैं। और वह है उस पीड़ा व दुख-तकलीफ रूपी घटिया धातु को सोने जैसी कीमती धातु में बदलने का समय और एक कदम को समर्पण कहते हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि आप ऐसी स्थिति में सुखी हो जाएंगे, खुश हो जाएंगे। लेकिन ऐसा अवश्य है कि आपका भय और दुख, शांति में, सुकून में बदल जाएगा। यह ईश्वरीय शांति है जो किसी भी बोध शक्ति से पार और परे है। उसकी तुलना में सुख तो एक बहुत ही उथली चीज है। जो कुछ बाहर है अगर उसे आप स्वीकार नहीं कर सकते हैं तो जो भीतर है उसे स्वीकार कीजिए।
इसका अर्थ है दुःख का प्रतिरोध न करें। उसे वहीं रहने दें। वह दुख जिस भी रूप में हो- शोक, विषाद, हताशा, निराशा, भय, चिंता, अकेलापन उसके प्रति समर्पण करें। मानसिक रूप से कोई ठप्पा लगाए बिना उसे साक्षी की तरह देखें। तब देखिए कि समर्पण का चमत्कार उस गहरे दुख को किस तरह एक गहरी शांति में बदल देता है। जब बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता है तो भी उससे पार पाने का कोई तो रास्ता होता ही है। इसलिए दुख-दर्द से बच कर मत भागिए। उसका सामना कीजिए। उसे महसूस कीजिए- पर उसके बारे में सोचिए मत। हो सके तो उसे अभिव्यक्त कीजिए, लेकिन उसके बारे में अपने मन में कोई स्क्रिप्ट न रचते रहिए। उस एहसास को पूरी तवज्जो दीजिए, न कि उस व्यक्ति, उस घटना या उस स्थिति को जो कि उस एहसास के पैदा होने का कारण लग रहा हो । मुश्किलों से अच्छी तरह लडने का यही तरीका है ।
खुशमिजाज लोग आनंद व उद्देश्य में संतुलन रखते हैं
जीवन के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक यह है कि इंसान को संतुष्टि मिलती है, जब वह जोखिमों से भरा, असहज और कभी-कभी बुरा लगने वाले काम भी सफलतापूर्वक कर लेता है। 48 देशों के दस हजार से ज्यादा लोगों से बात करने के बाद मनोविशेषज्ञ इड डायनर और उरबाना इस नतीजे पर पहुंचे कि दुनिया के किसी भी कोने में लोगों को सबसे ज्यादा किसी एक चीज की तलाश है, तो वो है खुशी... मतलब जीवन में आनंद, उद्देश्य और संतुष्टि।
शोध-अध्ययनों से निष्कर्ष निकला कि आनंद से भरे हुए लोग उम्मीदों से विपरीत ऐसी आदतों को जीवन में अपनाते हैं, जो हमें दूर से देखने पर कठिन या दुखदायी लगती हैं। पहला है जोखिमलेना। सफल लोगों को लगता है कि खुशी सिर्फ मनपसंद काम करने में नहीं है, बल्कि अपना कंफर्ट जोन छोड़कर कुछ पाने में है। 2007 के एक अध्ययन में 21 दिन कुछ लोगों पर नजर रखी गई। जो लोग निरंतर जोखिम लेते हुए कुछ नया सीख रहे थे, वे अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा खुश
थे। किसी चीज को न जानने वाली स्थिति खीझ उत्पन्न कर सकती है, लेकिन जब आप सीखने का मन बना लेते हैं, तो ये खुशी की वजह भी बन जाती है। इसके लिए उत्सुकता बेहद जरूरी है।
हमेशा मुस्कराते रहने वाले. खुशमिजाज लोगों के बारे में आम राय होती है कि ऐसे लोग धरातल पर नहीं जीते। पर असल में ऐसे लोग जीवन उलटफेर पर बहुत ज्यादा चिंतित नहीं होते। उनके लिए हर फीलिंग एक सौ होती है। किसी में बहुत ज्यादा खुसी या बहुत ज्यादा दुख नहीं होता। ऐसे लोग हर भावना के लिए बराबर समय निकालते हैं। खुश लोग अपने जीवन में आनंद और उद्देश्यका संतुलन बनाए रखते हैं।
ऊर्जा का स्त्रोत बनना चाहते हैं तो ये उपाय आजमाकर देखिए
आपके इर्द-गिर्द अगर कोई लगातार नकारात्मक बातें कर रहा है, ऐसे में पॉजिटिव बने रहना मुश्किल हो जाता है। दूसरों को भी नकारात्मकता से भर देने वाले इंसान के साथ कोई वक्त नहीं बिताना चाहता आप कैसा इंसान बनना चाहते हैं? दूसरों को ऊर्जा से भरने वाले या अपनी बातों से उनकी ऊर्जा खत्म करने वाले ऊर्जा का संचार करने वाले व्यक्ति बनना चाहते हैं, तो अपने अंदर अतिरिक्त रूप से सकारात्मक नजरिया विकसित करना होगा। इसके लिए चंद उपाय आजमाने होंगे।
1. अपने दिमाग में न्यूरॉन्स को प्रभावित करके तत्काल सकारात्मक हो जाना मुमकिन नहीं है। 'आउटस्मार्ट योर स्मार्टफोन' किताब की लेखिका डाव्ल्स विभिन्न अध्ययनों व साक्षात्कारों के आधार पर कहती हैं कि सकारात्मकता समय मांगती है, लेकिन इच्छाशक्ति व निरंतरता से यह आसान है। दिमाग को सकारात्मक सूचनाएं देते रहिए, सकारात्मक शब्दावली प्रयोग करिए। जब एटीट्यूड पॉजिटिव होगा, तो विचार, स्मृतियां व भावनाएं भी उसी दिशा में काम करने लगेंगी।
2. सकारात्मकता के लिए जद्दोजहद करने वाले लोग किसी भी हालात, व्यक्ति या वस्तु
में नकारात्मकता खोज ही लेते हैं। अगली बार अगर आप ऐसे किसी भी हालात में फंसें तो खुद से चंद सवाल पूछें कि इस परिस्थिति में कुछ अवसर है? इससे क्या कुछ सीखा जा सकता है? इस तरह आप अपना ध्यान बांटकर ऊर्जा बचा सकते हैं।
3. अगर आप अपने काम में विनम्रता रखेंगे, तो ये व्यक्तित्व में भी झलकेगी। विनम्रता साथ चंद प्रशंसा के लफ्ज अपनों को कहते रहें। ये आपकी परवाह दर्शाते हैं।
4, पॉजिटिव एटीट्यूड, सकारात्मक सोचने और काम करने से कहीं ज्यादा है। सही मायनों में सकारात्मकता मतलब जोवन का आनंद लेना है। जिंदगी में हर क्षण का लुत्फ उठाते रहिए। इस तरह आप दूसरों के लिए, ऊर्जा पुंज का काम करेंगे।
जागरूक रहकर दूसरों के प्रभाव में आने से बच सकते हैं
चाहे आनंद हो या गुस्सा, हम ऐसे हैं कि दूसरों की भावनाओं से प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं पाते। इसे इमोशनल कंटेजियन यानी भावनात्मक संक्रमण कह सकते हैं। पर अगर थोड़ी-सी जागरूकता रखी जाए तो दूसरों के नकारात्मक विचारों से खुद को बचाकर रख सकते हैं।
अमेरिकी पत्रकार एरियल लीव ने अपने जीवन की घटनाओं पर एक किताब लिखी है। उसमें वह बताती हैं कि 1970 के दशक में वह मैनहट्टन में एक अपार्टमेंट में अपनी चिड़चिड़ी मां के साथ रहती थीं। वहां लोग पार्टी करते और वह उन पर चिल्लाती रहतीं। उनका मूड बहुत जल्दी-जल्दी बदलता और वह हमेशा सतर्क रहतीं। ऐसे में वह रिलैक्स ही नहीं कर पाती लीव लिखती हैं कि इसका परिणाम ये हुआ कि वयस्क होने के बाद वह दूसरों की मनोदशा और उनकी ऊर्जा से बहुत ज्यादा प्रभावित होने लगी। इसका मुख्य कारण लीव की उतार- चढ़ाव भरी परवरिश रही।
लेखिका इलेन हैटफील्ड इमोशनल कंटेजियन को दूसरों के हावभाव, आवाज, हरकते आदि को देखकर अपना व्यवहार बदल देने के रूप
में परिभाषित करती हैं। कई अध्ययन बताते हैं कि तीव्र नकारात्मक भावनाएं अधिक सशक्त रूप से अभिव्यक्त होती है, वे अधिक संक्रामक होती हैं। बार-बार नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के कारण हम इसकी वजह नहीं देख पाते। इसके बजाय सोचते हैं कि हम बुरे हालातों में हैं।
इससे बचने के लिए क्या करें ? सबसे पहले अपने दूसरों के बुरे मूड के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील न हों। पर्याप्त नींद लें, अच्छा खाएं, व्यायाम करें और जीवन में उद्देश्य लाएं। आपको अपना मूड खराब करने का पूरा अधिकार है, लेकिन दूसरों का मूड बिगाड़ने का नहीं, उनके बारे में भी सोचें और किसी से बात करते समय अपना मूड सामान्य बनाए रखें। अपने जीवनसाथी से अपने बारे में फीडमैक लेते रहे।
क्या अपने मूड को सहज रूप से नियंत्रित किया जा सकता है?
'मूड खराब है आपको अपने आसपास किसी न किसी से ये सुनने मिल ही जाता होगा। आखिर में गृह है? जीवन में लोगों का मूड भी होगा। ऐसी स्थिति में करते होंगे?
दरअसल हमारा मूड कला (आटे) की तरह होता है जब आप उसे आंखों से देखते या महसूस करते हैं, तभी उसके बारे में पता चल पाता है, पहले से नहीं विज्ञान भी हमारे मूड के बारे में कुछ ठीकठाक नहीं बना पाता कि यह कैसे काम करता है। मूड भावनाओं से जुड़ी हुई हमारे दिमाग की अवस्था है, लेकिन अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा स्थायी ज्यादा स्थिर भावनाओं की तरह ही मूड भी दिमाग के एमिग्डला वाले हिस्से में पैदा होता है, जहाँ विचारों को भावनात्मक रूप से समझा जाता है। मूड को बॉडी बलॉक बहुत गहराई से प्रभावित करती है, सोने-उठने में गड़बड़ी से भी यह खराब हो जाता है। इसका असर सेहत पर भी पड़ता है तो सेहत भी मूड पर असर डालती है। मेटाबॉलिज्म भी मूड से जुड़ा होता है, यह शारीरिक-मानसिक ऊर्जा पर असर डालता है।
कई लोगों को लगता है कि मूड औसतन रूप से हमारी भावनाओं का ही बेच है। पर विज्ञान के हिसाब से मूड बिल्कुल अलग है। इस बात के प्रमाण है कि कुछ लोग आमतौर पर यह चुनकर कि आगे किस गतिविधि में शामिल होना है, अपने मूढ
को सहया रूप से नियंत्रित करते हैं। लो फील करते हैं, तो खुद को उन चीजों में शामिल कर लेते हैं, जिससे उन्हें खु मिलती है, जैसे फिल्म देखना, घूमना आदि। और जब मूड ठीक हो जाता है, जोखि भरा काम करते हैं।
ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने पाया है ज्यादा डिप्रेशन के मरीजों में मूड को करने वाली प्रक्रिया होता है। अभी तक मूड बदलने के लिए परंपरागत उपाय ही रही है, जहां दवाएं दिमाग की केमिस्ट्री पर असर डालकर मूड सुधारती है। लेकिन लोग अब इस तरह दिमाग पर असर बना मूड बदलने के उपायों को और ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। शोध अध्ययन कहते हैं। खानपान मूड को बहुत ज्यादा प्रभावित कर है। सकारात्मक सोच के साथ पर ध्यान से मूड ठीक रखा जाता है।
खुद की आलोचना न करें, ये सुधार में बाधक है
उस बात पर हमेशा गौर करें जिसके लिए आप खुद को सबसे ज्यादा दोष देते हैं। फिर चाहे वह देरी हो, ओवर ईंटिंग हो या कुछ और। क्षण 'भर के लिए उस भाषा पर विचार करें, जिसका उपयोग आप उस समय खुद को दोष देने के लिए करते हैं। क्या आप खुद को बहुत बुरा-भला कहते हैं। आलसी, बेवकूफ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो इसे बंद कर दीजिए। विशेषज्ञ खुद के बारे में इस तरह के शब्दों का प्रयोग करने या खुद के लिए जजमेंट करने से मना करते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि इस तरह की आलोचना आपको समस्याओं के वास्तविक कारणों तक नहीं पहुंचने देती, जिससे आप समस्या के समाधान तक नहीं पहुंच पाते।
मनोवैज्ञानिक आमतौर पर जोर देते हैं कि विचारों, भावनाओं और व्यवहार के लिए एक उचित स्पष्टीकरण होता है। इसे 'सहानुभूति' कहा जाता है। इसका उपयोग लोगों में बदलाव लाने के लिए किया जाता है। दरअसल जब हम जजमेंट करते हैं तो हम मानसिक रूप से दुनिया
को 'अच्छे' और 'बुरे' की श्रेणी में विभाजित करते हैं। हम जटिल चीजों को 'बेवकूफ', 'बदसूरत', 'स्मार्ट', या फिर 'पागल' जैसे आसान लेबल देकर शॉर्टकट बनाते हैं। बुद्धिमानी के साथ मानसिक शॉर्टकट बनाने की यह क्षमता जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण भी है। क्योंकि दुनिया में इतनी अधिक सूचनाएं हैं कि सब कुछ विस्तार से नहीं जाना जा सकता।
तो क्या करें: खुद की आलोचना करते समय रुकें और पूछें, 'इससे मेरा क्या मतलब है?' बुरी आदतों में तर्क खोजें। दरअसल आपका दिमाग बता रहा होता है कि गतिविधि अप्रिय होने वाली है। अप्रिय क्या हो सकता है इसके बारे में विचार करें।
दिन की शुरुआत आपका आगे का दिन तय करती है
जागने के बाद के
पहले 30 मिनट को मैं प्लैटिनम-30 बुलाता हूँ। क्योंकि वे वास्तव में आपके दिन के सबसे महत्वपूर्ण क्षण होते हैं और आगे आने वाले पलों को श्रेष्ठता पर अत्यंत महन प्रभाव डालते हैं। अगर आपके पास यह करने का विवेक और ज्ञान है तो इस प्रमुख समय में आप सिर्फ पवित्र विचारों को मन में लाएं और सर्वोत्तम कार्य करें। आप महसूस करेंगे कि आपका दिन एक शानदार शुरुआत के साथ अनेक सर्वश्रेष्ठ दिशाओं को लेकर आएगा। जिस तरह से आप अपने दिन की शुरुआत करते हैं वह यह निर्धारित करता है कि आपका दिन कैसा बीतेगा।
मैं अपने दो छोटे बच्चों को सनसनीखेज आइमैक्स फिल्म 'एवरेस्ट' दिखाने ले गया। सांस रोक देने वाले दृश्यों के अलावा एक और बात जो मेरे ध्यान में रह गई वह यह है कि पर्वत की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए एक अच्छे येस कैप की आवश्यकता होती है। अगर धरातल के कैंप में विराम, विश्रांत और शरण न मिलती तो उनका चोटी तक पहुंचना असंभव था। जब वे दूसरे कैप पहुंचे फिर ये कुछ हफ्तों के लिए अपनीत करते हैं जो मेरे लिए मात लाने के लिए बेस कैंप में वापस आ गए। जैसे ही वे तीसरे कैंप पर पहुंचे वे जल्द ही चौधे कैंप पर पहुंचने की तैयारी करने बेस कैंप में वापस आ गए। और जब वे पांच कैंप पर पहुंचे तब वे फिर से पर्वत के नीचे अपने शरणालय में आ गए, जिससे वे अपने आपको पर्वत के शिखर तक पहुंचने के लिए तैयार कर सके। उसी तरह हम सबको व्यक्तिगत ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए और अपनी दैनिक चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने के लिए इस 'प्लैटिनक 30' के समय में अपने बेस कैंप जाने की कोशिश करनी चाहिए। हमें वापस उस जगह पर जाने की आवश्यकता होती है जहां हम फिर से अपने जीवन के ध्येय के साथ संबंधित हो जाते हैं। अपने स्वयं के जीवन में मैंने एक
बहुत ही असरदायक प्रातःकालीन पद्धति का विकास किया है जो मेरे दिन की एक शांत और प्रसन्नता से भरी हुई शुरुआत करती है। मैं अपने निजी शरणालय में बैठकर बिना किसी विघ्न के उन नवीनीकरण के उपायों का अभ्यास करता हूँ। इसके बाद में पंद्रह मिनट का समय मौन मनन में व्यतीत करता हूँ। अपने जीवन की सबसे अच्छी बातों पर ध्यान केंद्रित करके यह सोचता हूँ कि अपने वाला दिन क्या लेकर आने वाला है। इसके बारे में ज्ञानवर्धक साहित्य से कोई पुस्तक उठाता हूँ। इन पुस्तकों के पाठ मुझे उन चीजों पर में जरूरी है। अपने दिन की अच्छी शुरुआत कीजिए। आप जल्द ही एक बदले हुए व्यक्तित्व के स्वामी होंगे।
आपकी स्वाधीनता से किसी का रत्तीभर बुरा न हो
उन्नति के लिए आजादी सहायक है। मनुष्य के लिए जिस प्रकार सोचने और सोचकर प्रकट करने की स्वाधीनता होनी आवश्यक है उसी तरह उसे खाने पीने, पहनने, ओढने लेने-देने और विवाह आदि कर्मों की आजादी होनी चाहिए। उसकी स्वाधीनता से किसी का रत्तीभर बुरा न हो।
सब बातों की स्वाधीनता के मायने हैं मुक्ति की ओर बढ़ना और यही पुरुषार्थ है। उस काम में सहायता करना परम पुरुषार्थ है जिससे और लोग शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक स्वाधीनता की ओर बढ़ें। इस स्वाधीनता की स्फूर्ति में जिन सामाजिक नियमों के द्वारा बाधा पड़ती है वे अकल्याणकर हैं, बुरे हैं। इसलिए ऐसे नियमों को शीघ्र नष्ट करने का प्रयत्न करना चाहिए। व्यक्ति को बलवान बनने की कोशिश करनी चाहिए। कमजोर दिमाग कुछ भी नहीं कर सकता। सैकड़ों प्रलोभनों पर विजय प्राप्त करके, कमजोरियों को दबाकर, यदि तुम सत्य की सेवा कर सको तो सचमुच तमुमे एक ऐसा दिव्य तेज भर जाएगा कि उसके सामने,
तुम्हें जो कुछ असत्य जंचता है उसका उल्लेख करने की हिम्मत औरों को नहीं होगी। जिसकी सहायता से इच्छाशक्ति का वेग
और स्फूर्ति अपने वश में हो जाए और जो मनोरथ सफल हो सके वहीं शिक्षा है। मस्तिष्क में अनेक तरह का ज्ञान भर लेना, उससे कुछ काम न लेना और जन्म भर वाद विवाद करते रहने का नाम शिक्षा नहीं है। अच्छे आदर्श और अच्छे भावों को काम में लाकर लाभ उठाना चाहिए, जिससे वास्तविक मनुष्यत्व, चरित्र और जीवन बन सके। कुछ इम्तिहान पास करना अथवा धुंआधार व्याख्यान देने की शक्ति प्राप्त कर लेना शिक्षित हो जाना नहीं कहलाता। जिस विद्या के बल से जनता को जीवन संग्राम के लिए समर्थ नहीं किया जा सकता, जिसकी सहायता से मनुष्य का चरित्र बल परोपकार में तत्पर और सिंह का सा साहसी नहीं किया जा सकता, उसे शिक्षा नहीं कहा जा सकता। शिक्षा तो वही है जो मनुष्य को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाती है। भगवान ने कृष्णावतार में कहा है कि सभी प्रकार के दुखों कार कारण अविद्या है। निष्काम करने से चित्त शुद्ध होता है। जबकि कर्म वही है जिसके द्वारा आत्मभाव का विकास हो, और जिसके द्वारा अनात्मभाव का विकास हो वह अकर्म है।
अमेरिकी लेखिका ग्रेचेन रुविन हैप्पीनेस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। रुबिन 'सेल्फ इनसाइट... नाम की किताब का हवाला देते हुए कहती हैं कि लोग किसी भी बात पर बहस कर सकते हैं। अगर उन्हें कहा जाए कि 'ए' सही है, तो उसके समर्थन में तर्क दे सकते हैं। अगर कहा जाए कि 'ए' का विरोधी सही है, तो वे उसी सफाई से उस पर भी बहस करने बैठ जाएंगे।
हैप्पीनेस प्रोजेक्ट के शोध में सामने आया कि लोग सुबूतों पर जोर देते हैं और ये परिकल्पना, उसके बिल्कुल उलट है कि लोग जानकारियों के ऊपर रायशुमारी को प्राथमिकता देते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी से पूछें कि क्या वह कभी बाहर घूमने वाला व्यक्ति रहा है तो वह बैठकर उस समय की कल्पना करने लगेगा, जब वह मिलनसार हुआ करता था। अगर उसी व्यक्ति से पूछा जाए कि क्या वो शर्मीला था, तो वह उसके बारे में भी सोचने लगेगा।
आप अपनी जिंदगी में इस थ्योरी को लागू कर सकते हैं। जैसे जब ख्याल आए कि जीवनसाथी में बिल्कुल दिमाग नहीं है, तब दिमाग
भी उसके समर्थन में तर्क देने लगता है। आप बस करें इतना कि उसी समय उल्टा सोचना शुरू कर दें। जैसा मेरा जीवनसाथी बुद्धिमान है। तब दिमाग में इसके समर्थन में विचार आने लगेंगे। इससे आप वाकई में अपनी राय में बदलाव महसूस कर सकते हैं। ये थ्योरी बताती है कि कैसे खुशमिजाज लोग खुशनुमा माहौल में रहते हैं या उसे बना देते हैं।
हमें अक्सर लोगों से वैसी प्रतिक्रिया मिलती है, जो हमारे दिमाग में पहले से बनी उनकी छवि को और मजबूत करती है। लेकिन ऐसा क्यों है? अगर आप हर वक्त बुरा बताँव करेंगे तो मुमकिन है कि लोग आपकी मदद न करें, जिसका परिणाम ये होगा कि आपका रवैया और बुरा होता जाएगा। इसके उलट अगर आप माहौल खुशनुमा बनाएंगे तो लोग भी मदद करने को तैयार रहेंगे।
आपके आनंद की जिम्मेदारी लेने वाला कौन है? घट रहा है। इस तरह जब सब कुछ आपके
यदि आपको आनंदपूर्वक रहना है तो उसकी जिम्मेदारी लेने वाला कौन है? आपके पिता, अंदर ही घटित हो रहा है, केवल आपको पत्नि, संतान या मित्र ? आप जिन चीजों की कामना करते हैं, उन्हें पाने का मार्ग क्या है? इन बातों पर एक-एक करके विचार करें। है। पर्वत शिखर पर तैर रहे बादल चोटियों से टकरा रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में सूरज पीले रंग में भीग कर डूब रहा है। आप इस रमणीय दृश्य को देख रहे हैं। बताइए, दृश्य कहां है? उस पहाड़ पर ? आसमान में? इत्मीनान से घटित हो रहा है? आपकी आंखों के पर्दे पर है? आपके भीतर ही न ?
सद्गुरु, संस्थापक, शाम की सुरम्य वेला ईसा फाउंडेशन
इच्छा साकार होने से क्यों इनकार कर रही है। प्रसन्न रहने के लिए आप सौ-सौ शर्ते लगा रहे हैं। पत्नी ऐसी होनी चाहिए। मेरा बच्चा वैसा होना चाहिए। इस प्रकार की सैकड़ों शर्ते लगाते जाएंगे तो आपका आनंद किसी दूसरे के नियंत्रण में चला जाएगा। अगर आप आनंद में रहेंगे और प्रेमपूर्वक बरतेंगे तो अपने आसपास के लोगों को प्रसन्न रख सकेंगे। यदि आप दुख में, मायूसी में डूबे रहेंगे तो अपने इर्द-गिर्द रहने वालों की खुशियों को भी बिगाड़ देंगे।
ध्यान दीजिए, आपकी इच्छा दरअसल कहाँ अपनी जड़ जमाए हुए हैं?
आपने सोचा था, शादी हो जाए तो खुशी मिलेगी। शादी हुई। फिर ख्याल आया बच्चे सोचकर बताइए। इस दृश्य का अनुभव कहां होने पर ही जीवन पूर्ण होगा, खुशी उसी में है। खुशी से जीना है, यही लालसा तो आपको उसका बिंब गिरता है और दिमाग को सूचना सभी इच्छाओं के मूल में छिपी हुई है। आपने भेजता है। आपके अनुभव में अब पहाड़ कहां जो मांगा, वह तो मिल गया। लेकिन संतोष के बिना आगे.... और आगे... वो इच्छा एक से दूसरी चीज की ओर लपकती जा रही है। ऐस क्यों? गलती कहां हुई? क्या यह आपकी त्रुटि है या इच्छा को ?
आपका आत्मसम्मान आत्मछवि से तय होता है है
एक नजरिए से देखा जाए तो हमें 85 फीसदी आनंद दूसरे लोगों के साथ सुखद संबंधों से मिलता है। दुर्भाग्य से, 85% दुख भी दूसरे लोगों से ही मिलते हैं। ब्रायन ट्रेसी बेस्ट सेलिंग ऑथर लोक व्यवहार उत्कृष्ट बनना जरूरी है। अच्छी बात ये है कि यह योग्यता सीखी जा सकती है। शर्त सिर्फ इतनी है कि आपको भी वैसा ही व्यवहार करना होगा, जैसा दूसरे लोकप्रिय लोग करते हैं।
मनोवैज्ञानिक हमें बताते हैं कि हम जो भी कार्य करते हैं, वह या तो अपने आत्म-सम्मान को बढ़ाने के लिए करते हैं या दूसरों से इसकी रक्षा करने के लिए करते हैं। हर व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत महत्ता के एहसास के बारे में बहुत संवेदनशील होता है। आत्म- सम्मान का अर्थ यह है कि आप अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं, खुद को कितना पसंद करते हैं। आत्म-सम्मान काफी हद तक आपकी आत्म-छवि
से तय होता है। आपके आत्मसम्मान के तीन हिस्से हैं, जो एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं।
1. आत्म-छवि का पहला हिस्सा यह है कि आप खुद को कैसे देखते हैं। इससे काफी हद तक चलने, बोलने, व्यवहार करने व दूसरों के साथ करने का तरीका तय होता है।
2. आत्म छवि का दूसरा हिस्सा यह है कि आपके हिसाब से दूसरे लोग आपको किस तरह देखते हैं। यदि आप सोचते हैं कि दूसरे लोग आपको पसंद करते हैं, तो आप खुद को सकारात्मक अंदाज में देखते हैं।
3. आत्म-छवि का तीसरा हिस्सा यह है कि लोग वास्तव में आपको किस तरह देखते हैं और व्यवहार करते हैं। यदि आप स्वयं को आम आदमी मानते हैं और कुछ लोग आपसे मिलने पर ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे आप मूल्यवान और महत्वपूर्ण हों, तो इसका आपकी आत्म-छवि पर सकारात्मक प्रभाव होता है। आप खुद को पहले से ज्यादा यादा पसंद करने और महत्व देने लगते हैं।
चिंताजनक हालातों से बाहर निकलना आसान है!
अगर आप चिंता में डूबे रहेंगे, तो किसी भी काम में एकाग्रता हासिल नहीं कर पाएंगे। और एकाग्रता भंग होगी तो अंततः आपके जीवन में खुशी का अभाव रहेगा और तनाव व अवसाद बढ़ता जाएगा। सवाल है कि चिंता दूर करने किया जाए? इसे दूर करने की तीन अवस्थाएं हैं। पहला तो हर परिस्थिति का निर्भयता और ईमानदारी से विश्लेषण करना चाहिए और इस निर्णय पर पहुंचना चाहिए कि असफलता के कारण क्या अधिकतम अनिष्ट हो सकता है। दूसरा चरण है कि बुरे से बुरे का आकलन करने के बाद आप उसे आवश्यकतानुसार स्वीकार करने का दृष्टिकोण अपना सकते हैं। इसके फलस्वरूप एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण
परिवर्तन होगा और तुरंत ही कान और एक तरह की शांति का अहसास होगा। और तीसरी अवस्था में आप शांत भाव से उस संभावित अनिष्ट का हल निकालने में जुट जाएंगे।
इन मनोवैज्ञानिक विधियों का विश्लेषण करके आपको चिंता से निकलने का रास्ता मिलेगा। चिंता करने से सबसे ज्यादा निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। व्यावहारिक मनोविज्ञान के जन्मदाता प्रो. विलियम्स जेम्स का कथन था कि अपनी स्थिति को जैसी है वैसी ही स्वेच्छा से स्वीकार कर लो। स्वीकार करना दुर्भाग्य के किसी परिणाम पर विजय पाने का पहला कदम है। चीनी दार्शनिक लिन युटांग ने कहा था कि स्वीकार करने से मन को एक असीम शांति मिलती है। स्वीकारने के बाद खोने को कुछ नहीं रह जाता। इसके बाद निर्णय लेने की क्षमता भी बेहतर हो जाती है।
- वीवीएस लक्ष्मण, पूर्व क्रिकेटर
अपना कंफर्ट जोन तोड़कर बाहर आना उतना भी मुश्किल नहीं है
भारत में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार टेस्ट मैचों की श्रृंखला होने वाली थी। हम इससे पहले ऑस्ट्रेलिया की टीम से बुरी तरह हारे थे। जख्म हरे थे। हमारा चेन्नई में ट्रेनिंग कैंप था। गैरी कर्स्टन के साथ मेंटल हेल्थ कोच पैडी अपटन आए थे। कोच का ध्यान हम सबकी अपनी-अपनी भूमिकाएं तय करने की और था। स्किल्स निखारने पर बहुत ज्यादा जोर नहीं था। हमें पुराने ग्रुप से हटाकर अलग-अलग समूहों में बांट दिया गया। और अगले एक साल का विजन लिखने के लिए कहा गया। सवालों की एक सूची सौंपी गई। उनमें आम से प्रश्न थे कि आलोचना पर कैसे प्रतिक्रिया करेंगे। कोई प्रशंसा करेगा, तो कैसा महसूस होगा। क्या आप खेल के बीच आउट होने पर दबाव महसूस करते हैं।
जाहिर तौर पर ये प्रश्नोत्तर अहसास कराने के लिए थे कि हम खुद को मोटिवेट कर सकते हैं या नहीं? या किसी बाहरी प्रेरणा की जरूरत है... हममें से अधिकांश लोगों को बाहर से किसी पुशअप की जरूरत होती है। अगर कोई पीठ ठोक दें, तो हम अच्छा प्रदर्शन करते हैं। हमें सिखाया गया कि अंदर से मोटिवेशन कैसे हासिल किया जाए। कैंप में एक दिन हम आउटिंग के लिए रिजॉर्ट गए। वहाँ सभी खिलाड़ियों को तीन बैच में बांट दिया गया। हर टीम को 12 मिनट की एक असली फिल्म बनानी थी। वहां सबकुछ अपलब्ध
था- कैमरामैन, मेकअप आर्टिस्ट, तकनीकी लोग हमारे ग्रुप में राहुल, सहवाग, भज्जी, वेंकटेश प्रसाद और मुनाफ पटेल थे। एक प में सचिन, धोनी और दूसरे साथी थी। स्क्रिप्ट लिखने, शूट करने, एडिट करने के लिए तीन घंटे का वक्त था। हमने फिल्म बनाई- सिंग इज किंग सचिन की टीम ने शोले और एक टीम ने रॉक ऑन बनाई। आखिर में अवॉर्ड फंक्शन भी हुआ। एक दृष्टि से देखें तो ये फन था! लेकिन दरअसल यह हमें अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकालने और अपनी विचार प्रक्रिया बदलने की कवायद थी। आप जब कोई काम कर गुजरे, उसके बाद अहसास होता है कि कंफर्ट जोन से बाहर आना उतना कठिन नहीं था, जितना आप उसे मानकर चलते हैं।
अच्छे क्रिकेटर के साथ बेहतर इंसान बनने के लिए मैं हमेशा कोशिश करता रहता है। इस दिशा में जो भी प्रयास हो सके, करता हूँ। 1999 में मेरी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उस स्थिति से बाहर आने के लिए एनएलपी कार्यक्रम में हिस्सा लिया। काफी ज्यादा प्रेरक किताबें पढ़ी और अंततः उस स्थिति से बाहर आया। मैं हर खिलाड़ी को टोनी रॉबिन्सन की किताब 'अवेकन द जाइंट विदइन पढ़ने के लिए कहता हूं। चीजों को विजुलाइज करते देखता हूं। इससे मुझे ताकत मिलती है।
खुद से ईमानदार हैं तो शोहरत आपको धोखा नहीं देगी .
शांति के सूत्र
किसी चीज में शामिल हुए बिना सुधार नामुमकिन है
प्रबंधन का सिद्धांत अपनी जिम्मेदारियों और सौंपे गए कार्य पर ध्यान केंद्रित करने पर आधारित है, चाहे वे जो भी हों। आप अपने स्टीफन आर कवी कर्तव्य पर इस विख्यात लेखक तरह केंद्रित रहें कि उसका दायरा व्यापक हो जाए- अर्थात् आपसे जितनी आशा की जाती है उससे अधिक काम करें। उदाहरण के तौर पर, एक पति होने के नाते आप अपनी पत्नी के लिए एक उदार व समझदार साथी बनने, बच्चों के लिए आदर्श पिता बनने की जिम्मेदारी पर स्वयं को केंद्रित करें। किसी परिस्थिति को बेहतर बनाने के लिए पहले आपको बेहतर बनना होगा। सामने वाले का दृष्टिकोण बदलने के लिए आपको अपना दृष्किोण बदलना होगा। अधिक आजादी पाने के लिए आपको ज्यादा
जिम्मेदार और अनुशासित बनना होगा। बच्चों को आज्ञाकारी बनाने के लिए अभिभावकों के रूप में आपको कुछ नियमों सिद्धांतों का पालन करना होगा। टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने के लिए पहले हमें अपने हृदय में झांककर अपनी जिम्मेदारियों व गलतियों को खोजना होगा। एक ओर खड़े होकर दूसरों की कमजोरियों की तरफ इशारा करना आसान होता है। ऐसा करके हम सिर्फ अपने अहंकार की पूर्ति करते हैं और स्वयं को सही ठहराते हैं। हम हमारी भावनाएं नहीं हैं। हम हमारी मनोदशा नहीं हैं। हम हमारे विचार भी नहीं हैं... आत्म-बोध के द्वारा हम यह परीक्षण भी कर सकते हैं कि हम स्वय को कैसे 'देखते हैं किसी चीज में शामिल हुए बिना समर्पण की भावना नहीं आती है। इस बात को याद कर लें, इसे लिख लें, इस पर निशान लगा लें. इसके नीचे रेखा खींच लें शामिल नहीं होंगे तो समर्पण नहीं आएगा।
अपना विश्लेषण करना ही जीत का रास्ता है
विजय के मनोविज्ञान को प्रयोग करना सीखें। कुछ लोग सुझाते हैं, 'हार की बात कभी मत करो। सबसे पहले अपनी और उसके कारणों परमहंस योगानंद का विश् आध्यात्मिक गुरु करो, उस अनुभव से लाभ उठाओ, और फिर उसके सम्पूर्ण विचार को मन से निकाल दो। जो कोशिश करता रहता है, और अंतर में अपराजित है, वही अनेक बार हार कर भी विजयी है। संसार चाहे उसे असफल मान भी ले, परन्तु उसने अपने मन में यदि हार नहीं मानी है, तो आज नहीं तो कल वो लक्ष्य जरूर पा लेगा।
लाखों लोग कभी खुद का विश्लेषण नहीं करते। मानसिक रूप से वे अपने वातावरण की फैक्ट्री के मैकेनिकल प्रोडक्ट होते हैं, नाश्ता,
दोपहर का खाना, रात का खाना, काम करना और सोना, मनोरंजन के लिए इधर-उधर जाना, बस इन्ही चीजों में उलझे हुए होते हैं। वे नहीं जानते कि ये क्या और क्यों तलाश रहे हैं, न ये जानते हैं कि क्यों उन्हें कभी पूर्ण प्रसन्नता और स्थायी संतुष्टि का एहसास नहीं होता। आत्म-विश्लेषण से बचकर, लोग वातावरण के मुताबिक रोबोट बने रहते हैं। सच्चा आत्म-विश्लेषण प्रगति की सबसे बड़ी कला है।
आपकी अंतरात्मा ही आपका न्यायाधीश होती है। अपने विचारों की पंच बनने दें और स्वयं प्रतिवादी बनें। प्रतिदिन अपने आप की यह परीक्षा लें और आप देखेंगे कि जितनी बार आप अपनी अंतरात्मा से दंडित होते हैं, जितनी बार स्वयं को अच्छा बनने की, अपने दिव्य स्वरूप के अनुसार व्यवहार करने की आज्ञा देते हैं और उसका पाल करते हैं। उतनी ही बार आप विजयी होते हैं। विजय का मार्ग कैसे
पाएँ किताब से साभार
किताबें पढ़ने का लाभ तभी है, जब उनका सार समझा जाए
एक अनंत जल स्रोत की कल्पना करिए। उसमें हर जगह पानी है। इस पानी में पानी में भरा हुआ एक बर्तन रख दें। अब बर्तन के अंदर पानी है और बाहर भी पानी है। बर्तन की वजह से लगता है पानी दो भागों में बंट गया है। इंसान बर्तन की महान संत व विचारक वजह से एक अंदर और बाहर का अनुभव करने लगते हैं। इंसान के अंदर जब तक 'मैं का भाव रहेगा, ऐसा ही अनुभव होता रहेगा, जब 'मैं गायब हो जाता है तो पानी एक महसूस होने लगता है। ये बर्तन ही में या अहम
रामकृष्ण परमहंस
किताबें या ग्रंथ पढ़ना कई बार लाभ से ज्यादा नुकसान करते हैं। जरूरी बात है उनके सार को जानना, समझना। उसके बाद फिर किताबों की जरूरत नहीं रह जाती है। ये जरूरी है कि ग्रंथों का सार समझकर में
या अहम मिट जाए। उन्हें सिर्फ दिखाने के लिए यांचना हितकर नहीं होता। उनके गर्म को समझना बेहद जरूरी है।
जब तक मधुमक्खी फूल की पंड़ियों से बाहर है और उसने पराग के मोठेपन को नहीं चखा है, वो फूल के चारों ओर करती हुई मंडराती रहती। के अंदर आ जाती है, तो शांत बैठकर पराम पीने का आनंद लेती है। इसी प्रकार जब तक इंसान मत और सिद्धांतों को लेकर बहस और झगड़ा करता रहता है, उसने सच्चे विश्वास के अमृत को नहीं चखा है। जब उसे ईश्वरीय आनंद अमृत का स्वाद मिल जाता है, वो चुप और शांति से भरपूर हो जाता है।
कम्पस की चुंबकीय सुई हमेशा उत्तर दिशा की ओर इशारा करती है और इसकी वजह से, पानी का जहाज आगे बढ़ते हुए अपनी दिशा से नहीं भटकता। इसी प्रकार जब तक व्यक्ति का हृदय ईश्वर में लगा रहता है, जो सामारिक माया के समुद्र में भटकने से बच
( कभी भी किसी को भी Criticize ना करे )
लेखक लिखते है कि मानो आज के वक्त हर कोई तैयार बैठा है किसी ना किसी को Criticize करने के लिए कयोंकि शायद हमारी एक - दूसरे को Criticize करने कि आदत सी बन गई है पर यह हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकती है अगर आप मे यह आदत है तो आप लोगो को उनके हमेशा उनके दुश्मन कि तरहा नजर आने लगते हो ।
लेखक कहते है कि सफल लोग कभी भी किसी को Criticize नही करते है और यदि उनको किसी को Criticize करना भी पडे तो वह इसके लिए सेन्डविच मैथड का उपयोग करते है ।
इस नियम में आप सैंडविच कि तरह लोगो को Criticize करें , जिस प्रकार सैंडविच में ऊपर और नीचे कि तरफ़ Bread लगी होती है और बीच में cheese लगी होती है उसी तरह आप भी जब किसी कि आलोचना करें तो ऊपर नीचे प्रशंसा कि Bread लगा लें और बीच में आलोचना की cheese लगा दे ताकि सामने वाले को बूरा भी ना लगे और वह आप कि बात को भी समझ सके ।