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Krishna Bhajan

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जिस सुख की चाहत में तू, दर दर को भटकता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है, जिस सुख की चाहत में तु, दर दर को भटकता है अनमोल है हरपल, तेरी जिंदगानी का, कब अंत हो जाए, तेरी कहानी का, जिस पावन गंगाजल से, जीवन ये सुधरता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है, जिस सुख की चाहत में तु, दर दर को भटकता है।।जैसे भरा पानी, सागर में खारा है, वैसे भरा दुःख से, जीवन हमारा है, जिस अमृत को पिने को, संसार तरसता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है, जिस सुख की चाहत में तु, दर दर को भटकता है।।ना कर भरोसा तू, ‘सोनू’ दीवाने पर, तू देख ले जाकर, इसके ठिकाने पर, वो सावन जो धरती की, तक़दीर बदलता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है जिस सुख की चाहत में तू, दर दर को भटकता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है, जिस सुख की चाहत में तु, दर दर को भटकता है।।
Ankit batra has sung this song so beautifully listen to it.
This is another master piece by Ankit Batra
Om namo bhavate vasudevay vasudevay hari vasudevay
A beautiful Narayan chanting bhajan
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम। अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम॥ पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥जय यदुनंदन जय जगवंदन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥जय नट-नागर, नाग नथइया ।कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥वंशी मधुर अधर धरि टेरौ।होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥राजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥कुंडल श्रवण, पीत पट आछे।कटि किंकिणी काछनी काछे॥नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥करि पय पान, पूतनहि तार्यो।अका बका कागासुर मार्यो॥मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला।भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई।मूसर धार वारि वर्षाई॥लगत लगत व्रज चहन बहायो।गोवर्धन नख धारि बचायो॥लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥कोटि कमल जब फूल मंगायो॥नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥करि गोपिन संग रास विलासा।सबकी पूरण करी अभिलाषा॥केतिक महा असुर संहार्यो।कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी॥दै भीमहिं तृण चीर सहारा।जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥असुर बकासुर आदिक मार्यो।भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥दीन सुदामा के दुख टार्यो।तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥प्रेम के साग विदुर घर मांगे।दुर्योधन के मेवा त्यागे॥लखी प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥भारत के पारथ रथ हांके।लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥निज गीता के ज्ञान सुनाए।भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥राना भेजा सांप पिटारी।शालीग्राम बने बनवारी॥निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥तब शत निन्दा करि तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥तुरतहि वसन बने नंदलाला।बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥अस अनाथ के नाथ कन्हइया।डूबत भंवर बचावइ नइया॥'सुन्दरदास' आस उर धारी।दया दृष्टि कीजै बनवारी॥नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
Nahi chale unke ghar rishwat nahi chale chalaki.....
siya ram jay ram jay jay ram
साधो ये मुरदों का गांवपीर मरे पैगम्बर मरिहैंमरि हैं जिन्दा जोगीराजा मरिहैं परजा मरिहैमरिहैं बैद और रोगीचंदा मरिहै सूरज मरिहैमरिहैं धरणि आकासाचौदां भुवन के चौधरी मरिहैंइन्हूं की का आसानौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैंमरि हैं सहज अठ्ठासीतैंतीस कोट देवता मरि हैंबड़ी काल की बाजीनाम अनाम अनंत रहत हैदूजा तत्व न होइकहत कबीर सुनो भाई साधोभटक मरो ना कोई
मैं तो उन संतन का दास जिन्होंने मन मार लियामन मारा तन बस करा रे हुवा भरम सब दूरबाहर तो कछु दीखत नाहीं अन्दर चमके नूरकाम क्रोध मद लोभ मार के मिटी जगत की आसबलिहारी उन संत की रे प्रकट करा है प्रकासआपो त्याग जगत में बैठे नहीं किसी से कामउनमें तो कछु अंतर नाही संत कहो चाहे रामनरसीजी के सतगरू स्वामी दिया अमीरस पायएक बूंद सागर में मिल गयी क्या तो करेगा जमराज
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंताशरण में रख दिया जब माथ तो किस बात की चिंताशरण में रख दिया जब माथा तो किस बात की चिंताकिया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंताकिया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंताकिया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंताकिया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंतातेरे स्वामी,तेरे स्वामी को रहती है, तेरे हर बात की चिंतातेरे स्वामी को रहती है, तेरे हर बात की चिंताहमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंताहमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंतान खाने की, न पीने की, न मरने की, न जीने कीन खाने की, न पीने की, न मरने की, न जीने कीन खाने की, न पीने की, न मरने की, न जीने कीरहे हर स्वासरहे हर स्वास में भगवान के प्रिय नाम की चिंतारहे हर स्वास में भगवान के प्रिय नाम की चिंताहमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंताहमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंताविभीषण को अभय वर दे किया लंकेश पल भर मेंविभीषण को अभय वर दे किया लंकेश पल भर मेंविभीषण को अभय वर दे किया लंकेश पल भर मेंउन्ही का हा, उन्ही का हाउन्ही का हा कर रहे गुण गान तो किस बात की चिंताउन्ही का हा कर रहे गुण गान तो किस बात की चिंताहमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंताहमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंताहुई भक्त पर किरपा बनाया दास प्रभु अपनाहुई भक्त पर किरपा बनाया दास प्रभु अपनाहुई भक्त पर किरपा बनाया दास प्रभु अपनाउन्ही के हाथ,उन्ही के हाथ में अब हाथ तो किस बात की चिंताउन्ही के हाथ में अब हाथ तो किस बात की चिंताहमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंताहमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंताशरण में रख दिया जब माथ तो किस बात की चिंताशरण में रख दिया जब माथ तो किस बात की चिंताकिस बात की चिंता, अरे किस बात की चिंता
do din ki zindagi hai, do din ka mela
mat kar maya ko ahankaar
नजर भर देख ले मुझको शरण में तेरी आया हूं कोई माता पिता बंधु सहायक है नहीं मेरा काम और क्रोध दुश्मन से बहुत दिन से सताया हूं भुलाकर याद को तेरी पड़ा दुनिया के लालच में माया के जाल में चारों तरफ से मैं फंसाया हूं कर्म सब नीचे हैं मेरे तुम्हारा नाम है पावन तार संसार सागर से गहन जल में डुबाया हूं छुड़ाकर जन्म बंधन से चरण में राख ले अपनेवो ब्रह्मानंद में मन में यही आशा लगाया हूं
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