Pratidin Ek Kavita

Pratidin Ek Kavita

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

Ramdas | Raghuvir Sahay

रामदास | रघुवीर सहायचौड़ी सड़क गली पतली थीदिन का समय घनी बदली थीरामदास उस दिन उदास थाअंत समय आ गया पास थाउसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगीधीरे-धीरे चला अकेलेसोचा साथ किसी को ले लेफिर रह गया, सड़क पर सब थेसभी मौन थे सभी निहत्थेसभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगीखड़ा हुआ वह बीच सड़क परदोनों हाथ पेट पर रखकरसधे कदम रख करके आयेलोग सिमटकर आँख गड़ायेलगे देखने उसको जिसकी तय था हत्या होगीनिकल गली से तब हत्याराआया उसने नाम पुकाराहाथ तौलकर चाकू  माराछूटा लोहू का फ़व्वाराकहा नहीं था उसने आख़िर उसकी हत्या होगीभीड़ ठेलकर लौट गया वहमरा पड़ा है रामदास यहदेखो देखो बार-बार कहलोग निडर उस जगह खड़े रहलगे बुलाने उन्हें जिन्हें संशय था हत्या होगी

03-25
02:36

Dopahar Ki Kahaniyon Ke Mama | Rajesh Joshi

दोपहर की कहानियों के मामा | राजेश जोशी हम उन नटखट बच्चियों के मामा थेजो अकसर दोपहर में अपनी नानियों से कहानी सुनने की ज़िद करती थीहम हमेशा ही घर लौटने के रास्ते भूल जाते थेघर के एकदम पास पहुँचकर मुड़ जाते थेकिसी अपरिचित गली मेंअकेले होने से हमें डर लगता थाऔर लोगों के बीच अचानक ही हम अकेले हो जाते थेअर्जियों के साथ हमारा जो जीवन चरित नत्थी थाउसमें हमारे अनुभवों के लिए कोई जगह नहीं थीउसमें चाय की दुकानों और सिगरेट की गुमटियों केहमारे उधार खातों का जिक्र नहीं थाउसमें हमारे रतजगों और आवारगी का कोई किस्सा नहीं थाकई पेड़ों, खंडहरों और चट्टानों पर लिख आए थे हम अपने नामप्रेमिकाओं को अकसर हम जीवन से जाते हुए देखते थेमोची हमारी चप्पलों को देखकर पहले मुस्कुराते थेफिर नए थेगले लगाने से इनकार कर देते थेहम अपनी खाली जेबों में डाले रहते थे अपने खाली हाथएक खालीपन को दूसरे खालीपन से भरते हुएहमें लेकिन एक हुनर में महारत हासिल थीहम बहुत सफाई से अपनी हँंसी में अपने आँसू छिपा लेते थे।

03-24
02:50

Nadi Ka Smarak | Kedarnath Singh

 नदी का स्मारक | केदारनाथ सिंहअब वह सूखी नदी काएक सूखा स्मारक है।काठ का एक जर्जर पुराना ढाँचाजिसे अब भी वहाँ लोगकहते हैं 'नाव'जानता हूँ लोगों पर उसकेढेरों उपकार हैंपर जानता यह भी हूँ कि उस ढाँचे नेबरसों से पड़े-पड़ेखो दी है अपनी ज़रूरतइसलिए सोचाअबकी जाऊँगा तो कहूँगा उनसे-भाई लोगों, काहे का मोहआख़िर काठ का पुराना ढाँचा ही तो हैसामने पड़ा एक ईंधन का ढेर-जिसका इतना टोटा है!वैसे भी दुनियानाव से बहुत आगे निकल गई हैइसलिए चीर-फाड़करउसे झोंक दो चूल्हे मेंयदि नहींतो फिर एक तखत या स्टूल ही बना डालो उसकाइस तरह मृत नाव कोमिल जाएगा फिर से एक नया जीवनपर पूरे जतन सेउन शब्दों को सहेजकरजब पहुँचा उनके पासउन आँखों के आगे भूल गया वह सबजो गया था सोचकर'दुनिया नाव से आगे निकल गई है'-यह कहने का साहसहो गया तार-तारवे आँखेंइस तरह खली थींमानो कहती हों-काठ का एक जर्जर ढाँचा ही सहीपर रहने दो 'नाव' कोअगर वह वहाँ है तो एक न एक दिनलौट आएगी नदीजानता हूँवह लौटकर नहीं आएगीआएगी तो वह एक और नदी होगीजो मुड़ जाएगी कहीं औरसो, चलने से पहलेमैंने उस जर्जर ढाँचे कोसिर झुकाया और जैसे कोई यात्री पार उतरकरजाता है घरचुपचाप लौट आया।

03-23
03:16

Utra Jwaar | Doodhnath Singh

उतरा ज्वार | दूधनाथ सिंहउतरा ज्वार जलमैला लहरेंगयीं क्षितिज के पार काला सागरअन्धी आँखें फाड़ताक रहा हैगहन नीलिमा बुझे हुए तारेकचपच-कचपचढूँढ़ रहे हैंठौर मैं हूँ मैं हूँयह दृश् ।खोज रहा हूँबंकिम चाँदक्षितिज किनारेमन मेंजो अदृश्य है ।

03-22
01:37

Abhaya | Ashwini

अभया | अश्विनी पुरवा सुहानी नहीं, डरावनी है इस बार,चपला सी दिल दहलाती आती चीत्कार।वर्षा नहीं, रक्त बरसा है इस बार,पक्षी उड़ गए पेड़ों से, रिक्त है हर डार। किसे सुनाती हो दुख अपना, सभी बहरे हैं, नहीं समझेगा कोई, घाव तुम्हारे कितने गहरे हैं। पहने मुखौटे घूमते, घिनौने वही सब चेहरे हैं, अपराधी सत्ता के गलियारों में ही तो ठहरे हैं। रक्षक बने भक्षक, छाई चारों ओर निराशा,धन के हाथों बिके हैं सब, किससे करतीं आशा। याचना नहीं अब रण के लिए तत्पर हो जाओ, महिषासुर मर्दिनी बन, अपना रौद्र रूप दिखलाओ।

03-21
01:57

Maun Hi Mukhar Hai | Vishnu Prabhakar

मौन ही मुखर है | विष्णु प्रभाकरकितनी सुन्दर थीवह नन्हीं-सी चिड़ियाकितनी मादकता थीकण्ठ में उसकेजो लाँघ कर सीमाएँ सारीकर देती थी आप्लावितविस्तार को विराट केकहते हैंवह मौन हो गई है-पर उसका संगीत तोऔर भी कर रहा है गुंजरित-तन-मन कोदिगदिगन्त कोइसीलिए कहा हैमहाजनों ने किमौन ही मुखर है,कि वामन ही विराट है ।

03-20
01:34

Ve Log | Lakshmi Shankar Vajpeyi

वे लोग | लक्ष्मी शंकर वाजपेयीवे लोगडिबिया में भरकर पिसी हुई चीनीतलाशते थे चींटियों के ठिकानेछतों पर बिखेरते थे बाजरा के दानेकि आकर चुगें चिड़ियाँवे घर के बाहर बनवाते थेपानी की हौदीकि आते जाते प्यासे जानवरपी सकें पानीभोजन प्रारंभ करने से पूर्ववे निकालते थे गाय तथा अन्य प्राणियों का हिस्सासूर्यास्त के बाद, वे नहीं तोड़ने देते थेपेड़ से एक पत्तीकि ख़लल न पड़ जाएसोये हुए पेड़ों की नींद मेंवे अपनी तरफ़ से शुरु कर देते थे बातअजनबी से पूछ लेते थे उसका परिचयज़रूरतमंदों की करते थेदिल खोल कर मददकोई पूछे किसी का मकानतो ख़ुद छोड़ कर आते थे उस मकान तककोई भूला भटका अनजान मुसाफ़िरआ जाए रात बिराततो करते थे भोजन और विश्राम की व्यवस्थासंभव है, अभी भी दूरदराज़ किसी गाँव या क़स्बे मेंबचे हों उनकी प्रजाति के कुछ लोगकाश ऐसे लोगों काबनवाया जा सकता एक म्युज़ियमताकि आने वाली पीढ़ियों के लोगजान सकतेकि जीने का एक अंदाज़ ये भी था।

03-19
02:22

Jhoot Ki Nadi | Vijay Bahadur Singh

झूठ की नदी | विजय बहादुर सिंहझूठ की नदी मेंडगमग हैं सच के पाँवचेहरे पीले पड़ते जा रहे हैंमुसाफ़िरों केमुस्कुरा रहे हैं खेवैयेमार रहे हैं डींगभरोसा है उन्हें फिर भीसम्हल जाएगी नावमुसाफ़िर बच जाएँगेंभँवर थम जाएगी

03-18
01:25

Hone Lagi Hai Jism Mein Jumbish To Dekhiye | Dushyant Kumar

होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए |  दुष्यंत कुमार होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिएइस परकटे परिन्दे की कोशिश तो देखिए।गूंगे निकल पड़े हैं, ज़ुबाँ की तलाश में,सरकार के खिलाफ़ ये साज़िश तो देखिए।बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन,सूखा मचा रही ये बारिश तो देखिए।उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें,चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिए ।जिसने नज़र उठाई वही शख्स गुम हुआ,इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिए।

03-17
01:57

Nazar Jhuk Gayi Aur Kya Chahiye | Firaaq Gorakhpuri

नज़र झुक गई और क्या चाहिए | फ़िराक़ गोरखपुरीनज़र झुक गई और क्या चाहिएअब ऐ ज़िंदगी और क्या चाहिएनिगाह -ए -करम की तवज्जो तो हैवो कम कम सही और क्या चाहिएदिलों को कई बार छू तो गईमेरी शायरी और क्या चाहिएजो मिल जाए दुनिया -ए -बेगाना मेंतेरी दोस्ती और क्या चाहिएमिली मौत से ज़िंदगी फिर भी तोन की ख़ुदकुशी और क्या चाहिएजहाँ सौ मसाइब थे ऐ ज़िंदगी मोहब्बत भी की और क्या चाहिएगुमाँ जिसपे है ज़िंदगी का 'फ़िराक़'वही मौत भी और क्या चाहिए

03-16
02:01

Capitalism | Gaurav Tiwari

कैपिटलिज़्म | गौरव तिवारी बाग में अक्सर नहीं तोड़े जाते गुलाबलोग या तो पसंद करते हैं उसकी ख़ुशबूया फिर डरते हैं उसमें लगे काँटों सेजो तोड़ने पर कर सकते हैंउन्हें ज़ख्मीवहीं दूसरी तरफ़ घासकुचली जाती है, रगड़ी जाती है,कर दी जाती है अपनी जड़ों से अलगसहती हैं अनेक प्रकार की प्रताड़नाएंफिर भी रहती हैं बाग में,क्योंकि बाग भी नहीं होता बागघास के बगैर माली भी रखता हैथोड़ा-बहुत ध्यानघास का,ताकि बढ़ सके गुलाब की सुंदरता कुछ औरयदि घास भीपैदा नहीं करेंगी ख़ुशबूया नहीं बनेंगी कँटीलीवे होती रहेंगी शोषितऔर गुलाब बना रहेगा कैपिटलिस्ट।

03-15
02:26

Hajamat | Anup Sethi

हजामत | अनूप सेठी  सैलून की कुर्सी पर बैठे हुएकान के पीछे उस्तरा चला तो सिहरन हुईआइने में देखा बाबा नेसाठ-पैंसठ साल पहले भीकान के पीछे गुदगुदी हुई थीपिता ने कंधे से थाम लिया थाआइने में देखा बाबा नेपीछे बैंच पर अधेड़ बेटा पत्रिकाएँ पलटता हुआ बैठा हैचालीस साल पहले यह भी उस्तरे की सरसराहट से बिदका थाबाबा ने देखा आइने मेंइकतालीस साल पहले जब पत्नी को पहली बारब्याह के बाद गाँव में घास की गड्डी उठाकर लाते देखा थाहरी कोमल झालर मुँह को छूकर गुज़री थीजैसे नाई ने पानी का फुहारा छोड़ा हो अचानकतीस साल पहले जब बेटी विदा हुई थीउसने कूक मारी थी ज़ोर  से आँखें भर आईं थींऔर नाई ने पौंछ दीं रौंएदार तौलिए सेपाँच साल पहले पत्नी की देह को आग दीआँखें सूखी रहीं, गर्दन भीग गई थीजैसे बालों के टुकड़े चिपके हुए चुभने लगते हैंबाबा के हाथ नहीं पँहुचे गर्दन तक आँखों पर या कान के पीछेबेटा पत्रिका में खोया हुआ हैआइने में दुगनी दूर दिखता हैनाई कम्बख़्त देर बहुत लगाता हैहड़बड़ा कर आख़िरी बार आइने को देखा बाबा नेउठते हुए सीढ़ी से उतरते वक़्त बेटे ने कंधे को हौले से थामाबाबा ने खुली हवा में साँस लीआसमान ज़रा धुंधला थाआइने बड़ा भरमाते हैंउस्तरा भी कहाँ से कहाँ चला जाता हैसाठ पैंसठ साल से हर बार बाबा सोचते हैंइस बार दिल जकड़ के जाऊंगा नाई के पासपाँच के हों या पिचहत्तर बरस के बाबाबड़ा दुष्कर है हजामत बनवाना

03-14
03:06

Ek Chota Sa Anurodh | Kedarnath Singh

एक छोटा सा अनुरोध | केदारनाथ सिंहआज की शामजो बाज़ार जा रहे हैंउनसे मेरा अनुरोध हैएक छोटा-सा अनुरोधक्यों न ऐसा हो कि आज शामहम अपने थैले और डोलचियाँरख दें एक तरफ़और सीधे धान की मंजरियों तक चलेंचावल ज़रूरी हैज़रूरी है आटा दाल नमक पुदीनापर क्यों न ऐसा हो कि आज शामहम सीधे वहीं पहुँचेंएकदम वहींजहाँ चावलदाना बनने से पहलेसुगन्ध की पीड़ा से छटपटा रहा होउचित यही होगाकि हम शुरू में हीआमने-सामनेबिना दुभाषिये केसीधे उस सुगन्ध सेबातचीत करेंयह रक्त के लिए अच्छा हैअच्छा है भूख के लिएनींद के लिएकैसा रहेबाज़ार न आए बीच मेंऔर हम एक बारचुपके से मिल आएँ चावल सेमिल आएँ नमक सेपुदीने सेकैसा रहेएक बार... सिर्फ़ एक बार...

03-13
02:04

Jal | Ashok Vajpeyi

 जल | अशोक वाजपेयीजलखोजता हैजल मेंहरियाली का उद्गमकुछ नीली स्मृतियाँ और मटमैले चिद्मजलभागता हैजल की गली मेंगाते हुएलय काविलय का उच्छल गानजल देता हैजल को आवाज़,जल सुनता हैजल की कथा,जल उठाता हैअंजलि मेंजल को,जल करता हैजल में डूबकरउबरने की प्रार्थनाजल में हीथरथराती हैजल की कामना।

03-12
01:45

Aman Ka Naya Silsila Chahta Hun | Lakshmi Shankar Vajpeyi

अमन का नया सिलसिला चाहता हूँ | लक्ष्मीशंकर वाजपेयीअमन का नया सिलसिला चाहता हूँजो सबका हो ऐसा ख़ुदा चाहता हूँ।जो बीमार माहौल को ताज़गी देवतन के लिए वो हवा चाहता हूँ।कहा उसने धत इस निराली अदा सेमैं दोहराना फिर वो ख़ता चाहता हूँ।तू सचमुच ख़ुदा है तो फिर क्या बतानातुझे सब पता है मैं क्या चाहता हूँ।मुझे ग़म ही बांटे मुक़द्दर ने लेकिनमैं सबको ख़ुशी बांटना चाहता हूँ।बहुत हो चुका छुप के डर डर के जीनासितमगर से अब सामना चाहता हूँ।किसी को भंवर में न ले जाने पाएमैं दरिया का रुख़ मोड़ना चाहता हूँ।

03-11
02:21

Sapne | Shivam Chaubey

सपने | शिवम चौबे रिक्शे वाले सवारियों के सपने देखते हैंसवारियाँ गंतव्य केदुकानदार के सपने में ग्राहक ही आएं ये ज़रूरी नहींमॉल भी आ सकते हैंछोटे व्यापारी पूंजीपतियों के सपने देखते हैं।पूंजीपति प्रधानमंत्री के सपने देखता हैप्रधानमंत्री के सपने में सम्भव है जनता न आयेआम आदमी अच्छे दिन के स्वप्न देखता है।पिता देखते हैं अपना घर होने का सपनामाँ के सपने में आती है अच्छी नींदहर व्यक्ति अपनी जगह से आगे बढ़कर देखता है।मल्लाह नदियों के सपने देखते हैं।नदियों के स्वप्न में मछलियां नहीं समुद्र आता हैपौधों के सपने में पेड़पेड़ों को शायद ही आते हों पलंग और कुर्सी के स्वप्नकैदी देखते हैं आज़ादी के सपनेचिड़ियों के सपने में होता है आसमानसपने आने और सपने देखने में फ़र्क होता हैआये हुए सपने डर के सपने होते हैं।देखे गए सपने सुंदर इच्छाओं केमैंने देखा था तुम्हारे साथ जीवन का सपनामेरे सपने में आते हैं तुम्हारे छूटे हुए हाथ बच्चों को आते हैं सबसे सुंदर सपनेबूढ़ों के सपनों में घटता है जीवनक्रांतिकारी देखते हैं संघर्ष और प्रेम के स्वप्नकवि के सपने में सम्पादक और पुरस्कार ही आएं ऐसा कहाँ लिखाउनको दुनिया भर के सपने आते होंगेबीते हुए कल और आने वाले कल के सपनेजैसे नदी की सीमा में पानी होता हैनींद की सीमा में होते हैं सपनेसूख जाती है जिनकी नदीउनको कहाँ ही आते हैं सपने।

03-10
03:24

Main Unka Hi Hota | Muktibodh

मैं उनका ही होता|  गजानन माधव मुक्तिबोधमैं उनका ही होता, जिनसेमैंने रूप-भाव पाए हैं।वे मेरे ही लिए बँधे हैंजो मर्यादाएँ लाए हैं।मेरे शब्द, भाव उनके हैं,मेरे पैर और पथ मेरा,मेरा अंत और अथ मेरा,ऐसे किंतु चाव उनके हैं।मैं ऊँचा होता चलता हूँउनके ओछेपन से गिर-गिर,उनके छिछलेपन से खुद-खुद,मैं गहरा होता चलता हूँ।

03-09
01:44

Prem Gatha | Ajay Kumar

प्रेम गाथा | अजय कुमारप्रेमएक कमरे कोकैनवास में तब्दील कर केउसमें आँक सकता हैएक बादलजंगल में नाचता हुआ मोरएक गिरती हुई बारिशदेवदार का एक पेड़एक सितारों भरी रेशमी रातएक अलसाई गुनगुनाती सुबहसमुंदर की लहरों कोमदमदाता शोरप्रेम एक गलती कोदे सकता है पद्म विभूषणएक झूठ कोसहेज कर रख सकता है आजीवनएक पराजय कासहला सकता है माथाऔर हर प्रतीक्षा काकर सकता है आलिंगनपर प्रेम की नदी मेंअपमानों से बन सकतें है भंवरउपेक्षाओं से पड़ सकती हैंअदृश्य गांठेंतिरस्कारों से बेसुरा हो सकता हैउसके भीतर बजताराग यमन कल्याणकोई भी प्रेमबस अपनी अवेहलना नहीं भूलतासिर्फ़ भूलने काएक अभिनय कर सकता हैजिसका कभी भी हो सकता हैआकस्मिक पटाक्षेपआप यह याद रखिए

03-08
02:06

Chanderi | Kumar Ambuj

चँदेरी | कुमार अम्बुजचंदेरी मेरे शहर से बहुत दूर नहीं है मुझे दूर जाकर पता चलता है बहुत माँग है चंदेरी की साड़ियों की चँदेरी मेरे शहर से इतनी क़रीब है कि रात में कई बार मुझे सुनाई देती है करघों की आवाज़ जब कोहरा नहीं होता सुबह-सुबह दिखाई देते हैं चँदेरी के किले के कंगूरे चँदेरी की दूरी बस इतनी है जितनी धागों से कारीगरों की दूरीमेरे शहर और चँदेरी के बीच बिछी हुई है साड़ियों की कारीगरी इस तरफ़ से साड़ी का छोर खींचो तो दूसरी तरफ़ हिलती हैं चँदेरी की गलियाँगलियों की धूल से साड़ी को बचाता हुआ कारीगर सेठ के आगे रखता है अपना हुनर मैं कई रातों से परेशान हूँ चँदेरी के सपने में दिखाई देते हैं मुझे धागों पर लटके हुए कारीगरों के सिरचँदेरी की साड़ियों की दूर-दूर तक माँग है मुझे दूर जाकर पता चलता है।

03-07
02:15

Wo To Khusbu Hai Hawaon Mein Bikhar Jayega | Parveen Shakir

वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा | परवीन शाकिरवो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगामसअला फूल का है फूल किधर जाएगाहम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगाक्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगावो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता हैएक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगावो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिएमौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगाआख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगीतेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगामुझ को तहज़ीब के बर्ज़ख़ का बनाया वारिसजुर्म ये भी मिरे अज्दाद के सर जाएगा

03-06
02:05

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