Yatra

This podcast has some good content, some well written poetry and stories. Here I'm reciting some old stuf I've written so far.

घर (Ghar)

सवाल तो कई हैं पर अब घर तो घर है, जरूरतों को पूरा करने का घर, तन का घर-मन का घर, मेरा घर, उसका घर, छत वाला घर, खपरैलों में छुपा घर या फिर एक अपना घर यानि इश्क़। पर इस घर में हम जी तो सकते हैं, मर नहीं सकते। हमें मरने के लिए भी तो घर चाहिए...

04-09
02:52

विंटेज (Vintage)

________________________ पुराने वृक्षों की खाल की रन्ध्रों में उग आते हैं छोटे-बड़े छातेनुमा पीले, मटमैले मशरूम मेरी पुरानी स्मृतियों में जिस तरह तुम्हारा उग आना होता है मटमैली, पीली, धुँधली सी हो कर किसी विंटेज खिड़की से थोड़ी सुन्दर  लेकिन छू लेने महसूसने पकड़ने से बहुत दूर क्षणिकाओं की तरह।। ________________________ तारीख- २०-०१-२०२४ दो० १२:३६ बजे ________________________

01-20
01:01

Haan Tum Bilkul Waisi ho- Intezaarnama

Khayal hi nahi, ishq bhi hai intezaarnama.

01-06
01:48

माँ और परछाई (Maa aur Parchhayi)

एक अहसास कि माँ अभी मेरी हथेली पर अपना हाथ मल कर गईं और छोड़ गईं खुद को शीशे में, मुझ में...

02-28
01:28

जाना- इन्तज़ारनामा 2 (Jaana- Intzarnama 2)

इतिहास में इंतजार की कोई जगह नहीं होती। इन्तज़ारनामा 2, ऑडियो- Santoor Flute Raag Jhinihoti by Pt. Shri Shiv kumar sharma, Pt. Shri Hariprasad chaurasiya.

02-26
02:48

अव्यवस्थित ढंग (Avyavasthit Dhang)

मेरा तुम्हारे लिए अव्यवस्थित ढंग से किया गया प्रेम हमेशा सबसे सुंदर रहा।। Poem by - Ankit

02-24
00:52

फूल सी कविता (Phool si Kavita)

बहुत दिनों से फूल धरे हैं घर में टेबल की छत्ती पर मुरझाए से सिकुड़े सारे जैसे मेरा मन मुरझाया, मेरे मन के मुरझाने पर तुम तो पानी दे आँखों का कर देती हो ताजा सब कुछ, फूलों को बोलो क्या दूँ मैं ? कैसे ताजा करूँ कहो अब कैसे उनको यह बतलाऊँ, मेरी आँखों के देखे से नज़र लगी तो मुरझाता सब,

02-22
01:38

इन्तज़ारनामा - चिट्ठी (Chitthi)

चिट्ठी खतम हो गयी थी। प्रेमनुराग आँखों से जलप्रपात की तरह तरल हो निकला था। तभी विविध भारती में घर के बाहर से जाती कार में सुनाई दिया। बाबूजी धीरे चलना, प्यार में ज़रा सम्भलना, बड़े धोखे हैं इस राह में...!! Music by @Anupamroy Piku movie.

02-11
04:26

अब और नहीं होता (Ab aur nahi hota)

हम कई बार जी लेना चाहते हैं, कविताओं में, वक़्तों के हिस्सों में, उसी जगह से एक कविता.-- मेरी सारी कविताओं में सिमट जाते हैं हम दोनों- खिलखिलाकर गले लगते हैं कहते हैं दो-चार बातें और हो जाते हैं अपने आप में मशरूफ़- किसी दिन ऐसा असल में हो तो मैं छोड़ दूँ कविताएं लिखना और मशरूफ़ हो जाऊँ तुममें- यूँ कविताओं में सिमटे रहना अब और नहीं होता।। Audio in background taken from Piku movue, Music created by @AnupamRoy @PratyushBanerjee

02-08
01:02

इन्तज़ारनामा (intezarnama)

इमैजिनेशन की वो दुनिया जिसमें सब खूबसूरत है, बेहद खूबसूरत, आपके लिये।।

02-05
02:26

चिट्ठी (Chitthi)

चिट्ठियां कैप्शन नहीं ले कर चलतीं।

04-07
02:19

Tonight i can write by Neruda

Translation by Ankit, Written by Pablo Neruda.. It's just a try...

10-15
02:16

बढ़ई और चिड़िया (Badhai aur chidiya)

केदारनाथ सिंह शायद हिन्दी के समकालीन काव्य परिदृश्य में अकेले ऐसे कवि हैं, जो एक ही साथ गाँव के भी कवि हैं और शहर के भी। उनकी यह कविता शायद ऊँघते काटे जा रहे जंगलों की कराह होगी जो मुझे पढ़ने मिली।

10-21
01:48

प्रेम की जगह अनिश्चित है (Prem ki jagah anishchit hai) - Vinod kumar shukl

हमेशा की तरह हतप्रभ कर देने वाले विनोद कुमार शुक्ल जी की यह कविता...

12-04
00:59

मेरा तुम्हारा रिश्ता (Mera Tumhara Rishta- Faiz)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब की ये नज़्म जो रिश्ते बयां करती है।।

11-30
01:00

मैं तुम्हारी देह पर (Mai Tumhari Deh Par)

प्रेमानुभूति प्रक्रिया से क्रिया का सफलतम रूप होती है।

01-07
01:00

दिसम्बर के दिन (Days of December)

दिसम्बर के दिन सालों से पुछल्ले माने जाते रहे हैं पर असल में नीव की तरह काम में लगे होते हैं वो भी आगे आने वाले साल के लिए। इसी कोशिश में ये कुछ अलग और बड़े वक़्त बाद नई कविता। आपके और दिसम्बर के नाम।

01-06
02:11

Meri Mrityu ke baad (मेरी मृत्यु के बाद)

एक सच जो हर लिखने वाले की अन्तरात्मा झकझोर देता है वो है, उसे उस समय तवज्जो ना देना जब आवश्यक हो, बजाय जब वो रह ही न जाए तब के। "कविता को आवाज़ दी है थिएटर आर्टिस्ट और बहुत अच्छी आवाज़ की धनी, दोस्त पुष्पा ने।"

06-23
00:53

SlowMotion

Slow motion detected in past

05-26
01:02

समर शेष है (Samar Shesh Hai)

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की इस कविता को हम जितनी बार पढ़ते हैं, उतनी बार नया राष्ट्र, नया कलाप सामने होता दीख पड़ता है। समय की व्यथा, राष्ट्र का दुःख, जनता का अपनत्व साफ समझ आता है। हर ओर से ऐसा लगता है जैसे बस यही कविता है जिसने जियाले अपने भीतर सहेजे हुए हैं।

04-30
03:29

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