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Seema Agnihotri
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राजा से सन्यासी बनने की कहानी
अनीता अल्वारेज , अमेरिका की एक पेशेवर तैराक हैं , जो वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान परफॉर्म करने के लिए स्विमिंग पूल में जैसे ही छलांग लगाई , वो छलांग लगाते ही पानी के अंदर बेहोश हो गई ,*
*जहाँ पूरी भीड़ सिर्फ़ जीत और हार के बारे में सोच रही थी वहीं उसकी कोच एंड्रिया ने जब देखा कि अनीता एक नियत समय से ज़्यादा देर तक पानी के अंदर है ,*
*एंड्रिया पल भर के लिए सब कुछ भूल गई कि वर्ल्ड चैंपियनशिप प्रतियोगिता चल रही है , एक पल भी व्यर्थ ना करते हुए एंड्रिया चलती प्रतियोगिता के बीच में ही स्विमिंग पूल में छलांग लगा दी ,*
*वहाँ मौजूद हज़ारों लोग कुछ समझ पाते तब तक एंड्रिया पानी के अंदर अनीता के पास थी ,*
*एंड्रिया ने देखा कि अनीता स्विमिंग पूल में पानी के अंदर बेहोश पड़ी है ,*
*ऐसी हालत में ना हाथ पैर चला सकती ना मदद माँग सकती ,*
*एंड्रिया ने अनीता को जैसे बाहर निकाला मौजूद हज़ारों लोग सन्न रह गए , एंड्रिया ने अनीता को तो बचा लिया ,*
*लेकिन हम सबकी ज़िंदगी में बहुत बड़ा सवाल छोड़ गई !*
*इस दुनियाँ में ना जाने कितने लोग हम सबकी ज़िंदगी से जुड़े हैं कितनों से रोज़ मिलते भी होंगे ,*
*जो इंसान हर किसी से अपने मन की बात नहीं कह पाता कि असल ज़िंदगी में वह भी कहीं डूब रहा है , वह भी किसी तकलीफ़ से गुज़र रहा है , वह भी किसी बात को लेक़र ज़िंदगी से परेशान हो रहा है , लेकिन बता नहीं पा रहा है*
*जब इंसान किसी को अपने मन की व्यथा , अपनी परेशानी नहीं बता पाता तो मानसिक तनाव इतना बढ़ जाता है कि वह ख़ुद को पूरी दुनियाँ से अलग़ कर लेता है , सबकी नज़रों से दूर एकांत में ख़ुद को चारदीवारी में क़ैद कर लेता है ,*
*ये वक़्त ऐसा होता है कि तब इंसान डूब रहा होता है , उसका मोह ख़त्म हो चुका होता है , ना किसी से बात चीत ना किसी से मिलना जुलना ,*
*ये स्थिति इंसान के लिए सबसे ख़तरनाक होती है ,*
*जब इंसान अपने डूबने के दौर से गुज़र रहा होता है , तब बाक़ी सब दर्शकों की भाँति अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होते हैं किसी को ख़्याल ना होता कि एक इंसान किसी बड़ी परेशानी में है ,*
*अगर इंसान कुछ दिन के लिए ग़ायब हो जाए तो पहले तो लोगों को ख़्याल नहीं आएगा , अगर कुछ को आ भी जाए तो लोग यही सोचेंगे , पहले कितनी बात होती थी अब वो बदल गया है या फिर उसे घमंड हो गया है या अब तो बड़ा आदमी बन गया है इसलिए बात नहीं करता , जब वो बात नहीं करता तो हम कियूँ करें !*
*या फिर ये सोच लेते हैं कि अब दिखाई ना देता तो वो अपनी ज़िंदगी में मस्त है इसलिए नहीं दिखाई देता ,*
*अनीता पेशेवर तैराक होते हुए डूब सकती है तो कोई भी अपनी ज़िंदगी में बुरे दौर से गुज़र सकता है , ये समझना ज़रूरी है*
*लेकिन उन लोगों से हट कर कोई एक इंसान ऐसा भी होगा जो आपकी मनोस्थिति तुरंत भाँप लेगा , उसे बिना कुछ बताये सब पता चल जाएगा , आपकी ज़िंदगी के हर पहलू पर हमेशा नज़र रखेगा , थोड़ा सा भी परेशान हुए वो आपकी परेशानी आकर पूछने लगेगा ,*)
आपके बेहवियर को पहचान लेगा , आपको हौसला देगा आपको सकारात्मक बनायेगा और एंड्रिया की तरह कोच बन कर आपकी ज़िंदगी को बचा लेगा ,*हम सबको ऐसे कोच की ज़रूरत पड़ती है *ऐसा कोच कोई भी हो सकता है , आपका कोई दोस्त , आपका कोई हितैषी , आपका कोई रिश्तेदार , आपका कोई चाहने वाला , आपका भाई , बहन , माँ , पापा , कोई भी , जो बिना बताये आपके भावों को पढ़ ले और तुरंत एक्शन ले !*
इस कहानी में रतन टाटा जी के जीवन की सच्ची घटना बताई गई है
केपटाउन के अशिक्षित व्यक्ति सर्जन श्री हैमिल्टन नकी, जो एक भी अंग्रेज़ी शब्द नहीं पढ़ सकते थे और ना ही लिख सकते थे, जिन्होंने अपने जीवन में कभी स्कूल का चेहरा नहीं देखा था... उन्हें मास्टर ऑफ मेडिसीन की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया ।
आइए देखे कि यह कैसे संभव है ...केपटाउन मेडिकल यूनिवर्सिटी जगत् में अग्रणी स्थान पर है । दुनिया का पहला बाइपास ऑपरेशन इसी विश्वविद्यालय में हुआ । सन् 2003 में, एक सुबह, विश्व प्रसिद्ध सर्जन प्रोफेसर डेविड डेंट ने विश्वविद्यालय के सभागार में घोषणा की: "आज हम उस व्यक्ति को चिकित्सा क्षेत्र में मानद उपाधि प्रदान कर रहे हैं, जिसने सबसे अधिक सर्जरी की है।मिल्टन का जन्म केपटाउन के एक सुदूर गाँव सैनिटानी में हुआ था । उनके माता-पिता चरवाहे थे, वे बचपन में बकरी की खाल पहनते और पूरे दिन नंगे पांव पहाड़ों में घूमते रहते उनके पिताजी बीमार पड़ने के कारण हैमिल्टन केपटाउन पहुँचे । वही विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य चला था । वे एक मज़दूर के रूप में विश्वविद्यालय से जुड़े । कई वर्षो तक उन्होंने वहाँ काम किया । दिन भर के काम के बाद जितना पैसा मिलता, वह घर भेज देते थे और खुद सिकुड़ कर खुले मैदान में सो जाते थे । उसके बाद उन्हें टेनिस कोर्ट के ग्राउंड्स मेंटेनेंस वर्कर के रुप में रखा गया । यह काम करते हुए तीन साल बीते ।
फिर उनके जीवन में एक अजीब मोड़ आया और वह चिकित्सा विज्ञान में एक ऐसे बिंदु पर पहुँच गए, जहाँ कोई और कभी नहीं पहुँच पाया था । यह एक सुनहरी सुबह थी । "प्रोफेसर रॉबर्ट जॉयस, जिराफों पर शोध करना चाहते थे: उन्होंने ऑपरेटिंग टेबल पर एक जिराफ रखा, उसे बेहोश कर दिया, लेकिन जैसे ही ऑपरेशन शुरू हुआ, जिराफ ने अपना सिर हिला दिया। उन्हें जिराफ की गर्दन को मजबूती से पकड़े रखने के लिए एक हट्टे कट्टे आदमी की जरूरत थी । प्रोफेसर थिएटर से बाहर आए, 'हैमिल्टन' लॉन में काम कर रहे थे, प्रोफेसर ने देखा कि वह मज़बूत कद काठी का स्वस्थ युवक है । उन्होंने उसे बुलाया और उसे जिराफ़ को पकड़ने का आदेश दिया ।ऑपरेशन आठ घंटे तक चला । ऑपरेशन के दौरान, डॉक्टर चाय और कॉफ़ी ब्रेक लेते रहे, हालांकि "हैमिल्टन" वे जिराफ़ की गर्दन पकड़कर खड़े रहे । जब ऑपरेशन खत्म हो गया, तो हैमिल्टन चुपचाप चले गए ।
अगले दिन प्रोफेसर ने हैमिल्टन को फिर से बुलाया, वह आया और जिराफ की गर्दन पकड़कर खड़ा हो गया, इसके बाद यह उसकी दिनचर्या बन गई । प्रोफेसर रॉबर्ट जॉयस उनकी दृढ़ता और ईमानदारी से प्रभावित हुए और हैमिल्टन को टेनिस कोर्ट से 'लैब असिस्टेंट' के रूप में पदोन्नत किया गया । अब वह विश्वविद्यालय के ऑपरेटिंग थियेटर में सर्जनों की मदद करने लगे । यह प्रक्रिया सालों तक चलती रही ।1958 में उनके जीवन में एक और मोड़ आया । इस वर्ष डॉ. बर्नार्ड ने विश्वविद्यालय में आकर हृदय प्रत्यारोपण ऑपरेशन शुरू किया । हैमिल्टन उनके सहायक बन गए, इन ऑपरेशनों के दौरान, वे सहायक से अतिरिक्त सर्जन पद पर कार्यरत थे ।
अब डॉक्टर ऑपरेशन करते और ऑपरेशन के बाद हैमिल्टन को सिलाई का काम दिया जाता था । वह बेहतरीन टाँके लगाते। उनकी उंगलियाँ साफ और तेज थीं । वे एक दिन में पचास लोगों को टाँके लगाते थे । ऑपरेटिंग थियेटर में काम करने के दौरान, वे मानव शरीर को सर्जनों से अधिक समझने लगे इसलिए वरिष्ठ डॉक्टरों ने उन्हें अध्यापन की जिम्मेदारी सौंपी ।
उन्होंने अब जूनियर डॉक्टरों को सर्जरी तकनीक सिखाना शुरू किया । वह धीरे-धीरे विश्वविद्यालय में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए । वह चिकित्सा विज्ञान की शर्तों से अपरिचित थे लेकिन वह सबसे कुशल सर्जन साबित हुए ।
उनके जीवन में तीसरा मोड़ सन् 1970 में आया, जब इस साल लीवर पर शोध शुरू हुआ और उन्होंने सर्जरी के दौरान लीवर की एक ऐसी धमनी की पहचान की, जिससे लीवर प्रत्यारोपण आसान हुआ । उनकी टिप्पणियों ने चिकित्सा विज्ञान के महान दिमागों को चकित कर दिया।
वे केपटाउन विश्वविद्यालय से 50 वर्षों तक जुड़े रहे । उन 50 वर्षों में उन्होंने कभी छुट्टी नहीं ली।
वे चिकित्सा इतिहास के पहले अनपढ़ शिक्षक थे । वे अपने जीवनकाल में 30,000 सर्जनों को प्रशिक्षित करनेवाले पहले निरक्षर सर्जन थे ।2005 में उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें विश्वविद्यालय में दफनाया गया । इसके बाद सर्जनों को विश्वविद्यालय ने अनिवार्य कर दिया गया कि वे डिग्री हासिल करने के बाद उनकी कब्र पर जाएँ, एक तस्वीर खिंचे और फिर अपने सेवा कार्य में जुटे ।"आपको पता है कि उन्हें यह पद कैसे मिला ?”
"केवल एक 'हाँ'।"जिस दिन उन्हें जिराफ की गर्दन पकड़ने के लिए ऑपरेटिंग थियेटर में बुलाया गया, अगर उन्होंने उस दिन मना कर दिया होता, तो क्या वे डॉक्टर बन पाते? काम को महत्व देने से ही सफलता मिलेगी।
" एक बार सुंदर पिचाई एक रेस्टोरेंट में गए । उन्होंने कॉफी का ऑर्डर दिया और देखा की सामने एक महिलाओं का समूह भी बैठा हुआ है । अचानक एक कॉकरोच कहीं से उड़ कर आया और उस समूह की महिलाओं में से एक पर बैठ गया । वह डर के मारे चिल्लाने लगी । घबराए हुए चेहरे और कांपती आवाज़ के साथ , वह उछलने लगी , और अपने दोनों हाथों से कॉकरोच से छुटकारा पाने की पूरी कोशिश करने लगी । उसकी प्रतिक्रिया देखकर ग्रुप की अन्य महिलाये भी घबरा रही थी । महिला आखिरकार कॉकरोच को दर भगाने में कामयाब रही लेकिन वह तत्काल समूह की एक अन्य महिला पर बैठ गया । अब , दूसरी महिला भी डर से काँपने और चिल्लाने लगी । तभी वेटर उनके बचाव के लिए आगे आया । और उसको भगाने की कोशिश में कॉकरोच वेटर के ऊपर आ गया । " लेकिन वेटर दृढ़ता से खड़ा था , उसने खुद की शर्ट पर बैठे कॉकरोच को बिना ज्यादा हिले डुले ध्यान से देखा और उसके व्यवहार का अवलोकन किया । उसके बाद उसने मौका देखकर कॉकरोच को अपनी उंगलियों से पकड़ लिया और रेस्टोरेंट से बाहर फेंक दिया । ये सब देखकर सुन्दर पिचाई के मन में एक विचार आया और वो आश्चर्यचकित हो गए।" क्या कॉकरोच उन महिलाओं के डर और घबराहट के लिए जिम्मेदार था ? यदि ऐसा है , तो वेटर क्यों नहीं डरा या घबराया ? बल्कि वेटर ने बहुत आसानी से कॉकरोच को हैंडल किया । उन महिलाओं के डर का कारण कॉकरोच नहीं है बल्कि कॉकरोच को न संभाल पाना ही उनके डर और परेशानी का कारण है । तब उन्होंने महसूस किया कि " यह मेरे पिता या मेरे बॉस या मेरी पत्नी की चीख - चिल्लाहट नहीं है जो मुझे परेशान करती है , बल्कि उनकी चीख - चिल्लाहट के द्वारा उत्पन्न होने वाली परेशानी को न संभाल पाने की मेरी अक्षमता ही मेरी परेशानी का कारण होती है । सड़क पर ट्रैफिक जाम होना मेरी परेशानी नहीं है , बल्कि ट्रैफिक जाम के कारण हुई परेशानियों को न संभाल पाना ही मेरी परेशानी है।समस्या से ज्यादा , उस समस्या पर मेरी प्रतिक्रिया ही है जो मेरे जीवन में अशांति उत्पन्न करती है । कुछ चीजें हमारे नियंत्रण में हैं और कुछ नहीं । हमारे नियंत्रण में जो चीजें है है - : हमारी राय , शौक इच्छा या एक शब्द में कहे तो हमारे अपने सभी प्रकार के कार्य । हमारे नियंत्रण में नहीं आने वाली चीजें शरीर , संपत्ति , प्रतिष्ठा या एक शब्द में कहे तो वो सब कुछ जो हम नहीं करते है ।" मैं समझ गया कि मुझे जीवन में प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए । मुझे हमेशा जवाब देना चाहिए । महिलाओं ने प्रतिक्रिया दी , जबकि वेटर ने जवाब दिया । प्रतिक्रियाएं हमेशा सहज होती हैं जबकि जवाबदेही में जिम्मेदारी का भाव होता है । खुश रहने वाला व्यक्ति इसलिए खुश नहीं है क्योंकि उसके जीवन में सब कुछ सही है । वो खुश हैं क्योंकि उनकी Life में हर चीज़ के प्रति उसका Attitude सही है .. !
इसमें रविंद्रनाथ टैगोर की कहानी सुनकर आप सभी उनके बड़प्पन को जान सकते हैं
इस कहानी से पता चलता है कि दृढ़ निश्चय ही सफलता की कुंजी है।
जैसा हम दूसरों को देंगे, वही हमे मिलेगा
जब कोई काम को महत्व देने लग जाता है,तो सफलता अपने आप मिलती है।
कृष्ण ने कर्ण को महादानी क्यों कहा ,कैसे उन्होंने अर्जुन को ये सिद्ध करके बताया।सुनिये




