स्मृतियों की छाँव - सर्वजीत Smrition Ki Chaav, a Hindi Poem by Sarvajeet D Chandra
Update: 2025-09-25
Description
कुछ रिश्ते वक्त के साथ मुरझाते नहीं… बस फिर से खिल उठते हैं।
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स्मृतियों की छाँव - सर्वजीत
हवा में फिर वही ख़ुशबू है,
जो बीते बरसों में खो गई थी,
रिश्तों की शाख़ फिर से
नए फूलों से भर सी गई थी।
ऐसा लगने लगा है फिर से,
तेरी यादों का मौसम आया है,
खुशनसीबी का रंग फिर से
हमारे अंजुमन में छाया है।
धूप चाहे कितनी भी तीखी हो,
दरख़्तों की छाँव बचा ही लेगी,
कोई लम्हा थक कर गिर पड़े तो,
ज़मीं शायद उसे थाम ही लेगी।
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