Azadi Podcast Ep. 05: नई शिक्षा नीति और एडुप्रेन्योर्स
Description
काफी इंतजार के बाद पिछले वर्ष राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2019 ड्राफ्ट आखिरकार जारी हो ही गया। यह ड्राफ्ट 484 पृष्ठों का व्यापक दस्तावेज है जिसे तैयार करने में चार वर्षों से अधिक का समय लगा।
सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी के द्वारा प्रस्तुत, आज़ादी पॉडकास्ट के इस एपिसोड में एनईपी को लेकर निजी स्कूलों के अखिल भारतीय संगठन निसा (नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस) के प्रेसिडेंट कुलभूषण शर्मा से बातचीत कर उनकी राय जान रहे हैं होस्ट अविनाश चंद्र जो देश के पहले हिंदी उदारवादी वेबपोर्टल azadi.me के संपादक हैं।
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After over four years of preparation, the 484-page draft of the National Education Policy (NEP) was finally released in 2019. But would it change the education landscape in the country?
In this episode of the Azadi Podcast, presented by Centre for Civil Society, host Avinash Chandra, Editor, Azadi.me, discusses the nuances of the NEP with Kulbhushan Sharma, President of the National Independent Schools Alliance, to assess its impact on the ground.
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कुछ अन्य पहलू भी है शायद यह खर्चा per student Jo Aapne बताया वो मिड डे मील को शामिल करके होगा। तो केवल प्राथमिक शिक्षा का केवल शिक्षा देना ही उद्देश्य नहीं है। उसमे पोषण,बाल मजदूरी से संरक्षण,वंचित वर्गों के छात्रों को शिक्षा मुहैया कराना भी शामिल है। निजी क्षेत्र इन आवश्यकताओं को काफी हद तक पूरा नहीं करता। यह सरकारी शिक्षा व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य - सामाजिक लाभ देना हो जाता है ना कि आर्थिक लाभ तक सीमित होना।
महोदय, आपके सुझाव काफी हद तक सही है। लेकिन उनमें व्यवहार तौर पर कुछ खामियां भी है। 1-3000 rs fund Karna इसमें दिक्कत यह है कि अगर आप इतनी बड़ी मासिक राशि किसी परिवार को शिक्षा के नाम पर देते हो। तो इसका प्रयोग अन्य आवश्यकताओं पर होगा जैसा DBT(gas subsidi) me मामले में होता है। 2- अभी की सरकारी स्कूल अवसंरचना काफी सालो का परिणाम है। एक बार 3000 fund के नाम पर निजी क्षेत्र की तरफ रुख किया तो की गारंटी है कि फीस प्रत्येक साल नहीं बढ़ाएंगे ??? क्यों की सरकारी नीति में तो प्रत्येक वर्ष फीस बढ़ाने संबंधी परिवर्तन होने से रहा।। 3- किसी भी सरकार के लिए सरकारी स्कूल व्यवस्था में वर्तमान में आमूल चूल परिवर्तन करना सामाजिक सुधारक छवि के लिए अच्छा नहीं सो कम से कम जैसी दशा स्थिति में विद्यालय है ऐसे ही चलना उस मानसिक सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि कम से कम सरकारी क्षेत्र तो है सस्ती शिक्षा के लिए। लेकिन अगर सरकार बदलती है उसने मासिक फीस ना बढ़ाई या कम कर दी उस दशा में वो लोग कहा जाएंगे ?? उनकी स्थिति तो ' घर की ना घाट की ' वाली हो जाएगी।