Cheekho Dost | Pratibha Katiyar
Description
चीख़ो दोस्त - प्रतिभा कटियार
चीख़ो दोस्त
कि इन हालात में
अब चुप रहना गुनाह है
और चुप भी रहो दोस्त
कि लड़ने के वक़्त में
महज़ बात करना गुनाह है
फट जाने दो गले की नसें
अपनी चीख़ से
कि जीने की आख़िरी उम्मीद भी
जब उधड़ रही हो
तब गले की इन नसों का
साबुत बच जाना गुनाह है
चलो दोस्त
कि सफ़र लंबा है बहुत
ठहरना गुनाह है
लेकिन कहीं न जाते हों जो रास्ते
उन रास्तों पर बेसबब चलते जाना
भी तो गुनाह है
हँसो दोस्त
उन निरंकुश होती सत्ताओं पर
जो अपनी घेरेबंदी में घेरकर, गुमराह करके
हमारे ही हाथों हमारी तक़दीरों पर
लगवा देते हैं ताले
कि उनकी कोशिशों पर
निर्विकार रहना गुनाह है
और रो लो दोस्त कि
बेवजह ज़िंदगी से महरूम कर दिए गए लोगों के
लिए न रोना भी गुनाह है
मर जाओ दोस्त कि
तुम्हारे जीने से
जब फ़र्क़ ही न पड़ता हो दुनिया को
तो जीना गुनाह है
और जियो दोस्त कि
बिना कुछ किए
यूँ ही
मर जाना गुनाह है...























