Discoverमधुरिम हिंदीद्विवेदीयुगीन काव्यधारा का सौंदर्य
द्विवेदीयुगीन काव्यधारा का सौंदर्य

द्विवेदीयुगीन काव्यधारा का सौंदर्य

Update: 2021-03-21
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*द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताएं*

आधुनिक कविता के दूसरे पड़ाव (सन् 1903 से 1916) को द्विवेदी-युग के नाम से जाना जाता है। डॉ नगेन्द्र ने द्विवेदी युग को 'जागरण-सुधार काल' भी कहा जाता है और इसकी समयावधि 1900 से 1918 ई. तक माना। वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को 'नई धारा: द्वितीय उत्थान' के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन् 1893 से 1918 ई. तक माना है। यह आधुनिक कविता के उत्थान व विकास का काल है।
इस युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी है। इन्होने " सरस्वती " पत्रिका का सम्पादन किया। इस पत्रिका मे ऐसे लेखों का प्रकाशन किया, जिसमे नवजागरण का संदेश जन-जन तक पहुँचाया गया। इस पत्रिका ने कवियों की एक नई पौध तैयार की। द्विवेदी मंडल के कवियों में मैथलीशरण गुप्त, गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही', गोपालशरण सिंह, लोचन प्रसाद पाण्डेय और महावीर प्रसाद द्विवेदी आते हैं। अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध', श्रीधर पाठक, नाथूराम शर्मा 'शंकर' और राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' आदि हैं।

द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताएं
इस प्रकार है--
*भावगत विशेषताएँ**

1 *. देशभक्ति एवं राष्ट्रीय चेतना-*
द्विवेदी युग मे देशभक्ति को व्यापक आधार मिला। इस काल मे देशभक्ति विषयक लघु एवं दीर्घ कविताएँ लिखी गई।दूसरी ओर कविता मे लोक जीवन और प्रकृति के साथ ही राष्ट्रीय भावना की समर्थ अभिव्यक्ति हो रही थी। इस समय के प्रबंध काव्य मे कवियों ने पौराणिक और ऐतिहासिक कथानक को आधार बनाया। इस युग मे ऐतिहासिकता, पौराणिकता मे भी राष्ट्रीय चेतना राष्ट्रीय भावना का स्वर ही उभरकर सामने आता है।द्विवेदीयुगीन कवियों ने जनमानस के बीच राष्ट्रप्रेम का लहर चलाई। स्वतन्त्रता के प्रति जनमानस में चेतना का संचार किया। इस युग के रचनाकारों का राष्ट्रप्रेम भारतेन्दु युग की भाँति सामयिक रुदन से नहीं जुङा है, बल्कि समस्याओं के कारणों पर विचार करने के साथ-साथ उनके लिए समाधान ढूँढने तक जुङा है
’’हम क्या थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी।
आओ मिलकर विचारें ये समस्याएँ सभी।।’’

2. *अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों का विरोध*
इस काल की कविताओं मे सामाजिक अंध विश्वासों और रूढ़ियों पर तीखे प्रहार किए गए इसीलिए यह युग सुधारवादी युग भी कहलाता है। इस युग के कवियों ने सामाजिक समस्याओं, यथा – दहेज प्रथा, नारी उत्पीङन , छूआछूत, बाल विवाह आदि को अपनी कविता का विषय बनाया।

3. *मानव प्रेम-*
द्विवेदी युगीन कविताओं मे मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना विशेष रूप से मिलती है। इस काल का कवि संकीर्णताओं से ऊपर उठ गया है। वह मानव-मानव में भ्रातृ-भाव की स्थापना करने के लिए कटिबद्ध है। अत: वह कहता है-
"जैन बोद्ध पारसी यहूदी,मुसलमान सिक्ख ईसाई।
कोटि कंठ से मिलकर कह दो हम हैं भाई-भाई॥"

4. *प्रकृति चित्रण-*
द्विवेदी युग में प्रकृति को काव्य-विषय के रूप में पहली बार महत्वपूर्ण स्थान मिला। इसके पूर्व प्रकृति या तो उद्दीपन के रूप में आती थी या फिर अप्रस्तुत विधान का अंग बनकर। वहीं इस युग में प्रकृति को आलंबन तथा प्रस्तुत विधान के रूप में मान्यता मिली। द्विवेदी युग में प्रकृति का गतिशील चित्रण न होकर स्थिर चित्रण हुआ है।
इस युग के कवियों ने प्रकृति के अत्यंत रमणीय चित्र खींचे है। प्रकृति का स्वतन्त्र रूप मे मनोहारी चित्रण मिलता है।द्विवेदी युग के कवि का ध्यान प्रकृति के यथा-तथ्य चित्रण की ओर गया। प्रकृति चित्रण कवि के प्रकृति-प्रेम स्वरूप विविध रूपों में प्रकट हुआ। श्रीधर पाठक,रामनरेश त्रिपाठी,हरिऔद्य तथा मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं में प्रकृति आलंबन,मानवीकरण तथा उद्दीपन आदि रूपों में चित्रित किया गया है। श्रीधर पाठक ने काश्मीर की सुषमा का रमणीय वर्णन करते हुए लिखा-
"प्रकृति जहां एकांत बैठि निज रूप संवारति।
पल-पल पलटति भेष छनिक छवि छिन-छिन धारति॥"

5. *आदर्शवादिता -*
इस युग की कविता प्राचीन प्राचीन सांस्कृतिक आदर्शों से युक्त आदर्शवादी कविता है। इस युग के कवि की चेतना नैतिक आदर्शों को विशेष मान्यता दे रही थी,क्योंकि उन्होंने वीरगाथा काल तथा रीतिकाल की शृंगारिकता के दुष्परिणाम देखे थे। अत: वह इस प्रवृत्ति का उन्मूलन कर देश को वीर-धीर बनाना चाहता है-
"रति के पति! तू प्रेतों से बढ़कर है संदेह नहीं,
जिसके सिर पर तू चढ़ता है उसको रुचता गेह नहीं।"
इस काल का कवि सौंदर्य के प्रति उतना आकृष्ट नहीं,जितना कि वह शिव की ओर आकृष्ट है।

6. *नारी का उत्थान -*
इस काल के कवियों ने नारी के महत्त्व को समझा,उस पर होने वाले अत्याचारों का विरोध किया। अब नारी भी लोक-हित की आराधना करने वाली बन गई। अत: प्रिय-प्रवास की राधा कहती है-
"प्यारे जीवें जग-हित करें,गेह चाहे न आवै।" प्रतापनारायण मिश्र नारी के वैधव्य जीवन और बाल विधवाओं की तरुण अवस्थाओं को देखकर
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Madhu Gupta