रीतिकालीन कवि बिहारी का काव्य सौंदर्य
Update: 2021-03-21
Description
बिहारी की भावगत एवं कलागत विशेषताएँ, बिहारी का गागर नें सागर स्वरूप। बिहारी के काव्य में श्रृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी *'बिहारी लाल का काव्य-सौंदर्य'*
*"सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर।।"*
बिहारी लाल हिंदी के रीतिकाल के ऐसे अद्वितीय कवि हैं, जिन्होंने अपने दोहे की नन्ही सी गागर में भाव और अर्थ का लहराता हुआ सागर भर दिया है।
बिहारी की कविता में श्रृंगार के मादक चित्र हैं, कल्पना का मोहक सौंदर्य है, भाव की गहराई है, अलंकारों का चमत्कारपूर्ण प्रयोग है।
बिहारी की एक ही प्रसिद्ध काव्य कृति है-'बिहारी सतसई' इसमें राजा जयसिंह के दरबार में रहकर लिखे गए बिहारी के 719 (कुछ विद्वान 713 मानते हैं) दोहे संग्रहित हैं।
राजदरबार में रहकर बिहारी ने वैभव विलास देखा था। कला की सूक्ष्म पकड़ और वाणी का कौशल प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति उनके दोहों में देखी जा सकती हैं।
*_बिहारी-भावपक्ष_*
*गागर में सागर भरने वाले कवि-*
'गागर में सागर भरना’ एक मुहावरा है। इसका अर्थ है- थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहने की कला । कवि बिहारी ने अपनी काव्य-रचना के लिए छोटे से छंद दोहा को चुना है। दो पंक्तियों में वह इतना भाव सौन्दर्य, अलंकरण और कथन की विचित्रता भर देते हैं कि पाठक मुग्ध हो जाता है। संकलित दोहों में अनेक दोहे बिहारी के इस गुण को प्रमाणित करते हैं।
“अर्जी तरयौना… मुकुतन के संग ॥”
दोहे में कवि ने विराधोभास का चमत्कार प्रदर्शित करते हुए, अनेक विषयों को नीति-कथन का लक्ष्य बनाया है। साधारण अर्थ है कि निरंतर एक ही रंग (स्वर्ण वर्ण) में रहते हुए, तरयौना कान में ही पड़ा हुआ है, जबकि मोतियों से युक्त होकर बेसर नाक पर स्थान पा गई है। यहाँ कवि ने ‘कान’ की उपेक्षा ‘नाक’ को श्रेष्ठ-सम्मान का प्रतीक-बताया है। अन्य अर्थों में वेद-अध्ययन की अपेक्षा महापुरूषों की संगति को उद्धार का श्रेष्ठ साधन बताया गया है। इसके अतिरिक्त कवि ने राजदरबारों में व्याप्त आपसी कांट-छांट के वातावरण को भी प्रकाशित किया है। ‘श्रुति सेवन’ का अर्थ कान भरना -चुगली करना-और ‘नाकवास’ को सम्मान का स्थान बताते हुए, ‘तटस्थ और निष्पक्ष’ व्यवहार की महत्ता सिद्ध की है।
*श्रृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी-* बिहारी श्रृंगार रस के कवि है। श्रृंगार रस के अलावा उनकी सतसई में भक्ति, नीति,ज्ञान और वैराग्य पर भी दोहे पाए जाते हैं, जिससे उनके काव्य में चार चांद लग गए हैं।
*श्रृंगार रस की प्रधानता-
*"सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर।।"*
बिहारी लाल हिंदी के रीतिकाल के ऐसे अद्वितीय कवि हैं, जिन्होंने अपने दोहे की नन्ही सी गागर में भाव और अर्थ का लहराता हुआ सागर भर दिया है।
बिहारी की कविता में श्रृंगार के मादक चित्र हैं, कल्पना का मोहक सौंदर्य है, भाव की गहराई है, अलंकारों का चमत्कारपूर्ण प्रयोग है।
बिहारी की एक ही प्रसिद्ध काव्य कृति है-'बिहारी सतसई' इसमें राजा जयसिंह के दरबार में रहकर लिखे गए बिहारी के 719 (कुछ विद्वान 713 मानते हैं) दोहे संग्रहित हैं।
राजदरबार में रहकर बिहारी ने वैभव विलास देखा था। कला की सूक्ष्म पकड़ और वाणी का कौशल प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति उनके दोहों में देखी जा सकती हैं।
*_बिहारी-भावपक्ष_*
*गागर में सागर भरने वाले कवि-*
'गागर में सागर भरना’ एक मुहावरा है। इसका अर्थ है- थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहने की कला । कवि बिहारी ने अपनी काव्य-रचना के लिए छोटे से छंद दोहा को चुना है। दो पंक्तियों में वह इतना भाव सौन्दर्य, अलंकरण और कथन की विचित्रता भर देते हैं कि पाठक मुग्ध हो जाता है। संकलित दोहों में अनेक दोहे बिहारी के इस गुण को प्रमाणित करते हैं।
“अर्जी तरयौना… मुकुतन के संग ॥”
दोहे में कवि ने विराधोभास का चमत्कार प्रदर्शित करते हुए, अनेक विषयों को नीति-कथन का लक्ष्य बनाया है। साधारण अर्थ है कि निरंतर एक ही रंग (स्वर्ण वर्ण) में रहते हुए, तरयौना कान में ही पड़ा हुआ है, जबकि मोतियों से युक्त होकर बेसर नाक पर स्थान पा गई है। यहाँ कवि ने ‘कान’ की उपेक्षा ‘नाक’ को श्रेष्ठ-सम्मान का प्रतीक-बताया है। अन्य अर्थों में वेद-अध्ययन की अपेक्षा महापुरूषों की संगति को उद्धार का श्रेष्ठ साधन बताया गया है। इसके अतिरिक्त कवि ने राजदरबारों में व्याप्त आपसी कांट-छांट के वातावरण को भी प्रकाशित किया है। ‘श्रुति सेवन’ का अर्थ कान भरना -चुगली करना-और ‘नाकवास’ को सम्मान का स्थान बताते हुए, ‘तटस्थ और निष्पक्ष’ व्यवहार की महत्ता सिद्ध की है।
*श्रृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी-* बिहारी श्रृंगार रस के कवि है। श्रृंगार रस के अलावा उनकी सतसई में भक्ति, नीति,ज्ञान और वैराग्य पर भी दोहे पाए जाते हैं, जिससे उनके काव्य में चार चांद लग गए हैं।
*श्रृंगार रस की प्रधानता-
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