एनएल चर्चा 83 : हिंदी दिवस, स्वामी चिन्मयानंद, मीडिया उद्योग में संकट और अन्य
Update: 2019-09-16
Description
इस सप्ताह एनएल चर्चा में जो विषय शामिल हुए उनमें सबसे महत्वपूर्ण रहा हिंदी दिवस के बहाने भाषाओं की राजनीति पर चर्चा. मीडिया उद्योग में मंदी का दौर और लगातार नौकरियों से हाथ धो रहे पत्रकार भी इस बार चर्चा का विषय बने. वहीं उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक लड़की ने बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानन्द पर बलात्कार का आरोप लगाया है. रेल मंत्री पीयूष गोयल और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने हाल में अर्थव्यवस्था को लेकर जो बयान दिए वह सवाल खड़ा करता है कि देश की अर्थव्यवस्था का बागड़ोर जिनके हाथों में हैं वे कितने गंभीर और योग्य लोग हैं. चरंचा के अंत में अनिल यादव ने मशहूर हिंदी लेखक मुक्तिबोध की कविता का पाठ किया.
''एनएल चर्चा’’ में इस बार के मेहमान थे पत्रकार-लेखक अनिल यादव और डोचे वैले के संपादक चारू कार्तिकेय. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत अतुल चौरसिया ने हिंदी दिवस से की. अतुल ने कहा कि उड़ीसा के पूर्व सांसद तथागत सत्पथी ने अपने ट्वीटर हैंडल पर हिंदी पखवाड़े की एक तस्वीर शेयर करते हुए भाषा की राजनीति पर सवाल किया. उन्होंने लिखा कि ये हिंदी पखवाड़ा क्या है? कायदे से इस तरह के काम या टेक्स पेयर का जो पैसा है इसका इस्तेमाल उन तमाम भाषाओं के विकास पर किया जाना चाहिए जो की वास्तव में संकट में हैं. वहीं एक दूसरा तबका है जिसका मानना है कि हिंदी देश की राजभाषा है. अभी भी उसको वो स्थान नहीं मिला है जिसकी वो हकदार है?
भाषा की राजनीति को लेकर अनिल यादव ने कहा, “भाषा अपने आप में कोई खास चीज है, मैं ऐसा नहीं मानता. मेरा मानना है कि भाषा, कहने का माध्यम है. जो कुछ भी आप दुनिया से कहना चाहते हैं. तो सवाल ये की आपके भाषा की मूल्य और उसकी कीमत उतनी ही होती है जितनी कीमती बात आप दुनिया से कहते है. सवाल यही है कि दुनिया से हिंदी इन दिनों क्या कह रही है. वो फिक्शन के मामले में, नॉन फिक्शन के मामले में, विज्ञान के मामले में, राजनीति के मामले में नया क्या कह रही है. जवाब है कि वो बहुत पिटी पिटाई बात कह रही है. यह हिंदी समाज का संकट है. चूंकि हमारे समाज में कुछ नया नहीं हो रहा है. और हमारे समाज में जो सबसे पुराना राजनीति का तरीका था, धर्म के आधार पर राजनीति करने का वो फिर लौट आया है. बहुत प्रभुता से लौट आया. तो आपकी इज्जत क्यों होगी जबकि आप कुछ नया नहीं कह रहे हैं.”
चारू कार्तिकेय ने अपने हस्तक्षेप में कहा, ‘‘मुझे हिंदी के प्रचार प्रसार में बुराई तो नहीं लगती लेकिन दूसरी तरफ मुझे तथागत सत्पथी का सवाल तर्कसंगत भी लगता है. मुझे ये लगता कि भाषा हमारे समाज की वह शै है जिसपर तकरार होती रहती है. अलग-अलग दो भाषाएं बोलने वाले लोगों में एक टकराव होता है. अगर कोई राज्य भाषाओं को बचाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है तो राज्य को चाहिए कि लगभग सभी भाषाओं को तवज्जो दी जाए. अगर टैक्स पेयर के पैसों को खर्च करने की बात है तो वो सभी भाषाएं जो लुप्त होती जा रही है. जिनका एक गौरवशाली इतिहास रहा है. जिनको बोलने वाले हाल-फ़िलहाल तक में बड़ी तादाद में लोग हुआ करते थे या अभी भी हैं, उनको बचाए जाने की कोशिश की जानी चाहिए. इस मामले में मैं देखता हूं कि हिंदी उतनी संकट में नहीं है जितनी अन्य भाषाएं हैं. क्योंकि हिंदी फिल्मों की वजह से भारत की अन्तरराष्ट्रीय छवि हिंदी से ही जुड़ी हुई है. लेकिन वहां और भाषाओं से भारत की पहचान नहीं होती. लेकिन हिंदुस्तान के अंदर तो हम जानते है कि भाषाएं हैं और लोगों का उनसे जुड़ाव है.”
इसके अलावा भी चर्चा में बाकी विषयों पर विस्तार से दिलचस्प बहस-मुबाहिसा हुआ. पूरी चर्चा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें.
To watch this and many more videos, click on http://www.newslaundry.com/
''एनएल चर्चा’’ में इस बार के मेहमान थे पत्रकार-लेखक अनिल यादव और डोचे वैले के संपादक चारू कार्तिकेय. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत अतुल चौरसिया ने हिंदी दिवस से की. अतुल ने कहा कि उड़ीसा के पूर्व सांसद तथागत सत्पथी ने अपने ट्वीटर हैंडल पर हिंदी पखवाड़े की एक तस्वीर शेयर करते हुए भाषा की राजनीति पर सवाल किया. उन्होंने लिखा कि ये हिंदी पखवाड़ा क्या है? कायदे से इस तरह के काम या टेक्स पेयर का जो पैसा है इसका इस्तेमाल उन तमाम भाषाओं के विकास पर किया जाना चाहिए जो की वास्तव में संकट में हैं. वहीं एक दूसरा तबका है जिसका मानना है कि हिंदी देश की राजभाषा है. अभी भी उसको वो स्थान नहीं मिला है जिसकी वो हकदार है?
भाषा की राजनीति को लेकर अनिल यादव ने कहा, “भाषा अपने आप में कोई खास चीज है, मैं ऐसा नहीं मानता. मेरा मानना है कि भाषा, कहने का माध्यम है. जो कुछ भी आप दुनिया से कहना चाहते हैं. तो सवाल ये की आपके भाषा की मूल्य और उसकी कीमत उतनी ही होती है जितनी कीमती बात आप दुनिया से कहते है. सवाल यही है कि दुनिया से हिंदी इन दिनों क्या कह रही है. वो फिक्शन के मामले में, नॉन फिक्शन के मामले में, विज्ञान के मामले में, राजनीति के मामले में नया क्या कह रही है. जवाब है कि वो बहुत पिटी पिटाई बात कह रही है. यह हिंदी समाज का संकट है. चूंकि हमारे समाज में कुछ नया नहीं हो रहा है. और हमारे समाज में जो सबसे पुराना राजनीति का तरीका था, धर्म के आधार पर राजनीति करने का वो फिर लौट आया है. बहुत प्रभुता से लौट आया. तो आपकी इज्जत क्यों होगी जबकि आप कुछ नया नहीं कह रहे हैं.”
चारू कार्तिकेय ने अपने हस्तक्षेप में कहा, ‘‘मुझे हिंदी के प्रचार प्रसार में बुराई तो नहीं लगती लेकिन दूसरी तरफ मुझे तथागत सत्पथी का सवाल तर्कसंगत भी लगता है. मुझे ये लगता कि भाषा हमारे समाज की वह शै है जिसपर तकरार होती रहती है. अलग-अलग दो भाषाएं बोलने वाले लोगों में एक टकराव होता है. अगर कोई राज्य भाषाओं को बचाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है तो राज्य को चाहिए कि लगभग सभी भाषाओं को तवज्जो दी जाए. अगर टैक्स पेयर के पैसों को खर्च करने की बात है तो वो सभी भाषाएं जो लुप्त होती जा रही है. जिनका एक गौरवशाली इतिहास रहा है. जिनको बोलने वाले हाल-फ़िलहाल तक में बड़ी तादाद में लोग हुआ करते थे या अभी भी हैं, उनको बचाए जाने की कोशिश की जानी चाहिए. इस मामले में मैं देखता हूं कि हिंदी उतनी संकट में नहीं है जितनी अन्य भाषाएं हैं. क्योंकि हिंदी फिल्मों की वजह से भारत की अन्तरराष्ट्रीय छवि हिंदी से ही जुड़ी हुई है. लेकिन वहां और भाषाओं से भारत की पहचान नहीं होती. लेकिन हिंदुस्तान के अंदर तो हम जानते है कि भाषाएं हैं और लोगों का उनसे जुड़ाव है.”
इसके अलावा भी चर्चा में बाकी विषयों पर विस्तार से दिलचस्प बहस-मुबाहिसा हुआ. पूरी चर्चा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें.
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