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गीता महायज्ञ - अध्याय-17

गीता महायज्ञ - अध्याय-17

Update: 2021-03-20
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गीता महायज्ञ में श्रीमद्भगवद गीता के १७वें अध्याय (श्रद्धात्रयविभाग योग) का सार बताते हुए पूज्य स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने कहा कि इस अध्याय का प्रारम्भ अर्जुन के एक प्रश्न से होता है। वो पूछता है की हे कृष्ण, हमें शास्त्र के द्वारा प्रतिपादित ज्ञान से चलना चाहिए ये बात हमको समझ में आती है, लेकिन भगवन शास्त्र का ज्ञान तो धीमे-धीमे ही प्राप्त होता है, प्रारम्भ में तो हमें पता ही नहीं होता है की शास्त्र वस्तुतः क्या कह रहे हैं, फिर भी हमारी शास्त्र के प्रति श्रद्धा है, ऐसे परिस्थिति में हमारी स्थिति कैसी होती है - सात्त्विक, राजसी अथवा तामसी। भगवान् इस महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं की तुम्हारी श्रद्धा तो है लेकिन तुम यह भी जानो की हम सब की श्रद्धा भी तीन प्रकार की होती है। अगर सात्त्विक है तो शास्त्र का ज्ञान न भी हो तब भी हमारी उर्ध्व गति होगी अन्यथा नहीं। पूरे अध्याय में भगवान् हमें वो ज्ञान देते है जिससे हम लोग अपनी श्रद्धा का स्वरुप जान सकें, तथा जानकर यथा आवश्यक परिवर्तन कर सकें।

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