गीता महायज्ञ - अध्याय-13
Description
गीता महायज्ञ के १५वें दिन गीता के क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग नामक १३वें अध्याय का सार बताते हुए पूज्य स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने कहा कि इस अध्याय में भगवान् हमें आत्म-अनात्म विवेक के बारे में बताते हैं। परमत्मा को इसी विवेक से अपरोक्षतः जाना जाता है। इसका प्रारम्भ करते हुए प्रभु कहते हैं की अपने शरीर को क्षेत्र कहा जाता है और जो इसको जनता है उसे क्षेत्रज्ञ जानो, और वह खुद परमात्मा ही होते हैं। क्षेत्र ज्ञान का विषय होता है और क्षेत्रज्ञ उसको जानने वाला। इन दोनों का स्पष्ट विवेक होना चाहिए। इस ज्ञान के लिए कुछ आवश्यक मूल्य होते हैं - अमानित्व से प्रारम्भ करते हुए वे २० मूल्य बताते हैं। फिर ज्ञेय के अनेकानेक सुन्दर लक्षण बताते हैं। जीव के अंदर कर्तापन और भोक्तापना उसके छोटे बने रहने में सबसे बड़ी बाधा होती है तो उसके लिए प्रकृति और पुरुष शब्द से उनका रहस्य बताते हैं, और अध्याय के अंत में ज्ञानी के लक्षण बताते हैं।