गीता महायज्ञ - अध्याय-18 (भाग-१)
Description
गीता महायज्ञ में श्रीमद्भगवद गीता के अंतिम अध्याय (१८वें) जिसका नाम मोक्ष-सन्यास योग है, उसके पहले भाग में अध्याय का सार बताते हुए पूज्य स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने कहा कि इस अध्याय का भी प्रारम्भ अर्जुन के एक प्रश्न से होता है। वो पूछता है की हे महाबाहो, हमने आपके उद्बोधन को ध्यान से सुना, इसमें आपने अनेको जगह सन्यास एवं अनेको जगह त्याग शब्दों का कई बार प्रयोग किया, क्या ये दोनों एक ही भाव से प्रयुक्त हैं या ये दोनों भिन्नार्थ है? इसके उत्तर में भगवान् ने बताया की सन्यास एकार्थ नहीं हैं - ये वस्तुतः साध्य एवं साधन रूपा होते हैं। सन्यास उसको कहते हैं जब व्यक्ति में कोई भी काम्य कर्म नहीं होते हैं, और त्याग शब्द उसके लिए प्रयुक्त है जहाँ व्यक्ति में कामनाएं तो हैं और उसके लिए वो कर्म भी करता है लेकिन अपनी मेहनत के बाद जो भी फल प्राप्त होता है वो अपने को मात्र उसका हेतु नहीं समझता है। त्याग शब्द के अपने आशय को बताते हुए भगवान् यहाँ भी तीन गुणों को आधार बनाते हुए बताते हैं की सात्त्विक त्याग से ही त्याग का फल मिलता है। आगे का विस्तार दूसरे भाग में बताया जायेगा।