DiscoverNever Born, Never Died - हिन्दीमहाशय को कैसा मोक्ष ! (अष्‍टावक्र : महागीता - 63)
महाशय को कैसा मोक्ष ! (अष्‍टावक्र : महागीता - 63)

महाशय को कैसा मोक्ष ! (अष्‍टावक्र : महागीता - 63)

Update: 2022-03-12
Share

Description

असमाधेरविक्षेपान्न मुमुक्षुर्न चेतरः।

निश्चित्य कल्पितं पश्यन्‌ ब्रह्मैवास्ते महाशयः।। 204।।

यस्यांतः स्यादहंकारो न करोति करोति सः।

निरहंकारधीरेण न किंचिद्धि कृतं कृतम्‌।। 205।।

नोद्विग्नं न च संतुष्टमकर्तृस्पंदवर्जितम्‌।

निराशं गतसंदेहं चित्तं मुक्तस्य राजते।। 206।।

निर्ध्यातुं चेष्टितुं वापि यच्चित्तं न प्रवर्तते।

निर्निमित्तमिदं किंतु निर्ध्यायति विचेष्टते।। 207।।

तत्त्वं यथार्थमाकर्ण्य मंदः प्राप्नोति मूढ़ताम्‌।

अथवाऽऽयाति संकोचममूढ़ः कोऽपि मूढ़वत्‌।। 208।।

एकाग्रता निरोधो वा मूढैरभ्यस्यते भृशम्‌।

धीराः कृत्यं न पश्यन्ति सुप्तवत्‌ स्वपदे स्थिताः।। 209।।


असमाधेरविक्षेपान्न मुमुक्षुर्न चेतरः।

निश्चित्य कल्पितं पश्यन्‌ ब्रह्मैवास्ते महाशयः।।


पहला  सूत्र: ‘महाशय पुरुष विक्षेपरहित और समाधिरहित होने के कारण न मुमुक्षु  है, न गैर-मुमुक्षु है; वह संसार को कल्पित देख ब्रह्मवत रहता है।’

Comments 
In Channel
loading
00:00
00:00
x

0.5x

0.8x

1.0x

1.25x

1.5x

2.0x

3.0x

Sleep Timer

Off

End of Episode

5 Minutes

10 Minutes

15 Minutes

30 Minutes

45 Minutes

60 Minutes

120 Minutes

महाशय को कैसा मोक्ष ! (अष्‍टावक्र : महागीता - 63)

महाशय को कैसा मोक्ष ! (अष्‍टावक्र : महागीता - 63)

Oshō - ओशो