DiscoverNever Born, Never Died - हिन्दीशुष्कपर्णवत जीयो (अष्‍टावक्र : महागीता - 61)
शुष्कपर्णवत जीयो (अष्‍टावक्र : महागीता - 61)

शुष्कपर्णवत जीयो (अष्‍टावक्र : महागीता - 61)

Update: 2022-03-10
Share

Description

अष्टावक्र उवाच


निर्वासनो निरालंबः स्वच्छंदो मुक्तबंधनः।

क्षिप्तः संसारवातेन चेष्टते शुष्कपर्णवत्‌।।197।।

असंसारस्य तु क्वापि न हर्षो न विषादता।

स शीतलमना नित्यं विदेह इव राजते।।198।।

कुत्रापि न जिहासाऽस्ति नाशो वापि न कुत्रचित्‌।

आत्मारामस्य धीरस्य शीतलाच्छतरात्मनः।।199।।

प्रकृत्या शून्यचित्तस्य कुर्वतोऽस्य यदृच्छया।

प्राकृतस्येव धीरस्य न मानो नावमानता।।200।।

कृतं देहेन कर्मेदं न मया शुद्धरूपिणा।

इति चिंतानुरोधी यः कुर्वन्नपि करोति न।।201।।

अतद्वादीव कुरुते न भवेदपि बालिशः।

जीवन्मुक्तः सुखी श्रीमान्‌ संसरन्नपि शोभते।।202।।

नानाविचारसुश्रांतो धीरो विश्रांतिमागतः।

न कल्पते न जानाति न श्रृणोति न पश्यति।।203।।


निर्वासनो निरालंबः स्वच्छंदो मुक्तबंधनः।

क्षिप्तः संसारवातेन चेष्टते शुष्कपर्णवत्‌।।


इन  छोटी-सी दो पंक्तियों में ज्ञान की परम व्याख्या समाहित है। इन दो  पंक्तियों को भी कोई जान ले और जी ले तो सब हो गया। शेष करने को कुछ बचता  नहीं।

Comments 
In Channel
loading
00:00
00:00
x

0.5x

0.8x

1.0x

1.25x

1.5x

2.0x

3.0x

Sleep Timer

Off

End of Episode

5 Minutes

10 Minutes

15 Minutes

30 Minutes

45 Minutes

60 Minutes

120 Minutes

शुष्कपर्णवत जीयो (अष्‍टावक्र : महागीता - 61)

शुष्कपर्णवत जीयो (अष्‍टावक्र : महागीता - 61)

Oshō - ओशो